हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से बड़े अफसरों के दलाल, एक से बढ़कर एक कारनामा

किसान आबादी भूखंड घोटाला : हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से बड़े अफसरों के दलाल, एक से बढ़कर एक कारनामा

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से बड़े अफसरों के दलाल, एक से बढ़कर एक कारनामा

Tricity Today | किसान आबादी भूखंड घोटाला

Greater Noida : ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण से लाभ लेने के लिए लोगों ने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। गैर कानूनी फायदे अदालतों ने नहीं दिए। लिहाजा, ऐसे लोगों ने फिर दलालों की शरण में जाना मुनासिब समझा। चौंकाने वाली बात तो यह है कि जो फायदे इन लोगों को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नहीं दे पाए, मामूली दलालों ने दिलवा दिए। दूसरी ओर आम और छोटे किसान धक्के खाने के लिए मजबूर हैं। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में तैनात तमाम अफसरों ने किसानों के आबादी भूखंड खरीदे हैं। कई अधिकारी तो ऐसे हैं, जिन्होंने अपने और अपने रिश्तेदारों के नाम पर थोक के भाव किसानों के आवासीय भूखंड खरीद रखे हैं। यह सारा खेल आम किसान को मजबूर करके खेला गया है।

पुश्तैनी-गैर पुश्तैनी का नियम तोड़ा
ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण की 26वीं और 57वीं बोर्ड बैठक में पुश्तैनी और गैर पुश्तैनी किसानों का निर्धारण किया गया था। जिसके मुताबिक प्राधिकरण क्षेत्र से बाहर के निवासियों को गैर पुश्तैनी घोषित किया गया है।  इन लोगों को स्थानीय किसानों की बराबर मुआवजा देने का प्रावधान है, लेकिन भविष्य में होने वाले आबादी विस्तार के लिए आवासीय भूखंड देने का प्रावधान नहीं है। प्राधिकरण की पॉलिसी को दरकिनार करते हुए हजारों की संख्या में गैर पुश्तैनी लोगों को आवासीय भूखंडों का लाभ दिया गया है। यह लोग ना केवल उत्तर प्रदेश में दूसरे जिलों के बल्कि दूसरे राज्यों के निवासी हैं। ऐसी लंबी-चौड़ी लिस्ट 'ट्राईसिटी टुडे' के पास उपलब्ध है।

2,500 वर्गमीटर की नीति का खुला उल्लंघन
मामला नंबर-1 : पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'गजराज बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' और फिर सुप्रीम कोर्ट ने 'सावित्री देवी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' में निर्धारण किया था कि किसानों को न्यूनतम 120 वर्गमीटर और अधिकतम 2,500 वर्गमीटर का भूखंड दिया जाएगा। इस व्यवस्था का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। हैबतपुर गांव की आवंटन सूची में क्रम संख्या 200, 201, 202 और 203 पर कमला देवी पत्नी तिलक सिंह को चार भूखंड आवंटित किए गए हैं। चारों भूखंड 625-625 वर्गमीटर के आवंटित किए गए। कमला देवी की जमीन का अधिग्रहण खसरा नंबर 151 और 157 से किया गया। इसी खसरा नंबर में अधिग्रहण दिखाकर निर्मला देवी पुत्री तिलक सिंह को चार और भूखंड क्रम संख्या 219, 220, 221 और 222 पर आवंटित किए गए हैं। इन चारों भूखंडों का क्षेत्रफल भी 625-625 वर्गमीटर है। इसी खसरा नंबर के लिए क्रम संख्या 228 पर राजेंद्र प्रसाद पुत्र बदले राम को 930 वर्गमीटर भूखंड आवंटित है। क्रम संख्या 229 और 230 पर राजेंद्र सिंह पुत्र अमृत सिंह के नाम दो भूखंड आवंटित किए गए हैं, जिनका क्षेत्रफल 610-610 वर्गमीटर है। फिर क्रम संख्या 246 पर सुनीता देवी पत्नी रामपाल भाटी के नाम 930 वर्गमीटर भूखंड आवंटित किया गया है। कुल मिलाकर 13 भूखंडों के जरिए 8,610 वर्गमीटर जमीन इन लोगों को वापस लौटाई गई है।

मामला नंबर-2 : कासना गांव में कुछ बाहरी लोगों से भूमि अधिग्रहण किया गया था। इन सभी को गैर पुश्तैनी होने के बावजूद पहले 5% और फिर 5% आबादी भूखंड दिए गए हैं। यह व्यवस्था पॉलिसी में ही नहीं है। सही ढंग से 6% और 4% भूखंड देने चाहिए। इन सभी को कॉमन खसरा नंबर होने की वजह से अधिकतम 2,500 वर्गमीटर का भूखंड दिया जा सकता था। अथॉरिटी ने इन लोगों को क्रम संख्या 74 से 80 तक पहले 530-530 वर्गमीटर के सात भूखंड और फिर 540-540 वर्गमीटर के सात और भूखंड आवंटित किए हैं। इन सभी 14 भूखंडों का क्षेत्रफल 7,490 वर्गमीटर है। यह पूरी तरह नियम विरुद्ध है।

अब आम किसान की कहानियां
मामला नंबर-1 : सैनी गांव के निवासी डॉ.ज्ञानेंद्र सिंह, जागे सिंह नागर, अजीत सिंह, रूगी सिंह और सत्ते सिंह पुत्रगण मोहर सिंह की जमीन वर्ष 2006 में अधिग्रहीत की गई। यह अधिग्रहण खसरा संख्या 62, 65, 584 और 599 में किया गया था। डॉ.ज्ञानेंद्र सिंह, जागे सिंह नागर और अजीत सिंह को भूखंड आवंटन किया गया। इन्हें सैनी गांव की सूची में क्रम संख्या 388 पर 250 वर्गमीटर का एक भूखंड आवंटित कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले और अथॉरिटी की पॉलिसी के मुताबिक इन सभी को अलग-अलग 120 वर्गमीटर के भूखंड आवंटित किए जाने चाहिए। एक और ख़ास बात यह है कि इनके दो भाइयों रूगी सिंह और सत्ते सिंह को 80-80 वर्गमीटर के भूखंड आवंटित किए गए हैं। वे भूखंड अतिक्रमित और विवादित भूमि पर आवंटित किए गए हैं। ये सभी लोग हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पिटीशनर हैं।

मामला नंबर 2 : सैनी गांव के ब्रह्मपाल, मांगेराम, फ़िरेराम, किरणपाल और चंद्रपाल पुत्रगण हरिराम की 6,457 वर्गमीटर भूमि खसरा नंबर 551, 553, 480, 545 से प्राधिकरण ने अधिग्रहीत की है। इन पांचों किसानों को एकसाथ केवल 6% भूखंड आवंटित किया गया है। यह लोग हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचीगण हैं। इसके बावजूद इन्हें 4% अतिरिक्त भूखंड का आवंटन नहीं किया गया है।

दलालों के आगे सब फेल
अब दलालों का खेल समझिए। कासना गांव में साल 2005 और 2006 में अधिग्रहण हुआ। जिसके लिए भूखंड आवंटन साल 2014 में किया गया। आवंटन सूची में क्रम संख्या 15 पर आशा मित्तल पत्नी भारत भूषण का नाम है। आशा मित्तल का पता दिल्ली में शास्त्री नगर बताया गया है। लिहाजा, आशा मित्तल गैर पुश्तैनी हैं। उन्हें आवासीय भूखंड का लाभ नहीं मिल सकता है। इनकी खसरा नंबर 25/32 से 7,000 वर्गमीटर जमीन अधिग्रहीत की गई थी। जिसके लिए अथॉरिटी ने सीधे 10% भूखंड 700 वर्गमीटर का दिया है। लेकिन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए 140-140 वर्गमीटर के पांच अलग-अलग भूखंड दे दिए गए।

आम किसान जरूरत होने के बावजूद उपखंड नहीं करवा पा रहा है। ताजा मामला सैनी गांव का है। गांव के विजयपाल पुत्र फूल सिंह ने प्राधिकरण में आवेदन किया था। उन्हें प्लॉट नंबर 275 आवंटित किया है। जिसका क्षेत्रफल 140 वर्गमीटर है। यह भूखंड टू साइड ओपन है। किसान ने इसके दो टुकड़े करने की मांग की थी। अब प्राधिकरण ने विजयपाल को 02 सितंबर 2022 को जवाब दिया है, "प्राधिकरण की 104वीं बोर्ड बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार 140 वर्गमीटर क्षेत्रफल वाले भूखंड के 70-70 वर्गमीटर के उपखण्ड नहीं किए जा सकते हैं।

क्या हैं नियम
ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी दीपक अग्रवाल ने 18 अप्रैल 2016 को एक कार्यालय आदेश जारी किया था। आदेश में साफ तौर पर लिखा गया है कि प्राधिकरण की 104वीं बोर्ड बैठक के एजेंडा नंबर तीन में भूखंडों के विभाजन की व्यवस्था है। जिसके तहत अधिकतम चार खंड किए जा सकते हैं। उपखण्ड का न्यूनतम क्षेत्रफ़ल 120 वर्गमीटर होना चाहिए। कासना में आशा मित्तल प्रकरण में बिना पॉलिसी विभाजन किया गया। अब तो गांवों में अन्धांधुन्ध विभाजन किए जा रहे हैं। जिसमें उपखंडों की संख्या 17 तक है। पिछले दिनों पतवाड़ी गांव में एक भूखंड के 16 हिस्से करवाए गए हैं। इनका क्षेत्रफल 60 वर्गमीटर तक है। अधिकांश भूखंड 10-12 टुकड़ों में विभाजित किए जा रहे हैं। जिससे छोटे-छोटे भूखंडों की कीमत बढ़ जाती है।

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