Greater Noida News : गौतमबुद्ध नगर की दादरी तहसील के चिटहेरा गांव में हुए अरबों रुपए के भूमि घोटाले पर पूर्व एसडीएम एसबी तिवारी ने एक बार फिर फेसबुक पोस्ट लिखी है। एसबी तिवारी ने इस सप्ताह यह दूसरी बार जानकारियां सार्वजनिक की हैं। एसबी तिवारी ने लिखा है, "इस पूरे भूमि घोटाले को अंजाम देने वालों में कई प्रशासनिक अधिकारी शामिल रहे हैं। इनमें दादरी के तत्कालीन तहसीलदार से लेकर गौतमबुद्ध नगर के अपर जिलाधिकारी और मेरठ मंडल के आयुक्त जैसे सीनियर प्रशासनिक अफसर शरीक हैं।"
आईएएस ऑफ़िसर एवं नेताओं का गठजोड़ ने सारे नियम तोड़े
पूर्व एसडीएम एसबी तिवारी ने लिखा है, "तहसील दादरी के चिटहरा गांव के भूमि घोटाले में आईएएस ऑफ़िसर एवं नेताओं का गठजोड़ इस क़दर रहा कि नियम ताक पर रख दिए गए। तमाम पैरवी के बावजूद एडीएम हापुड़ ने पट्टे बहाल कर दिए। इस आदेश के विरुद्द मेरठ आयुक्त के न्यायालय में अपील हुई। अपील लम्बित रहते हुए चिटहेरा गांव की पट्टों वाली भूमि तमाम भूमाफिया और अधिकारियों ने ख़रीद ली। दाखिल-ख़ारिज होकर भूमि का मुआवजा अधिकारियों, नेता और भूमाफ़िया ने प्राप्त कर लिया।"
तहसीलदार, एडीएम और अपर आयुक्त ने कानून नहीं माना
एसबी तिवारी आगे लिखते हैं, "एक अजीब खेल हुआ। एडीएम हापुड़ ने ये भी आदेश दिए थे कि पट्टा धारकों को 186 जमींदारी विनाश अधिनियम के अंतर्गत नोटिस दिए जाएं। हुआ ये कि तहसीलदार दादरी ने नोटिस जारी किए तो पट्टाधारक उपस्थिति हो गए। तहसीलदार को ये अधिकार है कि वो उपस्थित होने पर नोटिस वापस ले लेगा। दबाव क्या था? तहसीलदार ने नोटिस वापस तो ले ही लिया, उन्हें भूमिधर भी घोषित कर दिया। जबकि तहसीलदार को भूमिधर घोषित करने का अधिकार ही नहीं है। इस आदेश के ख़िलाफ़ लोग अपील में गए और विद्वान अपर आयुक्त ने अपील ख़ारिज करके सभी को भूमिधर घोषित कर दिया। ये नियम विरुद्ध आदेश था, जो अपर आयुक्त ने किया था।
आखिर मेरठ आयुक्त ने भूमाफिया की बात क्यों मान ली
पूर्व एसडीएम सवाल खड़ा करते हैं, "प्रश्न ये उठता है कि जब पट्टा निरस्तीकरण का वाद गौतमबुद्ध नगर में चल रहा था तो इसे हापुड़ स्थानांतरित क्यों किया गया? जब कि गौतमबुद्ध नगर में 3 एडीएम न्यायालय हैं। जिले के किसी अन्य एडीएम को केस ट्रांसफर न करके भूमाफ़िया हापुड़ केस ले गए और आयुक्त ने उनकी बात मान भी ली। खेल हर स्तर पर हुआ। तहसीलदार से आयुक्त तक हुआ।"
प्राधिकरण ने विवादित जमीन का मुआवजा कैसे दिया
एसबी तिवारी सवाल करते हैं, "क्या सभी भूमि खरीदारों ने प्राधिकरण से मुआवजा उठा लिया?" वह आगे जवाब देते हैं, "जब केस चल रहे होते हैं तो मुआवजा नहीं दिया जाता है। सभी सम्बंधित अधिकारियों का ये दायित्व था कि शासकीय भूमि की रक्षा करते। सभी ने मिलकर सरकारी सम्पत्ति की लूट की। मेरी जानकारी में शासन स्तर से लेकर स्थानीय स्तर के अधिकारी इस खेल में शामिल रहे हैं। स्थानीय से लेकर उच्च नेता अपने तरीक़े से दबाव डालते रहे और अरबों रुपये का घोटाला हो गया।"
केवल यशपाल तोमर तक कार्रवाई सीमित ना रहे
तिवारी ने अपनी फेसबुक पोस्ट के आखिरी हिस्से में आशंका जाहिर की है। वह लिखते हैं, "अब भूमि शासन को वापस होनी चाहिए और मुआवजा की वसूली होनी चाहिए। असली गुनहगार ढूंढे जाएं। यशपाल तोमर तक जाँच सीमित रखकर मामले की इतिश्री न करने दी जाए। नेताओं और अफसरों के गठजोड़ को इक्स्पोज़ किया जाए।"