Noida News : शहर में महिलाओं के साथ हो रही आपराधिक घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए पर्याप्त कानून व्यवस्था मौजूद है। फिर भी दहेज उत्पीड़न जैसे मामले गौतमबुद्ध नगर के विभिन्न थानों में रोज दर्ज होते हैं। इनमें कई मामले जांच के बाद झूठे पाए जाते हैं। इस बात से अदालतें भी सचेत हो गई हैं। अब अगर किसी ने दहेज की झूठी शिकायत की तो उसके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
क्या कहना है मुंबई हाईकोर्ट का
मुंबई हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि विवाहित महिला को घर का काम करने के लिए कहा जाना उसके प्रति क्रूरता नहीं कही जा सकती है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई शादीशुदा महिला घर का काम करती है तो उसकी तुलना नौकरानी के काम से नहीं हो सकती है। क्योंकि जिस प्रकार महिला अपने मायके में काम करती है, उसी तरह वह अपने ससुराल में भी काम कर सकती है। अदालत ने यह फैसला एक महिला की याचिका पर सुनाया है।
यह था महिला का आरोप
महिला का आरोप था कि उसके साथ क्रूरता की जा रही है। उसके साथ नौकर की तरह व्यवहार किया जा रहा है। इसमें हाईकोर्ट ने महिला की अर्जी खारिज कर दी और कहा कि अगर पारिवारिक मकसद से काम के लिए कहा जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि नौकर की तरह उसके साथ व्यवहार हुआ है। आपको बता दें कि आईपीसी की धारा 498ए दहेज एक्ट के तहत पत्नी को प्रताड़ित करने के मामले में सजा का प्रावधान किया गया है।
क्या है दहेज उत्पीड़न कानून
1951 में बने दहेज निरोधक कानून में दहेज लेना और देना दोनों ही गुनाह है। हालांकि 1983 में आईपीसी में संशोधन कर धारा 498ए का प्राविधान दहेज प्रताड़ना को रोकने के लिए किया गया। इसके तहत पत्नी को प्रताड़ित करने के मामले में सजा दी जाती है। धारा 498-ए के तहत दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने पर पति और उसके परिजनों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। दहेज प्रताड़ना का मामला गैर जमानती है और यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल की कैद हो सकती है। लेकिन, कई मामले ऐसे भी होते हैं, जिनमें महिलाएं इस कानून का दुरुपयोग कर निर्दोष को दोषी करार देती हैं।
दहेज हत्या पर क्या कहता है कानून
दहेज हत्या का मामला गैर जमानती अपराध होता है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर मुजरिम को कम से कम 7 साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा हो सकती है। खास बात यह है कि शादी के 7 साल के दौरान अगर महिला की किसी भी संदिग्ध परिस्थिति में मौत होती है तो पति और अन्य ससुराल वालों पर दहेज हत्या मामले में आईपीसी की धारा-304बी के तहत केस दर्ज किया जा सकता है।
दहेज प्रताड़ना का केस कब नहीं माना जाता
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि 498ए दहेज प्रताड़ना मामले में पति के रिश्तेदार के खिलाफ स्पष्ट आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसी तरह कोर्ट ने कहा कि बहू की ज्वेलरी सुरक्षा के लिए अपनी सेफ कस्टडी में रखना कानून के तहत दहेज प्रताड़ना नहीं है। अलग रह रहे भाई को कंट्रोल करने में विफल रहना और उससे सामंजस्य बनाने की सलाह देना दहेज प्रताड़ना नहीं है।
झूठी शिकायत पर कोर्ट ने क्या सजा बनाई है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर महिला ने झूठी शिकायत की है तो उसे क्रूरता माना जाएगा। वहीं, क्रूरता केस की परिस्थितियों पर निर्भर होती है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि क्रूरता साबित करना, क्रूरता को आधार बनाकर तलाक के लिए याचिका दायर करने वाले की जिम्मेदारी है। यह भी तयशुदा कानून है कि क्रूरता ऐसी होनी चाहिए जो सच हो। लड़ाई और निराशा का आधार बनाकर कानून हाथ में लेना दंडनीय अपराध है। अगर कोई भी महिला 498 का दुरुपयोग करती है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है। एक निर्दोष को सलाखों के पीछे भेजना सबसे बड़ा अपराध है। इस मामले में भारत के संविधान में कोई निश्चित नियम या कानून नहीं बताया गया है। लेकिन, अगर किसी मामले में यह पाया जाता है कि महिला ने पति को झूठे केस में फंसाया है तो निश्चित कार्रवाई की जाएगी।