सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक के दो टावर को अवैध माना, आज सुनाएगा बड़ा फैसला

झटका : सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक के दो टावर को अवैध माना, आज सुनाएगा बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक के दो टावर को अवैध माना, आज सुनाएगा बड़ा फैसला

Google Image | प्रतीकात्मक तस्वीर

  • 40 मंजिला टावर बनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया
  • शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा कि टावर बनाना गलत था
  • 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया गया था
रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक (Supertech Builder) के नोएडा में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट में दो अतिरिक्त 40 मंजिला टावर बनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया है। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा कि टावर बनाना गलत था। निर्माण हरित क्षेत्र (Green Belt) पर किया गया था। इस मामले में अंतिम निर्णय लेने से पहले अदालत सभी पहलुओं और विकल्पों की जांच करेगा। दो टावरों को ध्वस्त करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुपरटेक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर मंगलवार को दिन भर सुनवाई चली। बिल्डर के लिए उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि निर्माण में कुछ अवैध नहीं है।

अन्य इमारतों पर पड़ेगा असर
इस मामले में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा कि इमारतों का निर्माण ग्रीन एरिया पर किया गया था। बिल्डर के वकील सिंह ने कहा इन टॉवर को बनाने में कानून का कोई उल्लंघन नहीं हुआ। सभी नियमों का पालन किया गया। वह इसे साबित करेंगे। उन्होंने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन बिल्डर को आतंकित कर रहा है।" आरडब्ल्यूए की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों टावर को ध्वस्त करने का आदेश पारित किया था। हालांकि इन दो बहुमंजिला टावरों के विध्वंस से इनके दायरे में सिर्फ 8 मीटर की दूरी पर छोटी इमारतों और सटी दूसरी सोसाइटी की भवनों को भी नुकसान हो सकता है। इस पर पीठ ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में हुए मुनाफे को वापस लेने का आदेश जारी कर सकती है। 


हाईकोर्ट ने गिराने का आदेश दिया
900 से अधिक फ्लैटों वाले टावरों को 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया गया था। अदालत ने उन्हें गिराने का आदेश दिया था। बिल्डर को उन घर खरीदारों को राशि वापस करने का आदेश दिया गया था, जिन्होंने नोएडा सेक्टर-93ए में स्थित एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के उन दो टावरों में फ्लैट बुक किए थे। इसके बाद बिल्डर ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने टावरों के विध्वंस पर रोक लगा दी। लेकिन कंपनी को निर्देश दिया कि वह उन खरीदारों को राशि वापस करे जो अपना पैसा वापस चाहते थे। 

फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया
आरडब्ल्यूए की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने पीठ को बताया कि अवैध निर्माण की अनुमति देने में नोएडा के अधिकारियों और बिल्डर के बीच स्पष्ट मिलीभगत थी। उन्होंने कहा कि मुख्य अग्निशमन अधिकारी द्वारा उठाई गई आपत्तियों के बावजूद निर्माण की अनुमति दी गई थी। अफसर ने कहा था कि अतिरिक्त टावरों के निर्माण से पुराने टावरों के बीच की दूरी कम हो जाएगी। यह अग्नि सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा कि इन दो बहुमंजिला इमारतों के निर्माण से अन्य में प्राकृतिक प्रकाश और हवा अवरुद्ध हो गई। आस-पास के टावरों में निवासियों के लिए खुली हवा में सांस लेना दूभर हो गया। ग्रीन बेल्ट के नाम पर थोड़ी खाली जमीन छोड़ी गई थी। बिल्डर ने उस पर भी टावर बना दिए। अधिवक्ता भूषण ने कहा कि फर्जी दस्तावेज इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने रखे गए। नोएडा प्राधिकरण और बिल्डर दोनों अपनी सुविधा के अनुसार अपना रुख बदलते रहे।

650 फ्लैट मालिकों की सहमति की जरूरत होगी
न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने कहा कि दो टावरों को गिराना एक बहुत मुश्किल काम हो सकता है। इनको गिराने से आसपास की इमारतें भी खतरे की जद में आ जाएंगी। उन्होंने कहा कि घर खरीदारों के लिए सुपरटेक से अपनी रकम वापस प्राप्त करना भी मुश्किल होगा। अग्रवाल ने कहा, "इमारत को गिराना आसपास की इमारतों और पर्यावरण के लिए एक आपदा होगी। टॉवर की हर ईंट को हटाना असंभव है।" उन्होंने सुझाव दिया कि प्रभावित फ्लैट मालिकों को मुआवजा दिया जा सकता है। उन्हें अन्य आवासिय परियोजनाओं में भी स्थानांतरित किया जा सकता है। लेकिन पीठ ने कहा कि यह मुश्किल होगा। क्योंकि सभी 650 फ्लैट मालिकों की सहमति की जरूरत होगी। इस वजह से मंगलवार को कोई फैसला नहीं हो सका है। आज, बुधवार को फिर से इस मामले में सुनवाई हो रही है। आज सुपरटेक के वकील आरडब्ल्यूए के आरोपों का जवाब देंगे।

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