अब तक बिक चुके 350 करोड़ टोकन, पर सड़क से नहीं खत्म हुआ जाम और पॉल्युशन

दिल्ली मेट्रो से बड़ी खबर : अब तक बिक चुके 350 करोड़ टोकन, पर सड़क से नहीं खत्म हुआ जाम और पॉल्युशन

अब तक बिक चुके 350 करोड़ टोकन, पर सड़क से नहीं खत्म हुआ जाम और पॉल्युशन

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Delhi News : वर्ष 2002 से शुरू हुई दिल्ली मेट्रो ने घंटो की दूरी को मिनटों में बदल दिया। मेट्रो में रोज लाखों की संख्या में लोग यात्रा करते हैं। मेट्रो के आने से यात्रियों के समय और पैसे दोनों की बचत हुई है। दिल्ली मेट्रो से बड़ी खबर सामने आ रही है। दिल्ली मेट्रो 2002 से अब तक 350 करोड़ टोकन बेच चुकी है। हालांकि, इस साल अगस्त से दिल्ली मेट्रो ने डिजिटल टिकटिंग के चलते टोकन को बंद कर दिया है। डिजिटल टिकटिंग आने से लंबी लाईन में लगकर टोकन लेने का झंझट खत्म हो गया है। लेकिन, लाखों लोगों के मेट्रो में यात्रा करने से भी सड़क से जाम खत्म नहीं हुआ है।

डिजिटल टिकटिंग का आगमन
दिल्ली मेट्रो में डिजिटल टिकटिंग व्यवस्था आने से लाईन में लगकर टोकन लेने का मसला खत्म हुआ है। दिल्ली मेट्रो ने अपनी सभी लाइन पर 'पेटीएम ऐप' (Paytm App) के माध्यम से क्यूआर कोड आधारित टिकट की सुविधा शुरू की है। लोग अपने समार्टफोन पर भी क्यूआर कोड आधारित टिकट पा सकते हैं।

शहर में अवैध रूप से चल रही ई-रिक्शा
सोचा था दिल्ली में मेट्रो के आने से सड़कों पर ट्रैफिक कम हो जाएगा। लेकिन हालात ज्यों के त्यों बने हुए हैं। मेट्रो में इतनी भीड़ होती है कि लोग धक्के मारकर चढ़ते है। वहीं दूसरी ओर सड़कों का हाल भी बुरा है। ट्रैफिक के कारण 10 मिनट की दूरी 30 मिनट में तय हो रही है। यातायात के साधनों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। लोग ट्रैफिक से भी परेशान हैं और मेट्रो की भीड़ से भी। शहर में ट्रैफिक बढ़ने का एक कारण अवैध रूप से चल रही ई-रिक्शा भी हैं।

परिवहन बना प्रदूषण का कारण
माना जाता है कि सुख सुविधा हमेशा अपने साथ समस्याएं भी लेकर आती हैं। लेकिन दिल्ली इतनी सुख सुविधा से भरपूर हो गई कि लोगों का रहना ही मुश्किल कर दिया। लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह गाड़ियां हैं। दिल्ली की सड़को पर रोजाना लाखों की संख्या में गाडियां दौड़ती हैं। जिससे प्रदूषण बहुत ज्यादा मात्रा में फैलता है। दिल्ली में गाडियों से प्रदूषण फैल रहा है। जिसका कोई भी समाधान नहीं निकल रहा है। लोग घरों में बंद रहने को मजबूर हैं। वें खुली हवा में सासं भी नहीं ले सकते हैं।

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