Ghaziabad News : बच्चे का मन मस्तिष्क कोमल होता है। वह प्यार और फटकार दोनों न तीव्र प्रतिक्रिया देता है, अभिभावकों को बस यही समझना है। सबसे जरूरी बात यह है कि बच्चे को हमेशा उसके होने की जरूरत का एहसास कराते रहें ताकि बच्चा खुद को इग्नोर फील ना करे। कई बार आप कुछ गलत करने पर इसलिए डांटते हैं क्योंकि आपको उसके साथ कुछ गलत होने का डर होता है, सही मायने में तो आप उसकी चिंता कर रहे होते हैं, लेकिन उसका मैसेज बच्चे को नहीं मिला पाता।
बच्चे को मैसेज करना सीखें
अच्छी पैरेंटिंग कहती है कि बच्चे को मैसेज करना सीखें, डांटने के बजाय बच्चे को अपनी चिंता जाहिर करें। यह अहसास कराएं कि माता- पिता को उसकी कितनी जरूरत है। वरिष्ठ साइकेट्रिस्ट कंसलटेंट डा. साकेतनाथ तिवारी ने यह बातें गोविंदपुरम में 10वीं की छात्रा के द्वारा बहुमंजिला इमारत से छलांग लगाकर जान देने के बाद उपजे बच्चों में आत्महत्या की बढ़ रही प्रवृति के सवाल पर कहीं। छात्रा के अपनी की सहेली के घर से लौटने में देर होने पर मां की नाराजगी की बात सामने आ रही है। डा. तिवारी गाजियाबाद में मानसिक प्रकोष्ठ सेल में तैनात हैं। वह कहते हैं कि बच्चे के दोस्त बनकर रहें। स्कूल में और दोस्तों के साथ उसके व्यवहार पर दोस्ताना नजर रखें ताकि बच्चा आपसे कुछ भी छिपाने की न सोचें।
माता-पिता के आपसी रिश्तों का भी होता है असर
माता-पिता के आपसी रिश्ते भी बच्चों की मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं। जो माता- पिता अक्सर झगड़ते हैं, उनके बच्चे इस बात का एहसास करते हैं और कहीं न कहीं यह बात उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। रविवार देर शाम गोविंदपुरम में हुई घटना में कहीं न कहीं इस बात का प्रभाव रहा होगा। बच्ची के माता-पिता का तलाक हो चुका था, मां ने बेशक उसकी पूरी जिम्मेदारी उठा रखी थी, लेकिन फिर भी पिता के साथ न होने से एक खाली स्थान तो बच्ची के जीवन में था ही। अपनी परेशानी जाहिर करने का एक बड़ा विकल्प इस बच्ची के पास नहीं था। हो सकता है मां से कोई शिकायत होने पर वह अपने पिता से इस बात को शेयर कर लेती और उसके मन में जो आत्मघाती विचार आया वह निकल जाता। कह सकते हैं कि उसके पास अपने नाना- नानी से अपनी बात शेयर करने का विकल्प था, लेकिन ऐसा नहीं है। पिता की जगह नाना- नानी नहीं ले सकते और नाना- नानी की जगह पिता नहीं ले सकते।
बच्चों में आईसोलेशन बढ़ने से हो रही दिक्कत
डा. तिवारी कहते हैं कि बच्चों में आईसोलेशन बढ़ने से उनमें आत्मघाती प्रवृति बढते देखी जा रही है। पहले घर में मेहमान के आने पर बच्चे खुश होते थे, ऐसी ही फीलिंग उन्हें किसी के घर जाने पर भी आती थी, लेकिन अब सब उलट गया है। बच्चे दायरे में रहकर ही घुलते मिलते हैं। किसके साथ खेलना है, किसके साथ नहीं खेलना, इस मामले में ज्यादा चूजी हो गए हैं, पहले ऐसा नहीं था, आज जिसके साथ झगड़ेंगे, कल उसी के साथ खेलते नजर आएंगे। यह बातें बताती हैं कि बच्चों का बचपन समय से पहले छिन रहा है। गैजेट्स के बढते इस्तेमाल ने बच्चों को समय से पहले बड़ा बना दिया है। इसलिए उन्हें बच्चा मानकर यूं की किसी बात पर न झिड़क दें। उन्हें प्यार से समझाएं। उनके हमराज बनने का प्रयास करें।
अपेक्षा, डर और अकेलापन घातक : डा. राकेश गुप्ता
गाजियाबाद में मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी डा. राकेश गुप्ता ने बताया कि आत्महत्या के तीन कारण होते हैं - अपेक्षा, डर और अकेलापन। तीनों मामलों में परिवार का बड़ा योगदान होता है। परिवार के सदस्य यदि एक दूसरे को इस बात का अहसास कराएंगे कि उन्हें एक -दूसरे की कितनी जरूरत है तो अकेलापन हावी नहीं हो पाएगा। एक-दूसरे की जरूरत के बारे में सीधे बोलने के बजाय इस बात को अपने व्यवहार से प्रदर्शित करें। किसी सदस्य को यदि घर लौटने में देर हो रही है तो उसे अहसास कराएं कि हम उसके न लौटने पर चिंतित हैं, इसी चिंता को यदि आप गुस्से में जाहिर करेंगे तो स्थिति उलट जाएगी। गुस्सा हरगिज न करें। कोई नकारात्मक बात कर रहा है उसे इग्नोर न करें, बल्कि उसे समय देकर समझने और समझाने का प्रयास करें। बच्चों पर परीक्षा में अधिक नंबर लाने का दवाब न बनाएं।