बिल्डरों से तीन गुना ब्याज वसूलेंगे नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, सुप्रीम कोर्ट में दी ये दलील

बड़ी खबर: बिल्डरों से तीन गुना ब्याज वसूलेंगे नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, सुप्रीम कोर्ट में दी ये दलील

बिल्डरों से तीन गुना ब्याज वसूलेंगे नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, सुप्रीम कोर्ट में दी ये दलील

Tricity Today | सुप्रीम कोर्ट

Delhi-NCR: नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट से एक फैसला वापस लेने की अपील की है। दोनों अथॉरिटी ने अपनी अपील के समर्थन में बड़ी दलील दी है। अगर शीर्ष अदालत यह निर्णय रिकॉल करती है, तो जिले के बिल्डरों को दोगुने से ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ेगा। पिछले साल जून, 2020 में एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों प्राधिकरणों को रियल स्टेट सेक्टर और बिल्डरों को राहत देने के लिए ब्याज दर 8% वसूलने का आदेश दिया था। जबकि उससे पहले दोनों प्राधिकरण बिल्डरों से 15-23% तक का ब्याज वसूल रहे थे। 

अब सोमवार को प्राधिकरण की तरफ से पेश अधिवक्ता ने बताया कि पिछले साल जून से अब तक किसी भी बिल्डर या रियल स्टेट कंपनी ने कम ब्याज दरों के मुताबिक भी बकाए का भुगतान नहीं किया है। दरअसल कोरोना वायरस महामारी और इसकी वजह से बिगड़े हालात को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जून में यह आदेश दिया था। इसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि रियल एस्टेट सेक्टर को राहत की जरूरत है। बिल्डरों को आर्थिक मदद मिलनी चाहिए। क्योंकि इनमें से ज्यादातर अर्थव्यवस्था में मंदी और कोरोना संक्रमण की वजह से संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि बिल्डर उचित समय के भीतर बकाया राशि का भुगतान करने में विफल रहता है, तो दी गई रियायत वापस ले ली जाएगी।

कम नुकसान होगा
इसलिए 8% की ब्याज दर देने से उन्हें कम आर्थिक क्षति होगी और वे आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने में सक्षम होंगे। शीर्ष अदालत ने कहा था कि इससे घर खरीदार भी प्रभावित नहीं होंगे और बिल्डर आसानी से अपने बकाए का भुगतान कर पाएंगे। कुछ योजनाएं पहले से ही आईबीसी प्रक्रिया में हो सकती हैं। लेकिन भुगतान नहीं करने की वजह से प्राधिकरण इन बिल्डरों को ओसी और सीसी पत्र देने में सक्षम नहीं है। इस वजह से घर खरीदारों की रजिस्ट्री नहीं हो पा रही है।

गैर पक्षकारों पर भी लागू हुआ
आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए प्राधिकरण के अधिवक्ता रवींद्र कुमार ने पीठ को बताया कि आदेश सभी मुद्दों की जांच किए बिना पारित किया गया था। उन्होंने कहा कि अदालत आम्रपाली मामले की सुनवाई कर रही है और घर खरीदारों की सुरक्षा के उपायों की जांच कर रही है। लेकिन पारित आदेश सामान्य प्रकृति का था, जो उन सभी डेवलपर्स पर लागू होता है जो मामले में पक्षकार भी नहीं थे।

अब तक नहीं मिला भुगतान
जस्टिस यूयू ललित और अजय रस्तोगी की पीठ ने सवाल उठाया कि एक साल बाद आदेश को कैसे वापस लिया जा सकता है? क्योंकि कुछ बिल्डरों ने राहत का लाभ उठाया होगा। अब अन्य कंपनियों को इस छूट से वंचित नहीं किया जा सकता। अधिवक्ता कुमार ने कहा कि पिछले साल अदालत द्वारा 10 जून के आदेश के बाद से किसी बकायेदार ने पहल नहीं की है। कुमार ने पीठ से कहा, "पिछले एक साल में एक भी पैसे का भुगतान नहीं किया गया है।"

वकील सिब्बल ने जताया विरोध
बिल्डरों ने प्राधिकरण की इस याचिका का विरोध किया। बिल्डर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा द्वारा दायर रिकॉल आवेदन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने कम ब्याज दर वसूलने पर सहमति जताई, लेकिन बाद में अपना रुख बदल दिया। कपिल सिब्बल ने कहा कि प्राधिकरण ने न्यायाधीश (जिसने आदेश दिया था) के सेवानिवृत्त होने का इंतजार किया और फिर उन्होंने आदेश को वापस लेने के लिए एक आवेदन दायर किया।

इस मामले की सुनवाई के दौरान दिया फैसला
अदालत ने ऐस ग्रुप ऑफ कंपनीज की एक याचिका पर यह आदेश पारित किया था। जिसमें आरोप लगाया गया था कि ज्यादा लीज रेंट, जुर्माना और अधिकारियों द्वारा लगाए गए ब्याज के कारण विभिन्न परियोजनाएं रुकी हुई हैं। काम ठप पड़ा है। इसमें तर्क दिया गया था कि SBI MCLR (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स-बेस्ड लेंडिंग रेट) की ब्याज दर तीन साल के लिए केवल 7-8% है। इसलिए नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी अधिकारियों को ब्याज दर कम करने का निर्देश दिया जाना चाहिए।

प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए जरूरी बताया
अचल संपत्ति की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए, ऐसी आवास परियोजनाओं को गति देने और मुख्य रूप से घर खरीदारों की दुर्दशा को देखते हुए यह फैसला लिया गया था। कोर्ट ने कहा था, जैसा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों द्वारा बताया गया है कि 2005 से आवंटित 114 भूखंडों में से अधिकांश परियोजनाएं अपूर्ण हैं। ऐसे सभी मामलों में बकाया प्रीमियम और अन्य देय राशि पर ब्याज की दर 8% प्रति वर्ष की दर से हो।

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