गाजियाबाद में कोरोना वायरस के वजह से संकट गहराता जा रहा है। मरीजों को अस्पताल-ऑक्सीजन, बेड और इलाज के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। निवासियों की इस मजबूरी का भी फायदा उठाकर कुछ ठग अपनी झोली भर रहे हैं। कोरोना संक्रमित मरीजों को नामचीन अस्पतालों में आईसीयू, वेंटीलेटर और बेड दिलाने के नाम पर ठगी करने वाले गिरोह के दो ठगों को घंटाघर कोतवाली पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम ने संयुक्त रूप से कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार किया है। पुलिस ने इनके पास से 1 लाख 95 हजार रुपए बरामद किए हैं।
5 सदस्यों का गिरोह था सक्रिय
शनिवार को एसपी सिटी प्रथम निपुण अग्रवाल ने बताया कि डीआईजी अमित पाठक के निर्देश पर कोतवाली प्रभारी संदीप कुमार सिंह और क्राइम ब्रांच प्रभारी इंस्पेक्टर संजय पांडेय ने टीम के साथ शनिवार की दोपहर में क्षेत्र से मंयक पुत्र सतीश खन्ना निवासी पटेलनगर-तृतीय एवं प्रदीप गौड़ पुत्र सत्यवीर सिंह निवासी ग्राम रमाला बागपत हाल पता एच-4 सेक्टर-23 संजयनगर को गिरफ्तार किया है। एसपी सिटी ने बताया कि ये दोनों कोरोना संक्रमित मरीजों के पीडि़त परिजनों से उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर धोखाधड़ी कर मैक्स, यशोदा, जिला एमएमजी अस्पताल आदि में आईसीयू, वेंटीलेटर बेड दिलाने के नाम पर ठगी करते थे। पूछताछ में पता चला है कि मयंक, प्रदीप गौड़ समेत 5 युवकों का गैंग है। इनके साथी यश महेता, गौतम वार्ष्णेय और सतीश फरार हैं। गिरोह का सरगना मयंक है।
मैक्स अस्पताल में भर्ती कराने का झांसा देते थे
इस गिरोह के सदस्य लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं। ये अस्पतालों के बाहर खड़े होकर भर्ती कराने आए लोगों की पहचान करते हैं। फिर उनसे ठगी करते हैं। मयंक और यश मेहता डॉक्टर चिराग, अमित या अन्य डॉक्टरों के नाम से मदद करने के नाम पर अस्पतालों में आईसीयू बेड, वेंटीलेटर आदि सुविधा दिलाने का विश्वास दिलाते थे। ये मैक्स अस्पताल में तैनात होने का हवाला देकर पीडि़त परिजनों को विश्वास में लेते थे। मरीज का आधार कार्ड, आरटी-पीसीआर रिपोर्ट, ऑक्सीजन लेवल और दूसरी जरूरी रिपोर्ट मोबाइल नंबर- 9891844920 पर व्हॉटसएप पर मंगाते थे। फिर बाद में उनसे पैसे की डिमांड करते थे। पैसे मिल जाने पर ये जवाब देना बंद कर देते थे।
फर्जी खाते के लिए 30 फीसदी हिस्सा देते थे
इस गैंग का सदस्य सतीश बात करने के लिए फर्जी आईडी के आधार पर सिम उपलब्ध कराता है। गौतम वार्ष्णेय अस्पातों के नाम पर अपना खाता नंबर लोगों को बताता है। इस फर्जी खाते के बदले में ठगी की राशि का करीब 30 फीसदी हिस्सा उसे दिया जाता है। बाकी बची हुई राशि को अन्य चारों आपस में बांट लेते हैं। पूछताछ में मयंक और प्रदीप ने बताया कि वे दोनों बी.कॉम की डिग्री हासिल कर चुके हैं। ठगी करने के बाद मोबाइल, सिम और फर्जी आधार कार्ड को जला देते हैं ताकि कोई सुराग न मिले। ये शातिर बदमाश गूगल पर जाकर मैक्स अस्पताल के वेबसाइट को कॉपी कर उसमें अपना नंबर पेस्ट कर देते थे। पीड़ित लोग गूगल से इन नंबरों पर मदद के लिए कॉल करते थे। उसके बाद ये अपनी ठगी का षडयंत्र रचते हैं।
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