पॉल्यूशन से टूट रही सांसों की डोर : कानपुर में तीन और मेरठ में एक रोगी मौत

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Noida Desk : दिल्ली-एनसीआर की बिगड़ती आबोहवा का लोगों की सेहत पर घातक असर पड़ने लगा है। अस्पतालों में श्वास रोग से ग्रसित मरीज रोजाना सैकड़ों की संख्या में पहुंच रहे हैं। सोमवार को दिल्ली का AQI 300 से ज्यादा दर्ज किया गया। हवा की गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि लोगों की जान पर आ पड़ी है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों से पॉल्यूशन के कारण मौत की खबरें आने लगी हैं। बीते सात दिनों की बात करें तो कानपुर में सांस लेने में दिक्कत के चलते 3 लोगों की मौत हो गई। वहीं, पश्चिमी यूपी के मेरठ में भी एक युवक की तेज बुखार और रेस्परेटिरी सिस्टम फेल हो जाने के कारण मौत हो गई।

चिकित्सकों का मानना है कि प्रदूषण ने फेफड़ों में ऑक्सीजन का लेवल घटा दिया है। इससे फेफड़ों की नलियां सिकुड़ रही हैं। ऑक्सीजन की इनहेलिंग धीरे-धीरे घट रही है। ओपीडी और क्रिटिकल केयर यूनिट में आ रहे मरीजों की जांच में ऑक्सीजन लेवल सही नहीं मिल रहा है। अब डॉक्टर सांस के मरीजों के साथ ही बच्चों को भी मास्क लगाने की सलाह दे रहे हैं।

छाती एवं सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. वीएन त्यागी के अनुसार ने बताया कि ब्रंकोडायलेटर दवा से मरीजों के फेफड़ों की जांच में खतरनाक पहलू सामने आ रहे हैं। हवा में जो धूल के कण हैं, उनका सीधा असर सांस की नलियों पर होता है। सांस के मरीजों को हम ब्रंकोडायलेटर देते हैं। हाल के 10 दिनों में मरीजों की दवाएं बढ़ाने के बाद भी खराब रिस्पांस आ रहा है। रेसपिरेटरी सिस्टम तेजी से डाउन हुआ है। मरीजों को क्रिटिकल केयर और आईसीयू में भर्ती करना पड़ रहा है। इसका मतलब साफ है कि हमारे फेफड़ों की क्रियाशीलता घटी है। लंग्स ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा पीएम 2.5 और हैवी मैटल पार्टिकल के कारण हो रहा है।

फेफड़ों में घटा ऑक्सीजन का स्टोरेज
एक सामान्य आदमी के फेफड़ों में 6 लीटर ऑक्सीजन स्टोर करने की कैपेसिटी होती है। यही ऑक्सीजन बीमारी से लड़ने में मदद करती है, लेकिन पीएम 2.5, पीएम 10, पीएम 1, हैवी मेटल पार्टिकल और पॉल्यूशन के कारण फेफड़ों में सांस की पतली नली सिकुड़ रही हैं। फेफड़े में पूरी ऑक्सीजन इनहेल नहीं हो रही। रिजल्ट लंग्स में ऑक्सीजन का लेवल घट रहा है। डॉक्टरों के अनुसार, 6 लीटर ऑक्सीजन स्टोरेज वाले फेफड़े कुल 3.5 लीटर ऑक्सीजन स्टोर कर पा रहे हैं। इसके कारण सांस की डोर टूट रही है।

लंग्स को बैकअप देती है रिजर्व ऑक्सीजन
फेफड़ों में ऑक्सीजन का रिजर्व होता है। ऑक्सीजन का रिजर्व वाहनों में पेट्रोल-डीजल के रिजर्व यानि इमरजेंसी सर्विस की तरह काम करता है। जब मौसम खराब या हवा भारी, प्रदूषित हो तो यही रिजर्व ऑक्सीजन सांस लेने में आसानी देती है। लेकिन, मरीजों में ऑक्सीजन का रिजर्व, लेवल 40 प्रतिशत तक घटा हुआ मिल रहा है। रिजर्व न मिलने के कारण मरीज सीरियस कंडीशन में चले जाते हैं। पुराने सांस के मरीजों के हालात काफी चिंताजनक हो रहे हैं। फेफड़े में पूरी ऑक्सीजन न पहुंचने के कारण मरीज में सांस की दिक्कत बढ़ती है। फेफड़े छलनी होने लगते हैं। नतीजा आईसीयू में जाने के बाद भी मरीज का रिकवर होना मुश्किल हो रहा है। इससे मरीज अपनी जान गंवा देता है। 

ये लक्षण दिखें तो तुरंत करें डॉक्टर से संपर्क
वजन लेकर चलने में हांफना।
तेज न चल पाना।
सीढ़ी चढ़ने, दौड़ने में तेजी से सांस फूलना।
जल्दी-जल्दी सांस लेना।
मुंह से सांस लेना।

नाक का म्यूकोसा बॉर्डर नहीं रोक पाता पीएम 2.5
हवा में पीएम 10 और बड़े कणों को तो नाक का म्यूकोसा बॉर्डर पर रोक देता है, लेकिन पीएम 1 और पीएम 2.5 जो सिर के बाल से 100 गुना बारीक कण हैं, उन्हें म्यूकोसा रोक नहीं पाता। प्रदूषण के ये कण सांस के जरिए फेफड़ों में जाकर सांस नलियों से चिपकते हैं। उनमें सूजन बनाते हैं। उन्हें सिकोड़ने लगते हैं। प्रदूषण के कारण फेफड़ों में सांस नलियों की लाइनिंग बिगड़ने लगी है। यही हैवी मैटल के कण अंदर ही अंदर कैंसर बनाते हैं।

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