Uttar Pradesh/Ghaziabad News : नगर निगम चुनाव के नतीजों के बाद अब नगर निगम सदन की तस्वीर बदल गई है। किसी जमाने में बीजेपी के बाद सबसे अधिक पार्षद बीएसपी या कांग्रेस के होते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार बीजेपी के बाद निर्दलीय की संख्या सबसे अधिक है। इस बार 16 निर्दलीय पार्षद हैं, जबकि कांग्रेस, बीएसपी और एसपी के कुल पार्षदों की सदन में संख्या केवल 15 है। नगर निगम सदन में अभी तक बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी और एसपी के पार्षद ही होते थे। पहली बार एआईएमआईएम, आम आदमी पार्टी और अजपा की भी निगम सदन में एंट्री हो गई है। ऐसे में इस बार नगर निगम सदन में सियासी माहौल बदलेगा। अब देखना यह है कि इस बार नगर निगम में सियासी माहौल कैसा होगा।
नए सदन में नहीं दिखेंगे कई पूर्व दिग्गज पार्षद
नगर निगम सदन में इस बार अनुभवी पार्षदों की संख्या ना के बराबर होंगे। दिग्गज कहे जाने वाले कई पार्षदों को बीजेपी ने चुनाव में नहीं उतारा, तो कुछ दिग्गज पार्षद जिन्हें पार्टी ने चुनाव मैदान में उतारा था, वे हार गए। इस कारण नगर निगम के नए सदन में अनुभवी पार्षदों की कमी खलेगी।
1995 में हुआ था नगर निगम का गठन
नगर निगम का गठन 1995 में हुआ था, तब से लेकर अभी तक सभी नगर निगम सदन में तेज तर्रार पार्षद रहे हैं। उन्हें अनुभव के साथ कानूनी तौर पर निगम एक्ट की जानकारी भी रही है। ऐसे अनुभवशील पार्षदों में सबसे बड़ा नाम भाजपा नेता अनिल स्वामी का है। अनिल स्वामी पिछले लगातार छह बार से नगर निगम में पार्षद का चुनाव जीत कर सदन में पहुंचे थे। जब भी कभी निगम सदन में बहस होती थी, तो वह कानून और एक्ट के हिसाब से बात करते थे। ऐसे में निगम के कई अधिकारी सदन में उनके तर्क के सामने ठहर नहीं पाते थे, लेकिन इस बार वह चुनाव हार गए।
राजेन्द्र त्यागी और हिमांशु मित्तल से भाजपा ने किया किनारा
ऐसे ही तेज तर्रार पार्षदों में एक नाम भाजपा नेता राजेन्द्र त्यागी का लिया जाता है। राजेन्द्र त्यागी ने 5 बार नगर निगम में पार्षद का चुनाव लड़ा और हर बार वह विजयी हुए, लेकिन इस बार उन्होंने स्वयं चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी से टिकट की दावेदारी नहीं की थी। ऐसे में इस बार वह भी निगम सदन में नहीं रहेंगे। नगर निगम में एक और तेजतर्रार पार्षद हिमांशु मित्तल रहे है, जिन्हें इस बार बीजेपी ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में वह इस बार सदन में नहीं होंगे। हिमांशु मित्तल ऐसे पार्षद रहें हैं, जिन्होंने निगम में घोटालों से लेकर यूपी सरकार के गलत फैसलों तक का विरोध किया है। कई केस तो आज भी वह हाईकोर्ट में लड़ रहे हैं। बीजेपी ने किरकिरी से बचने के लिए इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया।