आरएसएस प्रमुख ने बोलीं ऐसी बात, सुनकर लोगों का सीना हुआ चौड़ा

ग्रेटर नोएडा में मोहन भागवत : आरएसएस प्रमुख ने बोलीं ऐसी बात, सुनकर लोगों का सीना हुआ चौड़ा

आरएसएस प्रमुख ने बोलीं ऐसी बात, सुनकर लोगों का सीना हुआ चौड़ा

Social Media | ग्रेटर नोएडा में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

Greater Noida News : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को ग्रेटर नोएडा की जनता को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने ऐसी बातें बोलीं, जिसको सुनकर लोग कार्यक्रम से सीना चौड़ा करके निकले। उनको भारतीय होने पर गर्व होने लगा। लोगों को अंदाजा हुआ कि हम जैसा पूरी दुनिया में कोई नहीं है। मोहन भागवत ने बताया, "आज के समय में पूरी दुनिया भारत का जादू देख रही है। भारत ने काफी तेजी के साथ ऊंचाई हासिल की और आगे भी करता रहेगा। जो लोग कभी भारत को गुलाम बनाकर रखते थे, आज वही हमारी संस्कृति और जादू देखने के लिए बेताब हैं।"

ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी में प्रबुद्धजनों के साथ संवाद
दरअसल, आरएसएस के द्वारा अलग-अलग जिलों में प्रवास किया जाता है। इसी के तहत इस बार गौतमबुद्ध नगर जिले का चयन किया गया। डॉ.मोहन भागवत ने रविवार को शारदा यूनिवर्सिटी के ऑडिटोरिम में प्रबुद्ध नागरिकों के साथ संवाद किया। इस दौरान उन्होंने कहा, “हम बने हैं। हमें बनाया नहीं गया है। हमारा जीवन प्राकृतिक रूप से सदियों से चल रहा है। भारत प्राकृतिक रूप से चारों तरफ से सुरक्षित है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि पूरी दुनिया के राष्ट्र एक लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्पन्न हुए हैं। उस लक्ष्य को हासिल करने के बाद उनका अवसान हो जाता है। जब इतिहास का जन्म हुआ तो उसने हमें राष्ट्र के रूप में देखा था। हमारा राष्ट्र सनातन है। तब भी विविधता थी। हम तब भी बहुभाषी थे। सब प्रकार की आबोहवा थी। भारत का प्रयोजन अक्षय है। दुनिया को इसकी आवश्यकता सदैव है। इसलिए भारत की यात्रा अनंत है।”

विश्व में अशांति का कारण अपनेपन का अभाव
मोहन भागवत ने आगे कहा कि अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में कहा गया है, हम पृथ्वी के पुत्र हैं। सीमा का कोई उल्लेख नहीं था। समृद्धि थी तो बाहर से आने वालों से कोई विवाद नहीं था। सारे विश्व को अपना परिवार मानने वाला वैविध्यपूर्ण समाज उस समय से आज तक चल रहा है। उन्होंने आगे कहा, “शक, कुषाण, हूण, यवन, ब्रिटिश और पुर्तगाल वाले आए। हमले किए लेकिन सबको पचाकर हम उपलब्ध हैं। आज का प्रजातंत्र यही है। हमारे मत भिन्न हैं लेकिन एकसाथ चलेंगे। रास्ते अलग होते हैं लेकिन सब एक स्थान पर जाते हैं। इसलिए समन्वय में चलो। क्योंकि, यह देश धर्मपरायण है। धर्म प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य निर्धारण करता है। भारत की यात्रा को धर्म नियंत्रित करता है। स्वतंत्रता और समता एक साथ संभव नहीं है। यह दोनों तभी संभव हैं, बंधुता होती है। यह अपनापन से आती है। अपनापन ही धर्म है। सारे विश्व में अशांति का कारण ही अपनेपन की कमी है। भारत भी कुछ हज़ार साल से इस भावना की चपेट में आ गया है।

“वैभव और बल संपन्न भारत की जरूरत”
मोहन भागवत ने ज़ोर देते हुए कहा, “वैभव और बल संपन्न भारत चाहिए। सत्य की स्थापना के लिए बल अवश्य चाहिए। धर्म के चार आधार पर हमारा आचरण होना चाहिए। यही हमारा स्व है। देश का अर्थ केवल ज़मीन नहीं है। इसमें जन, जंगल और जानवर भी देश का हिस्सा हैं। राष्ट्र के घटक चाणक्य ने बताए हैं। अच्छे राष्ट्र के लिए ज़रूरी है कि उसके ज़्यादा से ज़्यादा मित्र होने चाहिए।” उन्होंने अमेरिका, लीबिया और श्रीलंका के उदाहरण देते हुए आगे कहा, “श्रीलंका की चीन मदद करता है और उसकी ज़मीन हड़प लेता है। हम उनकी मदद निस्वार्थ भावना से करते हैं।

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