Greater Noida News : ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से जुड़े एक बड़े मामले ने फिर से जोर पकड़ लिया है। जिसमें किसानों का दो साल पुराना आंदोलन उनके भूखंडों के अनियमित आवंटन के विरोध में चल रहा है। अक्टूबर 2011 में हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 39 गांवों के किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया था। जिसमें इन किसानों को 10 प्रतिशत आबादी के भूखंड और बढ़े हुए मुआवजे का हकदार माना गया था, लेकिन इस आदेश का दुरुपयोग करते हुए, प्राधिकरण के अधिकारियों ने लगभग 250 अपात्र किसानों को भी इस योजना के तहत भूखंड दे दिए। जिससे असली किसान आज तक अपने अधिकार के लिए भटकते रहे हैं।
अधिकारियों पर आरोप
प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों पर यह आरोप है कि उन्होंने नियमों की अनदेखी करते हुए कई अपात्र किसानों को आबादी के लिए 2,500 वर्गमीटर से अधिक यहां तक कि 12,000 वर्गमीटर के भूखंड आवंटित कर दिए। यह गड़बड़ी ग्रेटर नोएडा वेस्ट क्षेत्र के गांवों में हुई, जहां पात्रता की जांच में भारी अनियमितताएं सामने आईं। इसके बावजूद अधिकारियों के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे किसानों में गहरी नाराजगी है और वे लगातार आंदोलनरत हैं।
जमीन आवंटन में गड़बड़ी की SIT जांच हो
ग्रेटर नोएडा किसान विकास समिति के संयोजक आदेश सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ से पूरे मामले की जांच कराने की अपील की है। उन्होंने मांग की है कि 71 गांवों में किए गए भूमि आवंटन की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित की जाए और इसके साथ ही लेखपालों और भूमि विभाग के अन्य अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जाए। किसानों का आरोप है कि भूखंड पात्रता की जांच में गड़बड़ी करते हुए प्राधिकरण को करीब 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
लेखपालों की भूमिका पर सवाल
इस मामले में लेखपालों पर भी संदेह जताया जा रहा है कि उन्होंने भूखंड आवंटन में अहम भूमिका निभाई है। किसानों ने मुख्यमंत्री से लेखपालों की संपत्तियों की भी जांच करने की मांग की है। यह मामला साल 2011 से 2017 के बीच तैनात अधिकारियों की मिलीभगत की ओर इशारा करता है। जब बड़े पैमाने पर जमीनों का आवंटन किया गया था।