Tricity Today | सरस मेले में हुआ विभिन कार्यक्रमों का आयोजन
Gurugram News : एक लंबे अरसे से बिहार और नेपाल में घरों की दीवारों की रौनक बढ़ाने वाली मधुबनी चित्रकला की विकास यात्रा आज आधुनिक पोशाकों तक आ पहुंची है। समय के साथ मधुबनी चित्र को बनाने के पीछे के मायने भी बदल चुके हैं, लेकिन ये कला अपने आप में इतना कुछ समेटे हुए हैं कि आज भी इस कला के कद्रदानों की कमी नहीं है। मधुबनी प्रिंटिंग की यह कला भौगोलिक दायरों को तोड़ने के साथ-साथ आज विभिन्न स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की आय का प्रमुख साधन है।
किया जाता है फैब्रिक कलर का प्रयोग
सरस मेले में स्टाल नम्बर ई-5 पर झारखंड के जिला बोकारो से आई रीता देवी बताती है कि सीता विवाह से शुरू हुई मधुबनी चित्रकला की यह परंपरा शताब्दियों तक शुभ कार्य के मौके पर घर की दीवार सजाने के काम में आती रही है। आज इन पेंटिंग्स में आध्यात्मिक, प्राकृतिक और सामाजिक स्थितियों का विशेष चित्रण किया जा रहा है। बांस की कलम से पेंटिंग ब्रश का सफर तय किया है। मधुबनी चित्रकला ने रीता देवी बताती है कि पहले के समय में उनके पूर्वजों द्वारा पारंपरिक रूप से बांस की कलम से दीवारों को सजाए जाने वाली कला में फूलों और पत्तियों के रस के घोल से मिलाकर आवश्यकता अनुसार रंग का उपयोग किया जाता था। वहीं, आज उनके स्वयं सहायता समूह विष्णु महिला मंडल द्वारा फैब्रिक कलर का प्रयोग किया जाता है।
पैंटिंग में करीब 5 से 6 दिन का लगता है समय
वह बताती है कि पेंटिंग में बारीकी के काम के लिए निब पेन और थोड़े बड़े डिज़ाइन के लिए ब्रश का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बताया कि एक महीन डिज़ाइन की पैंटिंग में करीब 5 से 6 दिन का समय लगता है। पुरखों द्वारा सहेजी गयी इस कला से आज उनका समूह अपनी आजीविका चलाने के साथ-साथ अपनी इस सांस्कृतिक लोक कला के सहयोग से सफल उद्यमी बनने की तरफ अग्रसर है। रीता देवी के स्टाल पर सबसे कम कीमत की पैंटिंग का मूल्य 100 रुपये है। वहीं, सबसे महंगी पैंटिंग करीब 8,500 रुपय में उपलब्ध है।
मधुबनी प्रिंट की पोशाकें दर्शको को कर रही आकर्षित
ऐसा नही है कि सरस मेले में आ रहे दर्शक केवल मधुबनी पेंटिंग्स में ही रुचि ले रहे है। मेले में हरियाणा के जिला झज्जर के गांव तलाव से आई मीनाक्षी और स्नेहलता के स्टाल पर लगी मधुबनी प्रिंट की साड़ियां, दुपट्टे, सूट और मास्क भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। श्री बालाजी स्वयं सहायता समूह की प्रमुख मीनाक्षी बताती है कि 12 सदस्यों के साथ सात साल पहले शुरू हुए उनके ग्रुप ने स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ अपने गांव और आसपास के इलाके की महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का मार्ग प्रशस्त किया है। आज हरियाणा के साथ-साथ अन्य राज्यो में जहां भी मेलों और अन्य महिला उत्थान के कार्यक्रमो का आयोजन होता है। तो उनके समूह द्वारा निर्मित उत्पादों की विशेष मांग रहती है।
संस्कृति से जुड़ी कलाकृतियां कपड़ों पर उकेरते हैं
सरस मेले में बी ब्लॉक के स्टाल नम्बर चार पर उनके पास साड़ी सूट और दुप्पटे पर की गई मधुबनी चित्रकला की विभिन्न वैरायटी उपलब्ध है। साड़ी पर कलाकृति उकेरने में लग जाते है। 5 दिन सिल्क और सूती कपड़ों पर नक्काशी करने वाली स्नेहलता बताती है कि वे अपने उत्पादों में भारतीय संस्कृति से जुड़ी कई तरह की कलाकृतियां कपड़ों पर उकेरते हैं। इसमें सिल्क की साड़ी, कॉटन का सूट, दुपट्टा और मास्क सहित अन्य सामान शामिल हैं। जिस पर फैब्रिक रंग से कलाकृतियां बनाई जाती हैं। स्नेहलता बताती हैं कि एक साड़ी में पेंटिंग करने में 4 से 5 दिन का समय लग जाता है। इस दौरान फ्रेम पर कपड़ों को टाइट कर पहले उनपर पेंसिल से कच्चा वर्क किया जाता है। उसके बाद फैब्रिक रंगों से ब्रश द्वारा कलाकृतियां बनाई जाती हैं।