बागपत के इस गांव में दशहरे पर पूजा जाएगा रावण, रामलीला करने पर होता है बड़ा हादसा, जानिए पूरा इतिहास

खास खबर : बागपत के इस गांव में दशहरे पर पूजा जाएगा रावण, रामलीला करने पर होता है बड़ा हादसा, जानिए पूरा इतिहास

बागपत के इस गांव में दशहरे पर पूजा जाएगा रावण, रामलीला करने पर होता है बड़ा हादसा, जानिए पूरा इतिहास

Google Image | बड़ागांव

Baghpat News : देशभर में अलग-अलग जगहों पर दशहरे के उपलक्ष में रामलीला का मंचन किया जा रहा है। वर्तमान में गांव, शहर, कस्बे में काफी संख्या में लोग लीला को देखने के लिए पहुंच रहे हैं। दशहरे में रावण का पुतला दहन खास रहता है। लेकिन बागपत जिले के बड़ागांव में रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले का दहन नहीं किया जाता बल्कि दशहरे के दिन गांव के लोग तीनों भाइयों की पूजा करते हैं। यह परंपरा पूर्वजों के जवानों से चली आ रही है।

ऐतिहासिक सत्य
दहशरा पर देशभर में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन होता है। इसके उलट बड़ागांव के ग्रामीण रावण को अपना पूर्वज मानते हुए उसका पूजन करते हैं। आपको यह अजीब लगेगा लेकिन ऐतिहासिक सत्य है। गांव में न रावण पुतला दहन होता है और न रामलीला। राजस्व रिकार्ड में गांव का नाम रावण उर्फ बड़ागांव दर्ज है। इसके पीछे पौराणिक किंवदंती प्रचलित है।

मां बड़ागांव में विराजमान
बड़ागांव निवासी सुधांशु त्यागी ने बताया कि त्रेता युग में रावण लंका में मां मंशादेवी को विराजमान करना चाहता था। कठोर तपस्या से मां को खुश किया। रावण मां का शक्तिपुंज लेकर हिमालय से लंका जा रहा था। बड़ागांव में रावण को लघुशंका की शिकायत हुई तो उसने मां का शक्तिपुंज ग्वाले को दिया। ग्वाला मां का तेज सहन नहीं कर सका और शक्तिपुंज जमीन पर रख दिया। तब से मां बड़ागांव में विराजमान हैं।

गांव में कई विपदाएं आई
मां मंशादेवी को बड़ागांव में विराजमान होने से ग्रामीण रावण को अपना पूर्वज मानते हैं। इसलिए पुतला दहन नहीं करते, बल्कि दशहरे की शाम को आटे का रावण प्रतिकात्मक पुतला बनाकर पूजा करते हैं। प्रदीप त्यागी, शिव कुमार त्यागी, उमेश त्यागी और रूपक त्यागी बताते हैं कि रामलीला का मंचन करने पर गांव में कई विपदाएं आई थी। तब से ग्रामीणों ने रामलीला मंचन करना छोड़ दिया। मंदिर पुजारी गौरी शंकर ने बताया कि माता रानी के दरबार में मत्था टेकने वाले हरेक श्रद्धालु की मुराद मां पूरी करती है। 

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