बागपत जिले में हिंडन नदी के तट पर है पुरा महादेव मंदिर
शनिवार को शिवरात्रि के अवसर पर उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
लाखों ने किया जलाभिषेक, रात आठ बजे झंडारोहण होगा
Baghpat News : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भगवान शिव के कई मंदिर हैं लेकिन बागपत जिले में स्थित प्राचीन पुरेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता अत्यधिक है। यहां हर साल शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ता है। शनिवार को महाशिवरात्रि के मौके पर सुबह तीन बजे से ही श्रद्धालुओं की कतार लगनी शुरु हो गईं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए मंदिर और मेला परिसर में भारी पुलिस बल तैनात रखा गया। मंदिर में सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और निगरानी कक्ष बनाया गया है। पुलिस कर्मी और खुफिया विभाग ने निगरानी कक्ष से सुरक्षा देखी। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक भी सुरक्षा इंतजाम देखने पहुंचे। ख़ास बात यह है कि इस मंदिर में उत्तराखंड से लेकर उड़ीसा तक के शिवभक्त आते हैं।
दिल्ली-एनसीआर और वेस्ट यूपी से पहुंचे श्रद्धालु
बागपत के पुरा महादेव मंदिर में जलाभिषेक करने के लिए दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, हरियाणा, उत्तराखंड, उड़ीसा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ और बुलंदशहर समेत आसपास के इलाकों से लाखों श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक किया है। इस दौरान सीआरपीएफ के जवान तैनात रहे। कोई बेटी की शादी तो कोई ने घर में सुख-शांति के लिए कांवड़ लेकर पुरा महादेव मंदिर पहुंचा। शिवभक्तों ने जलाभिषेक किया।
उत्तराखंड से लेकर उड़ीसा तक के शिवभक्त आए
पुरा महादेव मंदिर में जल अभिषेक करने पहुंचे उत्तराखंड के श्रद्धालु राजपाल ने कहा, "मुझे भगवान शंकर ने बेटा तो दे दिया लेकिन बेटी नहीं दी है। इसी इच्छा के लिए मैंने हरिद्वार से गंगाजल लेकर भगवान पुरा महादेव मंदिर में जल अभिषेक किया है।" उड़ीसा से आए श्रद्धालु सोहर ने बताया, "हमें मालूम है और यह बात पक्की है कि पुरा महादेव मंदिर में हर किसी की मुराद पूरी होती हैं। हमने घर और अपने उड़ीसा राज्य में सुख-शांति के लिए जलाभिषेक किया है।"
सुबह सवेरे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी
पुरा महादेव मंदिर पर शनिवार को भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करने के लिए सुबह सवेरे से ही श्रद्धालुओं और कांवड़ियों की भीड़ लगनी शुरू हो गई। आस-पास के गांवों के अलावा दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं ने भगवान आशुतोष पर त्रयोदशी का जल चढ़ाकर परिवार में सुख-शांति की कामना की। भगवान शिव को जलाभिषेक करने के बाद श्रद्धालुओं ने मेले में खरीदारी की। बाजार में लगाई गईं खिलौनों की दुकानों पर बच्चों की भीड़ लगी रही।
आठ बजकर तीन मिनट पर झंडा रोहण होगा
मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित जयभगवान शर्मा ने बताया कि शनिवार को शाम आठ बजकर तीन मिनट पर चतुर्दशी का प्रवेश होगा। शाम सात बजकर 15 मिनट से मंदिर में झंडा पूजन और आठ बजकर तीन मिनट पर झंडा रोहण के बाद चतुर्दशी का जलाभिषेक शुरु किया जाएगा।
क्या है परशुरामेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्तया
मंदिर का प्रधान पुजारी कहते हैं, "एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम दिग्विजय करके पूरी पृथ्वी को जीत चुके थे। जब वह मयराष्ट्र (जो आज मेरठ के नाम से जाना जाता है) से होकर निकले तो उन्होंने पुरा नामक जगह पर जाकर आराम किया। यह गांव उन्हें काफी पसंद आया। ऐसे में उन्होंने उस स्थान पर शिव मंदिर बनवाने का संकल्प ले लिया। इस मंदिर में शिवलिंग को स्थापित करने के लिए पत्थर की ज़रूरत थी, जिसे लाने वह हरिद्वार गंगा तट पर पहुंच गए। वहां पहुंचकर वह मां गंगा की आराधना करते हैं। वह अपना मंतव्य बताते हुए उनसे एक पत्थर देने की विनती करते हैं।"
गंगा से दूर नहीं होना चाहते थे पत्थर
परशुराम के इस अनुरोध को सुनकर वहां मौजूद पत्थर रोने लगते हैं, क्योंकि वह देवी गंगा से दूर नहीं जाना चाहते थे। ऐसे में जब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर ले जाएंगे, उसका चिरकाल तक गंगा जल से अभिषेक किया जाएगा। इस तरह हरिद्वार के गंगातट से भगवान परशुराम खुद पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित कर दिया। कहते हैं कि जब से भगवान परशुराम ने हरिद्वार से पत्थर लाकर उसका शिवलिंग पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया, तब से ही कावड़ यात्रा की शुरूआत हो गई। बाद में यह मंदिर श्रवण कुमार की कांवड़ यात्रा से भी जुड़ गया।
पूरी होती हैं सभी की मनोकामनाएं
पुरामहादेव को परशुरामेश्वर भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के पास बागपत जिले में बालैनी गांव से 4.5 किमी दूर एक छोटा सा गांव पुरा है। पुरा गांव में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है, जो शिवभक्तों का श्रद्धा केन्द्र है। इसे एक प्राचीन सिद्धपीठ माना गया है। केवल इस क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसकी मान्यता है। लाखों शिवभक्त श्रावण और फाल्गुन के माह में पैदल हरिद्वार से यहां कांवड़ में गंगा का पवित्र जल लाते हैं। लाखों कांवड़िया परशुरामेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं।
पौराणिक नदी हिंडन के किनारे है मंदिर
जहां पर परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर है। काफी पहले यहां पर कजरी वन हुआ करता था। इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। रेणुका प्रतिदिन कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी से जल भरकर लाती थीं। वह जल शिव को अर्पण किया करती थीं। हिंडन नदी को पुराणों में पंचतीर्थी कहा गया है। यह नदी हरनन्दी के नाम से भी विख्यात है। यह मंदिर के पास से ही बहती है। यह मंदिर मेरठ से 36 किलोमीटर और बागपत से 30 किलोमीटर दूर स्थित है।
पिता की आज्ञा पर मां का वध किया
प्राचीन समय में एक बार राजा सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में पहुंचे। ऋषि की अनुपस्थिति में रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का पूर्ण आदर सत्कार किया। हिन्दू धर्म के धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कामधेनु गाय जिसके पास होती है, वह जो कुछ कामना करता है उसे वह मिल जाता है। राजा उस अद्भुत गाय को बलपूर्वक वहां से ले जाना चाहता था। परन्तु वह ऐसा करने में सफल नहीं हो सका। अन्त में राजा गुस्से में रेणुका को ही बलपूर्वक अपने साथ हस्तिनापुर अपने महल में ले गया। रेणुका को कमरे में बन्द कर दिया। रानी ने अवसर पाते ही अपनी छोटी बहन के जरिए रेणुका को मुक्त्त कर दिया। रेणुका ने वापस आकर सारा वृतान्त ऋषि को सुनाया। ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया। रेणुका ने अपने पति से बार-बार प्रार्थना की कि वह पूर्णता पवित्र है। वह आश्रम छोड़कर नहीं जाएंगी। अगर उन्हें विश्वास नहीं है तो वे अपने हाथों से उसे मार दें। जिससे पति के हाथों मरकर वह मोक्ष को प्राप्त हो जाएं। परन्तु ऋषि अपने आदेश पर अडिग रहे।
पश्चाताप में की घोर तपस्या
तत्पश्चात् जमदग्नि ऋषि ने अपने तीन पुत्रों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा लेकिन उनके पुत्रों ने मना कर दिया। चौथे पुत्र परशुराम ने पितृ आज्ञा को अपना धर्म मानते हुए अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में परशुराम जी को इसका घोर पश्चाताप हुआ। उन्होंने थोड़ी दूर पर ही घोर तपस्या करनी आरम्भ कर दी। वहां पर शिवलिंग स्थापित कर उसकी पूजा करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर आशुतोष भगवान शिव ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए। उन्हें वरदान मांगने को कहा। भगवान परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी माता को जीवित कर दिया। एक परशु (फरसा) भी दिया और कहा कि जब भी युद्ध के समय इसका प्रयोग करोगे तो विजयी होंगे।
परशुराम जी वहीं पास के वन में एक कुटिया बनाकर रहने लगे। थोड़े दिन बाद ही परशुराम जी ने अपने फरसे से सम्पूर्ण सेना सहित राजा सहस्रबाहु को मार दिया। कहा जाता है कि वे तत्कालीन क्षत्रियों के दुष्कर्मों के कारण बहुत ही क्षुब्ध थे। अतः उन्होंने पृथ्वी पर क्षत्रियों को मृत्यु दण्ड दिया और इक्कीस बार पूरी पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया। जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी, वहां एक मंदिर बनवाया। कालान्तर वह मंदिर खंडहरों में बदल गया। काफी समय बाद एक दिन लण्डौरा ( वर्तमान मसूरी) की रानी इधर घूमने निकली तो उसका हाथी वहां आकर रुक गया। महावत की बड़ी कोशिश के बावजूद वह हाथी वहां से नहीं हिला। तब रानी ने सैनिकों को वह स्थान खोदने का आदेश दिया। खुदाई में वहां एक शिवलिंग प्रकट हुआ। जिस पर रानी ने एक मंदिर बनवा दिया। यही शिवलिंग और इस पर बना मंदिर आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है।
यहां शंकराचार्य ने की तपस्या
इसी पवित्र स्थल पर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने भी तपस्या की थी। उन्हीं की अनुकम्पा से पुरामहादेव महादेव समिति भी गठित की गई, जो इस मंदिर का संचालन करती है। जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने आसपास कई गांवों में मंदिरों की स्थापना करवाईं। इनमें सिंघावली अहीर गांव का शिव मंदिर भी महत्वपूर्ण है।