एनसीईआरटी प्रिंटर्स एसोसिएशन ने किया प्रदर्शन, किताबों के निजीकरण पर केंद्र सरकार की आलोचना की

New Delhi News : एनसीईआरटी प्रिंटर्स एसोसिएशन ने किया प्रदर्शन, किताबों के निजीकरण पर केंद्र सरकार की आलोचना की

एनसीईआरटी प्रिंटर्स एसोसिएशन ने किया प्रदर्शन, किताबों के निजीकरण पर केंद्र सरकार की आलोचना की

Tricity Today | एनसीईआरटी प्रिंटर्स एसोसिएशन ने किया प्रदर्शन, किताबों के निजीकरण पर केंद्र सरकार की आलोचना की

New Delhi : नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के लिए कई दशकों से किताब छाप रहे देशभर के प्रिंटर्स ने शुक्रवार को दिल्ली में प्रदर्शन किया। एनसीईआरटी मुख्यालय में देशभर के प्रिंटर एकत्र हुए और एक ज्ञापन निदेशक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा है। यह ज्ञापन शिक्षा मंत्री को भी भेजा गया है। जिसमें इन लोगों ने किताबों के निजीकरण की पॉलिसी पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। प्रिंटर्स का कहना है कि पिछले करीब 4 दशकों से एनसीईआरटी के लिए काम कर रहे हैं। इस कारोबार में उन्होंने करोड़ों रुपए निवेश किए हैं। प्रिंटर्स की जीवन भर की पूंजी इस कारोबार में लगी हुई है। लाखों कामगार, तकनीशियन, डिस्ट्रीब्यूटर और कर्मचारी उनके ऊपर आश्रित हैं। अब अचानक किताबों का निजीकरण करने से देशभर के प्रिंटर्स का अरबों रुपए डूब जाएगा। लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।

लंबे अरसे से एनसीईआरटी के लिए किताबें प्रकाशित कर रहे ग्रेटर नोएडा के प्रिंटर एसपी शर्मा ने कहा, "पिछले करीब 4 दशकों से एनसीईआरटी देशभर में 140 मुद्रकों और प्रकाशकों से अपनी किताबें प्रकाशित करवा रही है। यह सभी मुद्रक एनसीईआरटी के पैनल पर हैं। अब केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने अपनी नीति में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है। यह फैसला अचानक से लिया गया है। अब सरकार का कहना है कि वह अपनी जरूरत की सभी किताबें छापने और देशभर में बांटने के लिए किसी बड़ी कंपनी को ठेका देगी। मतलब, अब सरकार खुद किताब नहीं छपवाएगी। कोई बड़ी कंपनी खुद किताबें छाप कर देशभर में वितरित करेगी।" 

एसपी शर्मा आगे कहते हैं, "इससे किताबों की कीमतें बढ़ जाएंगी। एनसीईआरटी की अच्छी और सस्ती किताबें बाजार से गायब हो जाएंगी। दूसरी ओर एनसीईआरटी की किताबों को छापने वाले मुद्रक बेरोजगार हो जाएंगे। उनके ऊपर आश्रित लाखों लोगों का रोजगार छिन जाएगा। इन किताबों को देशभर में बांटने के लिए छोटे-बड़े डिस्ट्रीब्यूटर का नेटवर्क है। इन तमाम लोगों की रोजी-रोटी भी एनसीईआरटी की किताबों पर आश्रित है। ऐसे हजारों डिस्ट्रीब्यूटर भी बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएंगे।"

एनसीईआरटी प्रिंटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर अरुण अग्रवाल कहते हैं, "यह केंद्र सरकार का गलत फैसला है। अभी तक एनसीईआरटी के पैनल वाले 140 मुद्रक किताबों को छापने के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल रहते थे। जिसकी वजह से अच्छी और सस्ती किताबें सरकार को उपलब्ध होती हैं। जिसका सीधा फायदा आम आदमी और छात्रों को मिल रहा है। अब जब सरकार किसी एक बड़ी कंपनी को किताबें छापने का ठेका देगी तो भविष्य में उस कंपनी की मोनोपॉली हो जाएगी। कोई कंपनी चाहे कितनी बड़ी क्यों ना हो वह पूरे देश भर में किताबें छापकर बांटने में सक्षम नहीं है। लिहाजा, बहुत जल्दी बड़ी कंपनी अपने ठेके को हम जैसे छोटे प्रिंटर्स को सबलेट करने लगेंगी। जिससे हमें और सरकार, दोनों पक्षों को नुकसान होगा। सरकार की यह नीति जनहित के खिलाफ है।"

शुक्रवार को एनसीईआरटी के मुख्यालय पर करीब 50 प्रिंटर एकत्र हुए। इन लोगों ने एक मांग पत्र एनसीईआरटी के निदेशक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिक्षा मंत्री को भेजा है। प्रदर्शन करने वालों में एसोसिएशन के सचिव शिव कुमार, उपाध्यक्ष अरुण बेरी, कार्यकारी सदस्य राकेश चौधरी, बीएल शर्मा, अरुण गुप्ता, एसपी शर्मा, आशु रस्तोगी, अनुराग मिश्रा और विजय जुल्का शामिल रहे।

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