खास खबर :  भाजपा के बगावती वरुण गांधी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से करेंगे भेंट, लगाए जा रहे ये कयास

Google Image | भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गांधी



Uttar Pradesh : पीलीभीत से भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गांधी आज दोपहर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनके आवास पर मिल सकते हैं। इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि लंबे वक्त बाद गांधी परिवार एकजुट होने जा रहा है। वैसे भी गांधी परिवार के करीबियों का कहना है कि वरुण के उनके चचेरे भाई-बहन राहुल और प्रियंका से संबंध बेहद मधुर हैं। लेकिन भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति से वरुण और उनकी मां मेनका गांधी के बाहर होने के बाद यह भेंट खास हो सकती है। दरअसल बीते दिनों ही भाजपा ने अपनी नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी घोषित की थी। इसमें पार्टी ने गांधी परिवार के दो प्रमुख चेहरों मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण को जगह नहीं दी। 

भाजपा के लिए गांधी परिवार ज्यादा मायने नहीं रखता, इसके संकेत पहले ही मिल गए थे। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लगातार दूसरी बार केंद्र में सरकार बनने के बावजूद मेनका गांधी को दूसरी कैबिनेट में जगह नहीं दी गई। माना जा रहा था कि मोदी कैबिनेट के विस्तार में वरुण को मौका मिल सकता है। क्योंकि पार्टी युवा चेहरों को अवसर देगी। पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई बड़े युवा चेहरों को मौका दिया, मगर वरुण का इंतजार खत्म नहीं हुआ। इसकी एक बड़ी वजह हाल-फिलहाल के घटनाक्रम भी हैं।

दरअसल वरुण पिछले लंबे वक्त से पार्टीलाइन के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। किसान आंदोलन को उन्होंने खुलेआम सर्मथन किया। यूपी के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद से वरुण गांधी ने बागी तेवर अपनाए लिए। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार पर किसानों की अनदेखी का आरोप लगाया था। लखीमपुर खीरी की घटना के बाद सबसे पहले उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ को खत लिखकर पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की थी। वरुण ने कहा था कि प्रदर्शन और प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार कर नहीं रोका जा सकता है। इस खून-खराबे के लिए किसी को जिम्मेदारी लेनी होगी। हर किसान इस हादसे से विचलित है। सीएम इस पर उचित कार्रवाई कराएं।

हालांकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में गांधी परिवार के दोनों चेहरों को शामिल नहीं करने की भारतीय जनता पार्टी ने वजह बताई है। पार्टी प्रवक्ता ने तर्क देते हुए कहा है कि कार्यकारिणी में सिर्फ 80 सदस्य होते हैं। इस वजह से सभी को स्थाई रूप से इसमें शामिल नहीं रखा जा सकता। नए लोगों को मौका देने के लिए कुछ पुराने चेहरों को हटाना पड़ता है। यह तर्क बेशक तार्किक लग रहा है। मगर बड़ा सवाल यह है कि इसी साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की धमक शुरू होनी है। उससे पहले यूपी के ही 2 चेहरों को बाहर कर पार्टी इतना बड़ा जोखिम क्यों लेगी। मतलब साफ है कि अब दोनों चेहरे भाजपा के लिए इतने महत्वपूर्ण नहीं रहे।

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