यूनिटवार स्वीकृति को दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन का दिया हवाला 

नोएडा में यूनीटेक बोर्ड और अथॉरिटी आमने-सामने : यूनिटवार स्वीकृति को दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन का दिया हवाला 

यूनिटवार स्वीकृति को दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन का दिया हवाला 

Tricity Today | Smbolic

Noida News : यूनिटेक के हाउसिंग प्रोजेक्ट के पूरा होने की देखरेख के लिए सरकार द्वारा नियुक्त बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। बोर्ड की तरफ से अदालत द्वारा अनिवार्य किए गए पूरे प्रोजेक्ट के बजाय इंडीविज्यूअल यूनिट को मंजूरी देने के नोएडा अथाॅरिटी के फैसले को चुनौती दी गई है। बोर्ड का दावा है कि यह पूरी परियोजना के बजाय एक-एक फ्लैट को चुनकर स्वीकृति देने की प्रक्रिया अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का उल्लंघन करती है।

यूनिट-वार स्वीकृति पर विवाद
यूनिटेक के अटके प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपने आवेदन में पूरे प्रोजेक्ट के विकास के लिए स्वीकृति देने के बजाय इंडीविज्यूअल यूनिट को मंजूरी देने के लिए नोएडा प्राधिकरण की आलोचना की। बोर्ड ने कहा कि एक-एक फ्लैट और यूनिट को मंजूरी दिए जाने के बजाय पूरे प्रोजेक्ट को एक इंटीग्रेटेड टाउनशिप के रूप में विकसित किया जाना था। बोर्ड ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष अपने आवेदन में कहा कि यह समझ से परे है कि जब प्रोजेक्ट को समग्र रूप से एक इंटीग्रेटेड टाउनशिप के रूप में विकसित किया जाना चाहिए, तो इंडीविज्यूअल यूनिट के लिए अनुमति कैसे दी जा सकती है।

परियोजना-वार अनुमोदन देने का दिया था सुप्रीम कोर्ट ने आदेश 
बोर्ड के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी को विशेष रूप से परियोजना-वार अनुमोदन प्रदान करने का आदेश दिया था। इसके बजाय, नोएडा अथॉरिटी ने बेचे गए फ्लैट की संख्या के आधार पर इकाइयों को मंजूरी दे रहा है। साथ ही उन लोगों को बाहर कर रहा है जिन खरीदारों ने रिफंड मांगा है। इसके बारे में बोर्ड का तर्क है कि यह व्यवस्था व्यावहारिक नहीं है। बोर्ड ने अपनी फाइलिंग में कहा कि इस तरह की मंजूरी देने में यह अव्यवहारिकता केवल नोएडा के अधिकारियों की मनमानी और अड़ियल रवैये को दर्शाती है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित कई विशिष्ट आदेशों का पालन भी नहीं कर रहे हैं।

बोर्ड ने यह भी चिंता जताई कि इस तरह की स्वीकृति प्रक्रिया से रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (RERA) से विनियामक मंजूरी प्राप्त करने में बाधा आ सकती है। उन्होंने बताया कि पिछले यूनिटेक प्रबंधन द्वारा घर खरीदारों से एकत्र किए गए 70 प्रतिशत फंड अब उपलब्ध नहीं हैं, जिससे इन अटके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करने में समस्या खड़ी हो रही है। बोर्ड की यह अपील ऐसे समय आई है, जब हजारों फ्लैट बायर लंबे समय से अपने फ्लैट पर कब्जा पाने का इंतजार कर रहे हैं। ये अधूरे ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट नोएडा के सेक्टर 96, 97, 98, 113 और 117 में हैं।

31 मई तक अप्रूव्ड किया जाना था संशोधित बिल्डिंग प्लान 
अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश जारी किया था, जिसमें प्लानिंग डिपार्टमेंट के अधिकारियों से 31 मई तक संशोधित बिल्डिंग प्लान को अप्रूव्ड करने की बात कही थी। न्यायालय ने जोर दिया कि इन स्वीकृतियों में फ्लैट और आवश्यक सुविधाओं सहित पूरे प्रोजेक्ट को शामिल किया जाना चाहिए। फ्लैट बायर के योगदान का उपयोग इन प्रोजेक्ट के निर्माण को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए, ताकि अपने घरों का इंतजार कर रहे बायर को उम्मीद मिल सके।

वित्तीय चुनौतियों के साथ बढ़ रही प्रोजेक्ट कॉस्ट 
सरकार द्वारा नियुक्त यूनिटेक बोर्ड ने साल 2020 में यूनिटेक के पूर्व प्रमोटर संजय और अजय चंद्रा द्वारा वित्तीय कुप्रबंधन के आरोपों के बाद रुके हुए प्रोजेक्ट का कंट्रोल अपने हाथ में लिया था। चंद्रा बंधुओं पर वर्तमान में फ्लैट बायर्स को धोखा देने और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं। बोर्ड ने निर्माण लागत में वृद्धि के बारे में बार-बार चिंता व्यक्त की है, जो अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एन वेंकटरमन के अनुसार बढ़कर 11 हजार करोड़ से अधिक हो गई है। पिछली सुनवाई के दौरान, वेंकटरमन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि बोर्ड को शेष फ्लैटों को पूरा करने, बिना बिकी यूनिट को बेचने और प्रोजेक्ट की खाली जमीन को विकसित करने के लिए तत्काल अनुमोदन की आवश्यकता है।

नोएडा अथॉरिटी के अधिवक्ता रवींद्र कुमार द्वारा बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यूनिटेक के पास अभी भी सरप्लस फंड है, जिसमें 8,000 करोड़ बिना बिके फ्लैटों से मिलेंगे और 3,200 करोड़ उन फ्लैट बायर्स से मिलेंगे, जिन्हें अब तक फ्लैट पर कब्जे नहीं मिले हैं। नोएडा प्राधिकरण की तरफ से दलील दी गई कि बोर्ड के पास निर्माण जारी रखने और बचे हुए फ्लैट पर कब्जा दिए जाने के लिए कार्य करने के लिए फंड उपलब्ध थे।

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