Special Story On The Death Anniversary Of Veteran Pm Vp Singh
दिग्गज पीएम वीपी सिंह की पुण्यतिथि पर स्पेशल स्टोरी : इनकी वजह से गांधी परिवार को नहीं मिला पीएम का पद!, मुलायम सिंह को था एनकाउंटर का डर, पढ़िए अनसुने किस्से
Greater Noida Desk : वीपी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद के डैया राजघराने में हुआ था। किडनी फैल हो जाने के कारण 77 वर्ष की आयु में 27 नवंबर 2008 में उनकी मृत्यु हो गई। वीपी सिंह देश के उन दिग्गज प्रधानमंत्रियों में शामिल हैं। जिनकी वजह से देश में बड़े बदलाव हुए। इस स्पेशल स्टोरी को पढ़कर आपको कांग्रेस और देश के बारे में अहम जानकारी मिलेगी।
राजा से बने देश के बड़े छात्र नेता
वीपी सिंह के पिता का नाम राज बहादुर भगवती सिंह था। बचपन मे ही वीपी सिंह को मांडा राजघराने के राजा राम बहादुर गोपाल सिंह ने गोद ले लिया था और वहीं, इनका लालन-पालन हुआ। गहरवार क्षत्रियों की मांडा, डैया, कोनार्ख और बड़ोखर जैसी जमींदार घराने आपस मे एक ही परिवार है। जो समय के साथ परिवार बढ़ने पर अलग अलग जमींदारों में बट गए। वीपी सिंह 10 वर्ष की आयु में ही माण्डा के राजा बने। इसलिए उन्हें माण्डा नरेश भी कहा जाता था।उनकी पढ़ाई ब्राउन कैम्ब्रिज स्कुल देहरादून से हुई। उसके बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीए और एलएलबी किया। उसके बाद पुणे यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में पढ़ाई की। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान वे छात्र राजनीति में शामिल हुए और यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ उपाध्यक्ष बने।
वीपी सिंह के कार्यकाल में यूपी में हुई एनकाउंटर की शुरुआत
वीपी सिंह विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से प्रभावित होकर अपनी हजारों एकड़ जमीन गरीब दलित पिछड़ों को दान में दे दी। पढ़ाई पूरी होने के बाद वो समाजसेवा में जुट गए और उनका सक्रिय राजनितिं में प्रवेश हुआ, वर्ष 1969 में जब वो सोरांव विधानसभा से विधायक बने। फिर वो 1971 में फूलपुर से सांसद बने। अपनी स्पष्टवादिता, ईमानदारी और भाषा शैली की वजह से प्रदेश की राजनीति में तेजी से लोकप्रिय होते चले गए। 9 जून 1980 को वीपी सिंह उत्तर प्रदेश के 12वें मुख्यमंत्री बने। उस समय अपराध चरम पर था। उस समय सटे इलाकों में डकैतों का आतंक था। सीएम बनते ही उन्होंने अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति बनाई और दस्यु उन्मूलन शुरू किया। एनकाउंटर की झड़ी लगा दी गई। बाद में मानवाधिकार को बचाव में उतरना पड़ा।
मुलायम सिंह यादव को था एनकाउंटर का डर
एक कहानी ये भी है कि तब तक प्रदेश में बड़े नेता बन चुके पूर्व CM मुलायम सिंह का भी नाम आ गया था और पुलिस एनकाउंटर करने के लिए निकल चुकी थी। ये खबर मिलते ही मुलायम सिंह सत्यप्रकाश मालवीय की कार में छुपकर गांव-गांव होते हुए दिल्ली पहुंचे। जहां चंद्रशेखर और चरण सिंह के हस्तक्षेप के बाद उनकी जान बची। अब ये बात सच है या झूठ इसका कोई फैक्ट नही है।
इसलिए हुई इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस चन्द्रशेखर सिंह की हत्या
धड़ाधड़ हो रहे एनकाउंटर और गिरफ्तारी से डकैत काफी नाराज थे। वे वीपी सिंह से बदला लेना चाहते थे। इसी वजह से 20 मार्च 1982 को एक कार्यक्रम से लौट रहे वीपी सिंह के बड़े भाई राजा चन्द्रशेखर सिंह जो कि डैया स्टेट में राजा और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस भी थे। उनकी और उनके पुत्र कुंवर अजित सिंह और तीन सहयोगियों की शंकरगढ़ के पास हमला करके हत्या कर दी गई। इस हमले में चन्द्रशेखर सिंह के बेटे विक्रम सिंह को भी गोली लगी थी, लेकिन वो बाद में इलाज से बच गए।
वीपी सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया
इस हमले की खबर सुनकर वीपी सिंह काफी दुखी हुए और गुस्से में चाकू से अपने पर ही हमला कर दिया। जिसे कमरे में मौजूद व्यक्तियों ने किसी तरह से शांत किया। 3 महीने बाद वीपी सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कहा जाता है कि इस्तीफा देने के प्रमुख कारणों में से एक कारण ये भी था। उसके बाद वीपी सिंह केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए।
धीरू भाई अम्बानी और भ्रष्टाचार की वजह से छोड़ी कांग्रेस
वे 1984 में राज्यसभा में नेता पक्ष के साथ-साथ वित्त मंत्री बने, लेकिन वित्त मंत्री बनते ही उनका प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ अनबन शुरू हो गया। दरअसल, राजीव गांधी धीरू भाई अम्बानी के लिए बिजनेस में ढील चाहते थे। जबकि वीपी सिंह इसके खिलाफ थे। उन्होंने धीरू भाई अम्बानी के यहां छापा पड़वा दिया। अंत मे वीपी सिंह को अपने ईमानदारी के कारण वित्त मंत्री का पद छोड़ना पड़। फिर वीपी सिंह को रक्षा मंत्री बनाया गया, लेकिन यहां भी हो रहे घोटाले, भ्रष्टाचार और हथियारों की खरीद फरोख्त में दलाली को लेकर राजीव गांधी से ठन गयी। बात यहां तक पहुंच गई कि वीपी सिंह ने रक्षा मंत्री के साथ-साथ कांग्रेस के सदस्यता तक के इस्तीफा दे दिया।
राजीव गांधी से कहा था, "अब प्रधानमंत्री नहीं बन पाएगा गांधी परिवार"
कहा जाता है कि बहस के बाद कमरे से बाहर निकलते वक्त वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी से कहा कि, "राजीव याद रखना अब गांधी परिवार का कोई व्यक्ति इस देश का प्रधानमंत्री नहीं बन पाएगा।" इसके बाद वीपी सिंह देशभर में कांग्रेस के खिलाफ बाकी दलों और नेताओं को एकजुट करने लगे। उन्हें 1988 में जनता दल का अध्यक्ष चुना गया | वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव के समय वीपी सिंह ने घोटाले की बात और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उठाया।
फिर वीपी सिंह बने प्रधानमंत्री
वीपी सिंह ने "राजा नहीं फकीर है देश का तकदीर है" नारा घर-घर लोकप्रिय हो गया। यही कारण था कि 1984 में रिकॉर्ड तोड़ 404 सीट जीतकर अजेय मानी जा रही कांग्रेस पार्टी 197 सीटों पर सिमटकर रह गई। जबकि जनता दल ने पिछले चुनाव (14 सीट) से 129 सीट ज्यादा जीतकर 143 सीट जीतकर 2 बड़ी पार्टी बनी। भाजपा के 85 सांसदों और बाकी दलों के समर्थन से 2 दिसम्बर 1989 को वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
OBC आरक्षण और SC-ST एक्ट लागू करवाया
वीपी सिंह का कार्यकाल 1 साल के आसपास ही रहा, लेकिन इस छोटे से कार्यकाल में उन्होंने अभूतपूर्व कार्य किए। कई सालों से देश के पिछड़े समाज की मांग को मानते हुए मंडल कमीशन के रिपोर्ट के आधार पर OBC आरक्षण लागू कर दिया। देश मे दलितों आदिवासियों के ऊपर हमले न हो, छुआछूत न हो इसके लिए SC-ST एक्ट बिल पास करवाया जो कि 1995 में लागू हुआ | जनता दल में आपसी गुटबाजी और कई पार्टियों की अपनी विचारधारा के बीच समन्वय न बन पाने के कारण उन्हें 1 साल के अंदर इस्तीफा देना पड़ा।
राजनीति से दूरी बनाकर राजकुमारी से की शादी
वर्ष 1991 में वो नेशनल फ्रंट के फेस थे, लेकिन राम मंदिर लहर जनता दल में आपसी गुटबाजी के कारण उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और सीटों की संख्या 59 रह गई। वर्ष 1991 में वीपी सिंह फतेहपुर से चुनाव लड़े थे और जीते भी थे। इसके बाद वे सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली, लेकिन सामाजिक कार्यक्रमों या मुद्दों पर जरूर शामिल होते थे या राय रखते थे। इसीलिए 1996 में तीसरे मोर्चे के सभी नेताओ हरिकिशन सुजीत, ज्योति बसु, शरद यादव ,रामविलास पासवान, लालू यादव के कहने पर भी वो प्रधानमंत्री नहीं बने। उन्होंने कहा कि लोग उन्हें पद का लालची समझेंगे। सक्रिय राजनीति से दूरी मतलब पद से भी दूरी वीपी सिंह का विवाह 1955 में राजस्थान के देवघर की राजकुमारी सीता कुमारी से हुआ था। उनके दो पुत्र है। बड़े बेटे अजय प्रताप सिंह और छोटे बेटे अभय प्रताप सिंह है।
"वीपी सिंह राजनीति में नहीं होते तो जरूर संत होंते"
वीपी सिंह अच्छे नेता के साथ अच्छे पेंटर भी थे। उनकी कई पेंटिंग आर्ट्स गैलरी में है। किडनी फैल हो जाने के कारण 77 वर्ष की आयु में 2008 में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु पर रामविलास पासवान ने कहा था कि अगर "वीपी सिंह राजनीति में नहीं होते तो जरूर संत होंते।"