ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों के सामने बड़ा असमंजस, किसे दें वोट और किसे नहीं, जानिए वजह

ANALYSIS गौतमबुद्ध नगर जिला पंचायत चुनाव: ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों के सामने बड़ा असमंजस, किसे दें वोट और किसे नहीं, जानिए वजह

ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों के सामने बड़ा असमंजस, किसे दें वोट और किसे नहीं, जानिए वजह

Tricity Today | ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों के सामने बड़ा असमंजस

UP Panchayat Chunav : गौतमबुद्ध नगर में जिला पंचायत चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और अब कांग्रेस ने भी अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। जिससे जोड़-तोड़ और जातिगत समीकरण साफ-साफ दिखने लगे हैं। मौजूदा स्थिति में सबसे ज्यादा असमंजस की स्थिति गुर्जर और ब्राह्मण वोटरों के बीच है। दरअसल, तमाम राजनीतिक दलों ने गुर्जर प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से लेकर विपक्षी दलों ने गुर्जर बिरादरी के उम्मीदवारों पर ही दांव खेला है। गुर्जर मतदाता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर वोट किसको दें। हर राजनीतिक दल का उम्मीदवार गुर्जर ही है।

दूसरी ओर ब्राह्मण समुदाय के वोटर इसके उलट मनः स्थिति में फंसे हुए हैं। दरअसल, जिले में किसी भी राजनीतिक दल ने एक भी ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है। ऐसे में ब्राह्मण वोटर चुनाव को नीरस मानकर चल रहे हैं। साथ ही यह भी चर्चा है कि राजनीतिक दल जिले में ब्राह्मणों की शक्ति को कम आंक रहे हैं।

गुर्जर बिरादरी के उम्मीदवारों पर सबका जोर
गौतमबुद्ध नगर जिला पंचायत के चुनाव में गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवारों पर सारे राजनीतिक दलों का जोर है। सत्ताधारी राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी ने 5 में से 3 गुर्जर उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। वार्ड नंबर-2 से गीता भाटी, वार्ड नंबर-3 से देवा भाटी और वार्ड नंबर-4 से सोनू प्रधान गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। पार्टी ने वार्ड नंबर-5 से जाट समुदाय के अमित चौधरी को मैदान में उतारा है। वार्ड नंबर-1 से जाटव बिरादरी से ताल्लुक रखने वाली मोहिनी चुनाव लड़ेंगी, हालांकि इसमें भी एक बड़ी बात यह है कि मोहिनी जाटव के पति मनोज ठाकुर राजपूत हैं।

बहुजन समाज पार्टी ने चार उम्मीदवार घोषित किए हैं। इनमें से तीन उम्मीदवार जयवती नागर, वीरेंद्र सिंह प्रधान और अवनेश भाटी गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। आम आदमी पार्टी के 5 उम्मीदवारों में से 2 आरती नागर और कर्मवीर राठी गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। सपा-रालोद गठबंधन के 5 उम्मीदवारों में से 3 गुर्जर बिरादरी से हैं। गीता भाटी, रविंद्र भाटी और समीर भाटी गुर्जर हैं। अब कांग्रेस के चार में से तीन प्रत्याशी गुर्जर बताए जा रहे हैं। कुल मिलाकर सारे राजनीतिक दल गुर्जर वोटरों को लुभाने में जुटे हैं।

आखिर क्यों पैदा हुई ऐसी स्थिति?
लोगों के जेहन में एक ही सवाल चल रहा है कि आखिरकार यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई? गौतमबुद्ध नगर की राजनीति पर पकड़ रखने वाले लोगों का कहना है कि इसके पीछे दो महत्वपूर्ण वजह हैं। पहली वजह यह है कि ब्राह्मण समाज पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी का कमिटेड वोट बैंक है। ब्राह्मण समुदाय गौतमबुद्ध नगर में भारतीय जनता पार्टी के अलावा किसी दूसरे राजनीतिक दल को खास तवज्जो नहीं देता है। ऐसे में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल और आम आदमी पार्टी ने भी इस बात को ध्यान में रखकर उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। अब सवाल उठता है कि अगर ब्राह्मण मतदाता भारतीय जनता पार्टी को पसंद करते हैं तो भाजपा ने भी किसी ब्राह्मण को टिकट क्यों नहीं दिया? जानकारों का कहना है कि गौतमबुद्ध नगर जिला पंचायत के लिए उम्मीदवार घोषित करने में सांसद डॉ महेश शर्मा का प्रभाव एकतरफा रहा है। उन्हीं के अनुसार उम्मीदवारों की घोषणा की गई है। ऐसे में डॉक्टर महेश शर्मा ने आने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए गुर्जर बिरादरी को साधने की कोशिश की है। दूसरी ओर पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान तमाम गुर्जर नेता डॉ महेश शर्मा को समर्थन करने के लिए सपा और बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। ऐसे में डॉक्टर महेश शर्मा ने गुर्जर वोटरों को साधने के लिए उन्हें ख़ास तरजीह जी दी है। जिले के ब्राह्मण मतदाताओं को डॉ महेश शर्मा का वोट बैंक माना जा रहा है। यह दूसरी वजह है।

क्या ब्राह्मण भाजपा को ही वोट देंगे?
इन परिस्थितियों में सवाल उठ रहा है कि क्या ब्राह्मण मतदाता भारतीय जनता पार्टी से पंचायत चुनाव में छिटक जाएगा। जानकारों का कहना है कि ब्राह्मण वोटर सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी से दूर नहीं जाएगा। इसका एक विपरीत प्रभाव देखने के लिए मिल सकता है। ब्राह्मण समुदाय के वोटरों में उत्साह नहीं रहेगा। बेहद कम संख्या में वोट डालने के लिए इस समुदाय के लोग निकलेंगे। हालांकि, यह बात तय है कि ब्राह्मण समुदाय के जितने लोग पोलिंग बूथ तक जाएंगे, उनमें से बहुसंख्य भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को ही वोट देंगे। हालांकि, इस नीरसता का लाभ उठाने की कोशिश कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कर सकते हैं। इन परिस्थितियों में निजी संबंधों के आधार पर वोटिंग ट्रेंड बदलने में दूसरे दलों को कामयाबी मिल सकती है। चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि गौतमबुद्ध नगर के चुनाव में ब्राह्मणों के लिए स्थिति आरक्षित सीट जैसी हो गई है।

भाजपा के गुर्जर नेताओं की अग्निपरीक्षा
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी में काम कर रहे गुर्जर नेताओं की अग्निपरीक्षा का वक्त है। लोगों का मानना है कि सबसे ज्यादा दम इन्हीं नेताओं को लगाना होगा। दरअसल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के टिकटों पर जिले के दिग्गज गुर्जर नेता चुनाव लड़ रहे हैं। अब देखना यही है कि क्या भारतीय जनता पार्टी के गुर्जर नेता अपनी बिरादरी के लोगों को सपा और बसपा की तरफ जाने से रोक पाएंगे। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान 'मोदी लहर' में गुर्जर समाज ने भारतीय जनता पार्टी को खुलकर मतदान किया था। जिसका श्रेय भाजपा के गुर्जर नेता गाहे-बगाहे लेते रहते हैं, लेकिन असली अग्निपरीक्षा का वक्त पंचायत चुनाव में मतदान के दिन आएगा। जब परिणाम निकलेगा तो पता चलेगा कि भाजपा का कौन सा गुर्जर नेता कितने प्रभावी ढंग से अपनी पार्टी को वोट दिलाने में कामयाब हुआ है।

कांग्रेस और आप ने अच्छा मौका गंवाया
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गौतमबुद्ध नगर के जिला पंचायत चुनाव में सबसे अच्छा मौका आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के लिए था। दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के बाद इन दोनों राजनीतिक दलों को दिल्ली-एनसीआर और शहरी इलाकों में तरजीह दी जाती है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी शहरी इलाकों में भाजपा को कोई खास चुनौती नहीं दे पाती हैं। भारतीय जनता पार्टी कैंप से पहले ही खबरें आ चुकी थीं कि सबसे ज्यादा टिकट गुर्जरों को मिलने वाले हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को ब्राह्मण या दूसरे अछूते समुदायों तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए थी। इससे इन दोनों संगठनों को गुर्जरों से इतर समुदायों में पैंठ बनाने का मौका मिल जाता, लेकिन भाजपा, सपा और बसपा की तरह कांग्रेस और आप ने भी परंपरागत राजनीतिक सोच का परिचय दिया है। लोगों का कहना है कि गौतमबुद्ध नगर में भले ही यह यह चुनाव गांवों का है लेकिन यहां के गांव या शहर में कोई फर्क नहीं है।

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