Greater Noida News : अनिल दुजाना एनकाउंटर में मारा गया, लेकिन अपने पीछे काफी सारी चीजें छोड़ कर चला गया है। अपराधिक दुनिया में कदम रखने के बाद सबसे पहले गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में प्रॉपर्टी पर अनिल दुजाना ने कब्जा करना शुरू किया था। जमीन पर कब्जा करने के बाद अनिल दुजाना और उसके साथी प्रॉपर्टी पर "जय दादी सती" और "JDS" लिख देते थे। इसका मतलब था कि इस जमीन पर अब अनिल दुजाना का कब्जा है। उसके बाद उस जमीन पर हाथ डालने की हिम्मत कोई अन्य व्यक्ति नहीं करता था। जिसके बाद लगातार JDS को खौफ बढ़ता गया और अब पूरे उत्तर प्रदेश में JDS कोड अनिल दुजाना के नाम से मशहूर हो गया।
पैरोल पर आकर करता था "जय दादी सती" की पूजा
अनिल दुजाना "जय दादी सती" की पूजा करता था। जब भी वह पैरोल पर बाहर आता था तो दुजाना गांव में जय दादी सती मंदिर में जाकर पूजा-पाठ करता था। अगर अनिल दुजाना किसी संपत्ति पर कब्जा कर लेता था तो उसपर जय दादी सती लिख देता था। उसके बाद दूसरे पक्ष की हिम्मत उस जमीन पर हाथ डालने की नहीं होती थी। जय दादी सती को कोड वर्ड में JDS लिखा जाता है।
प्रोपर्टी से लेकर गाड़ी तक पर लिखा हुआ है JDS
बताया जाता है कि अनिल दुजाना की हर गाड़ी के ऊपर JDS लिखा हुआ है। इसके अलावा उसके घर पर और अन्य अवैध संपत्ति पर भी JDS लिखा हुआ है। इसको अनिल दुजाना का कोड कहा जाता है। बताया जाता है कि शादी के बाद अनिल दुजाना ने हिंदू रीति रिवाज के साथ जय दादी सती मंदिर में पूजा-पाठ की थी। वह कुछ दिनों की पैरोल पर आकर अक्सर अपने परिवार को मंदिर जाता था।
युवाओं में JDS कोड का क्रेज
आपको बता दें कि अनिल दुजाना का कोड वर्ड JDS था। कुछ युवकों में इसका काफी क्रेज भी है। काफी सारे युवक अपनी गाड़ी के शीशे पर JDS लिखवा कर घूमते हैं। बताया जाता है कि अधिकतर दुजाना गांव के अलावा पूरे गौतमबुद्ध नगर और वेस्ट यूपी में कई गांव के लोगों ने अपनी गाड़ी के शीशों पर JDS लिखाया हुआ है। यह भी माना जाता है कि गुर्जर समाज के कुछ युवा अनिल दुजाना को अपना हीरो मानते हैं।
कैसे बना 'जय दादी सती' मंदिर
दुजाना गांव में जय दादी सती की स्थापना करीब 265 साल पहले हुई थी। बताया जाता है कि उस समय दुजाना गांव के रहने वाले भागीरथ सिंह का विवाह हरियाणा के पाली गांव में रहने वाली रामकौर से हुआ था। भागीरथ सेना में तैनात थे। विवाह के तुरंत बाद वह अपनी पलटन के साथ बॉर्डर पर चले गए थे और वहां पर दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। बताते हैं कि शहीद होने की सूचना मिलने से पहले उनकी पत्नी रामकौर को अनिष्ट होने का आभास हो गया था। उन्होंने तभी सती होने का प्रण लिया और अपने पति के शहीद होने की सूचना मिलने से पहले ही सती हो गई थी। जहां पर देवी रामकौर ने अग्नि समाधि ली थी। उसी स्थान पर "जय दादी सती" मंदिर का निर्माण हुआ है।