आदिब खान ने 18 साल की उम्र में जीते 7 गोल्ड, पढ़िए कैसे भरी हौसलों की उड़ान

गाजियाबाद की शान : आदिब खान ने 18 साल की उम्र में जीते 7 गोल्ड, पढ़िए कैसे भरी हौसलों की उड़ान

आदिब खान ने 18 साल की उम्र में जीते 7 गोल्ड, पढ़िए कैसे भरी हौसलों की उड़ान

Tricity Today | आदिब खान

Ghaziabad News : स्वीडन की धरती पर मानसिक मंदता (दिव्यांग) से पीड़ित गाजियाबाद के आदिब खान ने देश का माथा ऊंचा करने के साथ ही ऐसे ह‌जारों बच्चों को सीख देने का काम किया है जो किसी भी तरह की दिव्यांगता से पीड़ित हैं। 18 साल के आबिद ने हाल ही में स्वीडन में हुई स्पेशल ओलपिंक द गोठिया फुटबॉल चैंपियनशिप कप- 2024 में फारवर्ड खेलते हुए डेनमार्क की टीम को फाइनल में हराकर कप इंडिया के नाम कर लिया। इस चैंपियनशिप में 18 देशों की 24 स्पेशल टीमों ने भाग लिया था। 18 साल का आदिब अब तक सात नेशनल गोल्ड मे‌डल जीत चुका है।

छह साल की आयु में पहला गोल्ड अपने नाम किया
आदिब के पिता अफजल खान ने बताया कि आदिब जन्म के बाद से ही काफी बीमार रहता था। डाक्टरों ने बताया कि बच्चा स्लो लर्नर है और आगे भी यह बाकी बच्चों से कम से छह माह पीछे ही रहने वाला है। अफजल खान के मुताबिक  सुनकर बड़ी तकलीफ हुई लेकिन धीरे-धीरे हौंसला मिलता गया और आगे बढते गए। अब आदिब हमें हौंसला देता है। उन्होंने बताया आदिब उनकी पहली संतान था। आदिब के साढ़े तीन साल का होने पर उसे इंग्राहम इंस्टीट्यूट के स्पेशल स्कूल में दाखिला दिलवा दिया। जहां टीचर्स ने उसका स्किल डवेलपमेंट शुरु किया और छह साल की आयु में आदिब ने 100 मीटर की दौड़ में पहला गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया था। 

हमें तभी लग गया था कि आदिब एक दिन नाम रोशन करेगा
गोल्ड मेडल जीतने के बाद मानों हमारी उम्मीदों को पर लग गए हों। आदिब से हमें काफी उम्मीदें हो गई थीं, आज लगता है हम सही ही तो थे। इसके बाद टीचर्स के साथ ही पूरे परिवार ने आदिब की हौंसला अफजाई में लगा रहता। आदिब के बाद उनकी दूसरी संतान बेटी हुई, कशिश। वह बिल्कुल सामान्य है। क‌शिश अब नवीं में आ गई है। खेलों में आदिब की रुचि को देखते हुए उसे हर तरह की ट्रेनिंग दिलवाने का प्रयास किया। अब तक आदिब स्पेशल बच्चों की सात नेशनल लेबल प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीत चुका है। इनमें दो गोल्ड मेडल बॉन्चो गेम में, दो गोल्ड मेडल रनिंग में, दो गोल्ड फुलटबॉल में और एक वॉलीबॉल के लिए मिला है।  अब आदिब ने स्वीडन में हुए स्पेशल ओलपिंक द गोठिया फुटबॉल चैंपियनशिप कप में गोल्ड मेडल हासिल किया। 

परिवार में जश्न का माहौल 
आदिब की मां प्रिया खान और बहन कशिश उसकी इस जीत पर बेहद खुश हैं। कशिश अपने भाई के साथ खेलती है, शरारतें भी करती है और मौका पाकर कभी नखरे भी कर लेती है। आदिब भी बहन के प्रेम को अच्छे तरह से समझता है। जैसा अक्सर होता है, आदिब को आदिब बनाने में उसकी मां का बड़ा रोल है। अफजल खान बताते हैं कि उसकी मां ने उसकी अच्छे परवरिश की, सब उसी का नतीजा है। फिलहाल आदिब नंदग्राम स्थित आनंद ट्रेनिंग सेंटर स्किल डवलमेंट के लिए पढ़ाई कर रहा है। आदिब लिख और पढ़ नहीं पाता, लेकिन खेलों में उसे अव्वल रहना ही पसंद है। उसका सबसे पसंदीदा खेल है बॉन्चो। खेल पसंद हैं। बॉन्चो खेल में अलग - अलग आकार और रंग की गेंद होती हैं। रंगीन गेंदों के उनके आकार के हिसाब से अलग-अलग गोलों में डालना होता है।

आदिब को बेहतर ट्रेनिंग की जरूरत 
स्पेशल टीम के इंडियन कोच अभिषेक बताते हैं कि आदिब को जब उन्होंने पहले देखा तो उसका स्किल देखकर चौंक गए थे। आमतौर पर ऐसे बच्चों के स्किल काफी कम होते हैं, लेकिन आदिब बहुत अधिक एक्टिव था। आदिब ने दुनिया के प्रतिष्ठित गोठिया कप में भारतीय स्पेशल टीम की ओर से पार्टिसिपेट किया और फारवर्ड खेलते हुए तीन गोल दागे। गोठिया कप में 72 देशों की 1911 टीमों ने भाग लिया था। उनमें से 18 देशों की ओर से 24 स्पेशल बच्चों की टीमें शामिल थीं। भारत की टीम में यूपी से दो, वेस्ट बंगाल से दो ,केरल से तीन और पांडुचेरी और दिल्ली से एक-एक खिलाड़ी ने भाग लिया। आदिब के लौटने पर गाजियाबाद में आदिब का शानदार स्वागत किया गया।

आदिब प्रतिभाशाली है : डा. संजीव त्यागी
आदिब को मेडिकल सपोर्ट देने वाले वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. संजीव त्यागी का कहना है कि  मेंटली चैलेंज्ड बच्चों के स्किल के अनुसार उनका डिवाइडेशन करते हैं। आदिब खेलों की खेलों में रूचि है और अच्छा भी करता है। इसलिए उसे खेलों में आगे बढ़ाना उचित है। आदिब के मामले में आनंद ट्रेनिंग स्कूल की टीचर्स और आदिब के परिवार का बहुत ज्यादा योगदान है।

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