2019 में 23.5 लाख भारतीयों की प्रदूषण ने जान ली, लैंसेट स्टडी ने किया खुलासा

खौफनाक : 2019 में 23.5 लाख भारतीयों की प्रदूषण ने जान ली, लैंसेट स्टडी ने किया खुलासा

2019 में 23.5 लाख भारतीयों की प्रदूषण ने जान ली, लैंसेट स्टडी ने किया खुलासा

Google Image | प्रतीकात्मक फोटो

New Delhi : द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार वर्ष 2019 में भारत में प्रदूषण के कारण 23.5 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई हैं। जिसमें वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा 16.7 लाख मौत हुई हैं। यह आंकड़ा विश्वस्तर पर सभी देशों में सबसे अधिक है। शोधकर्ताओं ने कहा कि वायु प्रदूषण से अधिकांश मौतें PM2.5 प्रदूषण के कारण हुई हैं। यह संख्या 9.8 लाख है। भारत में परिवेशी हवा में ढाई माइक्रोन से कण बहुत अधिक होते हैं। अन्य 6.1 लाख मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हुई हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा, "प्रदूषण रोकने के उपायों की अनदेखी हो रही है"
विश्वस्तर पर वर्ष 2019 में 90 लाख मौतों के लिए किसी न किसी प्रकार का प्रदूषण जिम्मेदार था। दुनियाभर में छह मौतों में से एक पॉल्यूशन के कारण हुई है। अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा, "प्रदूषण के स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव बहुत अधिक हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों को इस बोझ का खामियाजा भुगतना पड़ता है। इसके भारी स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों हैं। इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंडे में प्रदूषण की रोकथाम से जुड़े उपायों की काफी हद तक अनदेखी की जाती है।" रिचर्ड फुलर ग्लोबल एलायंस ऑन हेल्थ एंड पॉल्यूशन नाम की संस्था से ताल्लुक रखते हैं। जिसका मुख्यालय जिनेवा स्विटजरलैंड में हैं।

गंगा के मैदानों में प्रदूषण से हो गया है बुरा हाल
फुलर ने एक बयान में कहा, "प्रदूषण और इसके स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में सार्वजनिक चिंता बढ़ी है। फिर भी 2015 के बाद से इस दिशा में ध्यान देनी वालों और बजट में न्यूनतम वृद्धि हुई है।" शोधकर्ताओं ने आगे कहा, "भारत में गंगा के मैदान (उत्तरी भारत) में वायु प्रदूषण सबसे गंभीर है, जहां स्थलाकृति और मौसम ऊर्जा, गतिशीलता, उद्योग, कृषि और अन्य गतिविधियों से प्रदूषण बढ़ रहा हैं। 

खतरनाक वायु प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है
इस अध्ययन के अनुसार घरों में बायोमास का जलना भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण रहा है। इसके बाद कोयले का दहन और फसल जलाना दूसरी वजह हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि परिवेशी वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। जिससे बड़ी जनसंख्या प्रभावित हो रही है। भारत में वर्ष 2014 के दौरान प्रदूषण का औसत खतरनाक स्तर 95 मिलीग्राम प्रति घन मीटर था, जो 2017 तक 82 मिलीग्राम प्रति घन मीटर तक कम हो गया था, लेकिन हाल ही में धीरे-धीरे फिर से बढ़ रहा है।"

भारत में प्रदूषण रोकने के लिए सेंट्रल मैकेनिज्म नहीं
शोधकर्ताओं का कहना है, "भारत ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम सहित वायु प्रदूषण से निपटने के लिए उपकरणों की एक श्रृंखला विकसित की है। वर्ष 2019 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक आयोग शुरू किया है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास उत्सर्जन मानकों को लागू करने और नियामक शक्तियां हैं।" उन्होंने कहा, "हालांकि, भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को चलाने के लिए एक मजबूत केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली नहीं है और इसके परिणामस्वरूप समग्र वायु गुणवत्ता में सुधार सीमित और असमान रहा है।"

देश के 93% हिस्सों में प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के मानकों से ज्यादा
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का पीएम-2.5 प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के निर्धारण मानकों से बहुत ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि सांस लेने लायक साफ हवा में पीएम-2.5 का स्तर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर नहीं होना चाहिए, लेकिन भारत के 93% इलाकों में इस प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है।" आपको बता दें कि हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन मानकों को और कड़ा किया है। अब डब्ल्यूएचओ का कहना है जिस हवा में पीएम-2.5 का स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होगा, वही वायु सांस लेने लायक है।

दुनिया की अर्थव्यवस्था को 6.2% का नुकसान
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पारंपरिक प्रदूषण (ठोस ईंधन और असुरक्षित पानी, स्वच्छता और घरेलू वायु प्रदूषण) के कारण होने वाली मौतों में वर्ष 2000 से 50% से अधिक कमी आई है। प्रदूषण के कारण अधिक मौतों से वैश्विक स्तर पर 2019 में कुल 4∙6 ट्रिलियन अमरीकी डालर का आर्थिक नुकसान हुआ है, जो वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 6.2 प्रतिशत है। प्रदूषण के आधुनिक रूपों के कारण आर्थिक नुकसान बढ़ रहा है। परिवेशी वायु में कण प्रदूषण सबसे बड़ी वजह हैं। भारत में वर्ष 2000 से 2019 के बीच मौतों के मामले बढ़े हैं। अगर भारत को इससे होने वाले आर्थिक नुकसान की बात करें तो सालाना जीडीपी का 1% तक है।

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