Ghaziabad News : हिंडन नदी का इतिहास काफी रोचक है। इस नदी का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। महाभारत काल से लेकर स्वतंत्रता की पहली लड़ाई तक में इस नदी का वर्णन है। हिंडन को पहले हरनदी या हरनंदी नाम से भी जाना जाता था। नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश से होता है और उत्तर प्रदेश में ही इसका समापन हो जाता है। हिंडन नदी में अब से वर्ष 1978 में बाढ़ आई थी। तब गाजियाबाद शहर में पुराने बस अड्डे तक बाढ़ का असर देखने को मिला था।
वर्षा आधारित नदी
हिंडन नदी उत्तरी भारत में यमुना नदी की सहायक नदी है। इसका पुराना नाम हरनदी या हरनंदी है। यह पूर्णतः वर्षा आधारित नदी है। इसे बरसाती नदी भी कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में निचले हिमालय क्षेत्र के शिवालिक पर्वतमाला में स्थित शाकंभरी देवी की पहाड़ियों से निकलती है और उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा के निकट तिलवाड़ा नामक स्थान पर यमुना नदी में मिल जाती है। इसे यमुना नदी की सहायक नदी भी कहा जाता है। इसकी लंबाई 400 किलोमीटर और इसका बेसिन क्षेत्र 7083 वर्ग किलोमीटर है।
हिंडन के किनारे बसे प्रमुख शहर
हिंडन नदी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, और गौतमबुद्धनगर जिलों में बहती है। हिंडन नदी के किनारे गाजियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे बड़े शहर बसे हुए हैं। हिंडन नदी का पानी काला है। स्थानीय लोगों का कहना है कि नदी का रंग लाल, हरा, पीला या गहरा काला हो जाता है। इसका एक बड़ा कारण इस नदी में गिरने वाले नाले हैं। हिंडन नदी में पानी का रंग, रंगाई फैक्ट्रियों द्वारा प्रमुखता से उपयोग किए जाने वाले रंग पर निर्भर करता है। उत्तर प्रदेश की हिंडन नदी का एक बड़ा हिस्सा औद्योगिक कचरे के कारण जहरीला हो गया है। इसका रंग भी काला हो गया है। वर्ष 1955 से पहले इस नदी का पानी साफ और पीने योग्य हुआ करता था।
नदी का ऐतिहासिक महत्व
महाभारत काल में इस नदी को हरनदी या हरनंदी के नाम से जाना जाता था। हिंदू धर्म ग्रंथों में इस नदी का वर्णन मिलता है। महाभारत काल के इतिहास में बागपत के बरनवाल स्थान का वर्णन मिलता है। जहां पांडवों का वध करने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण कराया था। इसी के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भी हिंडन नदी का जिक्र है। सन 1857 की प्रथम स्वतंत्रता क्रांति के दौरान हिंडन नदी पर अंग्रेजी हुकूमत और भारतीय क्रांतिकारियों के बीच जंग की भी गवाह रही है यह ऐतिहासिक नदी।