Child Pgi In Noida Is Currently Facing Lack Of Maintenance
नोएडा में दुर्लभ बीमारियां मिटाने वाला चाइल्ड पीजीआई खुद लाइलाज : मेंटेनेंस की कमी से जूझ रहा 1200 करोड़ की लागत से बना अस्पताल, मरीजों के साथ डॉक्टर भी परेशान
Noida News : बच्चों में होने वाली दुर्लभ बीमारियों को दूर करने में सहायक रहा और प्रदेश का पहला चाइल्ड पीजीआई इस समय मेंटेनेंस की कमी से जूझ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर नोएडा प्राधिकरण ने सेक्टर-31 में पोस्ट ग्रेजुएशन इंस्टीट्यूट (पीजीआई) की आलीशान बिल्डिंग करीब 1,200 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की थी। यहां मिलने वाली सुविधाओं के कारण यह पूरे प्रदेश में बच्चों की बीमारियों को दूर करने वाला सबसे बड़ा केंद्र बना, लेकिन मेंटेनेंस न होने के कारण खस्ताहाल हो रहे संस्थान में न सिर्फ डॉक्टर बल्कि मरीजों और उनके तीमारदारों की मुश्किलें बढ़ा रही हैं।
नींव से लेकर छत तक कमजोर पड़ी
चाइल्ड पीजीआई की नींव से लेकर छत तक इस कमजोर है। जगह-जगह टूटी फॉल्स सीलिंग से पानी टपकता रहता है। पानी टपकने के कारण फॉल्स सीलिंग से लेकर तीमारदारों के रुकने वाले हिस्से में पानी गिरता रहता है। जिससे बचने के लिए बाल्टियों और डिब्बों का सहारा लिया जा रहा है। अस्पताल के बेसमेंट में लीकेज और सीपेज की समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि वहां जलभराव के कारण स्थिति बदतर हो गई है। जिससे यहां आने वाले लोगों के साथ यहां काम करने वाले डॉक्टर भी परेशान हैं।
मेंटेनेंस के लिए लाखों रुपये आवंटित
चिंता की बात यह है कि इसके रखरखाव की जिम्मेदार विराट नाम की कंपनी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है कि बिल्डिंग की हालत लगातार खराब हो रही है और कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। कंपनी का कहना है जितना ऑर्डर मिलता है सिर्फ उतना ही काम करते हैं। चाइल्ड पीजीआई के निदेशक अरुण कुमार ने प्राधिकरण और शासन को पत्र लिखकर शिकायत की है लेकिन, इसके बावजूद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। बिल्डिंग के मेंटेनेंस के लिए लाखों रुपये आवंटित किए जाते हैं।
डॉक्टरों के आवासीय टावर का हाल सबसे खराब
बेसमेंट से लगातर पानी भरे होने के कारण यहां से पानी निकासी के लिए मोटर लगाई गई है। वैसे तो यहां करीब आधा दर्जन मोटर लगी हैं, लेकिन इनमें से एक-दो ही चालू है। उसके अलावा ऊपर से सिर्फ पाइप दिखाई देता है, मोटर गायब हो चुकी हैं। जिन टावर में पीजीआई और जिला अस्पताल के डॉक्टर रहते हैं उनकी हालत बेहद खराब है। कूड़े के ढेर और लगातार टूटकर गिरते प्लास्टर, टूटी टाइल्स के अलावा लीकेज और सीपेज की समस्या से चिकित्सक परेशान हैं। रेजिडेंस टावर के बेसमेंट में कुत्ते और सांप भी दिखाई दे जाते हैं। जिसके चलते लोगों ने बेसमेंट का प्रयोग करना बंद कर दिया है।
इन बीमारियों का होता है चाइल्ड पीजीआई में इलाज
बच्चों में दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी (एसएमए) की नि:शुल्क जांच होती है। इस सुविधा को पाने वाला उत्तर प्रदेश में यह पहला केस अलीगढ़ के बच्चे का आया था। पूर उत्तर प्रदेश के लिए चाइल्ड पीजीआई को केंद्र बनाया गया है।
हीमोफीलिया के करीब 500-600 और थैलेसीमिया के 200-250 मरीज आते हैं।
हर साल इम्यूनोडेफिशिएंसी डिसऑर्डर के 15-20 नए मरीज और अन्य दुर्लभ बीमारियों के मरीज जुड़ते हैं।
प्रत्येक वर्ष स्केलेटल डिसप्लेसिया के कम से कम पांच और न्यूरोमस्कुलर डिसऑर्डर के 50-60 मरीज आते हैं।
पांच साल से कम उम्र के बच्चों की आंखों के कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा की इलाज तीन विभाग मिलकर करते हैं।