Greater Noida News : भारतीय प्रशासनिक सेवा में वर्ष 2005 बैच के युवा आईएएस अफसर सुरेंद्र सिंह को फैसले लेने और काम को समय पर निपटाने के लिए जाना जाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें मेरठ से ग्रेटर नोएडा भेजा है। बुधवार को उन्होंने विधिवत ग्रेटर नोएडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी के रूप में कार्यभार ग्रहण कर लिया है। अपना 10 पॉइंट एक्शन प्लान बता दिया है। राज्य में भले ही औद्योगिक गतिविधियां पटरी पर लौट आई हैं, लेकिन ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण का यह दौर चमकदार नहीं है। शानदार वर्ल्ड क्लास दफ्तर से चलने वाली यह अथॉरिटी भारी-भरकम कर्ज के तले दबी है। अपने सबसे बुरे दौर से शहर गुजर रहा है। इस शहर के शुरुआती दौर में यहां आकर बसे लोग कहते हैं, "एक वक्त में खूबसूरती के लिए जाना जाने वाला ग्रेटर नोएडा फिलहाल बदहाली पर आंसू बहा रहा है।" प्राधिकरण में हावी भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और काम को लटकाकर रखने की प्रवृत्ति ने छवि खराब की है। बिल्डरों की मनमानी के चलते लाखों बायर परेशान हैं। किसानों से जुड़े मुद्दों का दशकों से समाधान नहीं हुआ है। कुल मिलाकर ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की कुर्सी पर बैठते ही 5 बड़ी चुनौतियां सुरेंद्र सिंह को घेरकर खड़ी हो गई हैं।
1. कर्ज तले दबा और नोएडा-यमुना अथॉरिटी से पिछड़ गया ग्रेटर नोएडा : ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण करीब एक दशक से भारी-भरकम कर्ज के तले दबा हुआ है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्राधिकरण रोजाना करीब एक करोड़ रुपए ब्याज के तौर पर चुकता है। फिलहाल, 10 हजार करोड रुपए से ज्यादा कर्ज अथॉरिटी के ऊपर है। यह कर्ज बैंकों और नोएडा अथॉरिटी से लिया गया है। पहले बहुजन समाज पार्टी और फिर समाजवादी पार्टी की सरकारों के दौरान किए गए अनाप-शनाप खर्च ने यह हालात पैदा किए। इसी वजह से एक वक्त में नोएडा से आगे निकल चुका ग्रेटर नोएडा अब लगातार पिछड़ रहा है। मौजूदा दौर में गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरणों में सबसे बुरा दौर ग्रेटर नोएडा का है। पिछले दिनों ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को एक और बड़ा झटका लगा, जब केंद्र और राज्य सरकार ने नया नोएडा बसाने की जिम्मेदारी नोएडा अथॉरिटी को सौंप दी। पिछले 5 वर्षों के दौरान उद्यमियों और निवेशकों का रुझान देखा जाए तो ग्रेटर नोएडा के मुकाबले नोएडा और यमुना अथॉरिटी के प्रति बेहतर माहौल रहा है। सुरेंद्र सिंह के सामने कर्ज खत्म करने और उद्योग जगत में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के प्रति विश्वास बहाल करने की बड़ी चुनौती रहेगी।
2. प्राधिकरण में भ्रष्टाचार और स्वेच्छाचरिता : ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य सरकार के तमाम प्रयास और दबाव अभी तक विफल रहे हैं। आम आदमी को छोटे-छोटे कार्यों के लिए दफ्तर व कर्मचारियों के धक्के खाने पड़ते हैं। इनकी रिश्वतखोरी से जुड़े तमाम मामले सामने आते रहे हैं। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह अथॉरिटी अफसरों और कर्मचारियों में स्थानीय नेताओं के रिश्तेदारों की भरमार है। तमाम नेताओं के बेटे, दामाद, भाई-भतीजे और दूसरे रिश्तेदार अथॉरिटी में तैनात हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछले कार्यकाल के दौरान इन सबके ग्रेटर नोएडा से बाहर तबादले किए थे। धीरे-धीरे इन अफसरों के सरपरस्त नेता सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल होते गए और यह सारे लोग वापस ग्रेटर नोएडा लौट आए। इनके दबाव के चलते सीईओ, एसीईओ, ओएसडी और महाप्रबंधक स्तर के चाहकर भी काम करवाने में नाकामयाब रहते हैं। यहीं से भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है। कर्मचारियों और अधिकारियों का गठजोड़ भूमाफिया और अवैध कोलोनाइजेशन करने वालों के साथ है। शहर अवैध धंधों का गढ़ बनता जा रहा है।
3. अनियोजित विकास और भूमाफिया को संरक्षण : ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के दायरे में पिछले एक दशक के दौरान अनियोजित विकास तेजी के साथ हुआ है। शाहबेरी के पैटर्न पर ग्रेटर नोएडा वेस्ट, दादरी और ग्रेटर नोएडा के आसपास वाले गांवों में व्यापक पैमाने पर अवैध कॉलोनी और हाउसिंग सोसायटी बसाई गई हैं। बड़ी बात यह है कि यह अवैध कॉलोनी बसाने वाले लोगों को प्राधिकरण अफसरों का संरक्षण है। प्राधिकरण में तैनात कई बड़े अफसरों के रिश्तेदार इस तरह का अवैध कॉलोनाइजेशन कर रहे हैं। जिले के कई नेता और रसूखदार लोग इन अवैध कालोनियों में हिस्सेदार हैं। दरअसल, पहले बहुजन समाज पार्टी और फिर समाजवादी पार्टी सरकारों के कार्यकाल में इन्हीं लोगों ने अपने रसूख का इस्तेमाल करके आबादी के नाम पर बड़ी-बड़ी जमीनें भूमि अधिग्रहण से बाहर करवाई थीं। अब इन जमीनों पर अवैध कॉलोनी और हाउसिंग सोसायटी बसाकर करोड़ों रुपए कमाए जा रहे हैं। ऐसे हालात में अनियोजित विकास और अवैध निर्माण को रोकना नए सीईओ सुरेंद्र सिंह के लिए बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, बुधवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए सुरेंद्र सिंह ने साफतौर पर कहा है, "भूमाफिया का साथ देने वाले प्राधिकरण अफसरों और कर्मचारियों को भी भूमाफिया घोषित करवाएंगे। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने और गिरफ्तारी करवाने से गुरेज नहीं बरतेंगे। उनकी प्राथमिकता के साथ ही यह बड़ी चुनौती स्वतः उनके सामने आकर खड़ी हो जाती है।
4. किसानों के आंदोलन, मांगें और ग्रामीण विकास : ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की स्थापना के साथ ही किसानों का विरोध शुरू हो गया था। यहां के किसान खुद को इस विकास से दूर मानते आए हैं। पिछले एक दशक के दौरान 64.7% अतिरिक्त मुआवजा, 6%, 7% और 10% आबादी भूखंडों से जुड़े मामले लटके हुए हैं। इसके अलावा आबादी निस्तारण, बैकलीज मामले, दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल रेलवे कॉरिडोर से प्रभावित किसानों की मांग खत्म नहीं हो रही हैं। लगातार किसान आंदोलन चल रहे हैं। पिछले करीब एक वर्ष से डीएमआईसीडीसी से प्रभावित किसान धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान आंदोलनों के चलते नोएडा विकास प्राधिकरण और शहर की छवि धूमिल होती है। दूसरी तरफ शहरी सेक्टरों के मुकाबले गांवों का विकास एक बड़ा मुद्दा है। अथॉरिटी के दायरे वाले लगभग सभी गांवों में ग्राम पंचायतें खत्म हो चुकी हैं। ग्रामीणों को जन सुविधाएं मुहैया कराने और ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी पूरी तरह अथॉरिटी के ऊपर है। पिछले 5 वर्षों के दौरान गांवों में जन सुविधाएं प्राधिकरण अपने हाथों में ली हैं, लेकिन जिन एजेंसियों का चयन किया गया है, उनके संचालक और ठेकेदार नेताओं से ताल्लुक रखते हैं। जिसके चलते गांवों में सफाई और दूसरी व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं। सफाई कर्मचारी गांवों में नहीं जाते हैं। गांव वाले प्राधिकरण अफसरों से शिकायत करते हैं तो नेताओं के दबाव में कोई कार्यवाही नहीं होती है।
5. बिल्डरों की मनमानी और बायर्स की परेशानी : ग्रेटर नोएडा शहर और खासतौर से ग्रेटर नोएडा वेस्ट की हाउसिंग सोसाइटीज में रहने वाले लोगों की परेशानियां बड़ी चुनौती हैं। एक दशक से ज्यादा वक्त बीतने के बावजूद हजारों फ्लैट खरीदारों को उनके घर नहीं मिल पाए हैं। जिन्हें घर मिल गए हैं, उनके फ्लैट की रजिस्ट्री नहीं हो पा रही है। दरअसल, बिल्डर हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में घर बेचकर गायब हैं। प्राधिकरण का हजारों करोड़ रुपया कंपनियों में फंसा है। जिसके चलते कंपलीशन सर्टिफिकेट और ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट जारी नहीं हो पा रहे हैं। एक और बड़ी परेशानी हाउसिंग सोसाइटीज में बढ़ रही समस्याएं हैं। सोसायटीज में बिजली, पानी और सफाई का संकट है। बिजली कटौती, महंगी बिजली आपूर्ति और प्रीपेड मीटर के जरिए मेंटिनेंस चार्ज से कटौती हो रही है। सुरक्षा इंतजाम पुख्ता नहीं हैं। ग्रेटर नोएडा वेस्ट की सड़कें बदहाल हैं। वेस्ट में स्कूल, अस्पताल, खेल का मैदान और कॉलेज की मांग चल रही हैं। बिजलीघर, बैंक और डाकघर नहीं हैं। ट्रैफिक जाम से पूरा शहर बदहाल है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट समस्याओं और बदहाली का शहर बन गया है। इसके लिए बिल्डरों की मनमानी हावी है। फ्लैट्स बेचते वक्त बिल्डरों ने आम आदमी से बड़े वादे किए लेकिन शर्तें पूरी नहीं की हैं। जिससे खरीदार परेशान हैं।