Ghaziabad News : सियासत में कब क्या हो जाए, कहां नहीं जा सकता। 2012 में जिले की पांच में से चार विधानसभा सीटों पर विजय पताका लहराने वाला हाथी अब बेहाल है। गाजियाबाद विधानसभा सीट की ही बात करें तो तब से बसपा का हाथी हर चुनाव में एक पायदान नीचे उतरा। हाल में हुए उपचुनाव में चौथे नंबर पर रहे बसपा प्रत्याशी पीएन गर्ग अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। अब बहनजी ने पीएन गर्ग को महानगर की कमान सौंप दी है। इससे पहले बसपा सुप्रीमों ने जिलाध्यक्ष दयाराम सेन को हटाकर यह जिम्मेदारी नरेंद्र मोहित को सौंपी थी।
पहली बार वैश्य को इतनी बड़ी जिम्मेदारी
पहली बार किसी उपचुनाव में उतरने के बाद बसपा जीरो पर आउट हो गई। बसपा हाईकमान ने उपचुनाव के नतीजे आने के साथ ही पार्टी में फेरबदल शुरू कर दिया और स्थिति यहां तक पहुंच गई कि कभी “तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” का नारा देने वाली पार्टी ने पहली बार किसी वैश्य को महानगर की कमान सौंप दी। गाजियाबाद में तो इतनी बड़ी जिम्मेदारी किसी वैश्य को मिलने का उदाहरण नहीं मिलता। तो इसके मायने क्या समझे जाएं, क्या बहनजी ने नई सोशल इंजीनियरिंग पर काम शुरू कर दिया है।
उपचुनाव के बाद बड़ा उलटफेर
उपचुनाव के नतीजे निश्चिततौर पर बसपा के लिए बड़े निराशाजनक रहे हैं, हालांकि उपचुनाव को लेकर पार्टी की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बसपा सुप्रीमों कहीं चुनाव प्रचार में नजर नहीं आईं, लेकिन नतीजों के बाद बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा फेरबदल किया है। बहनजी ने गाजियाबाद के साथ ही गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, मेरठ और बागपत के जिलाध्यक्षों को हटाकर नए चेहरों को तवज्जो दी है।