गौतमबुद्ध नगर भाजपा में जोड़ने की बजाय तोड़ने की राजनीति, आखिर क्या है वजह

फिर वही विवाद और सवाल : गौतमबुद्ध नगर भाजपा में जोड़ने की बजाय तोड़ने की राजनीति, आखिर क्या है वजह

गौतमबुद्ध नगर भाजपा में जोड़ने की बजाय तोड़ने की राजनीति, आखिर क्या है वजह

Tricity Today | गौतमबुद्ध नगर भाजपा

Greater Noida : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गौतमबुद्ध नगर के दादरी कस्बे का कॉलेज विवादों के केंद्र में आ गया था। उस वक्त कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए थे। सम्राट की प्रतिमा के सामने 'गुर्जर सम्राट' लिखने और हटाने की घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ लिया था। जिसका परिणाम यह रहा कि पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में गांव-गांव गुर्जर समाज ने विरोध किया। इसी विरोध का परिणाम मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की हार है। अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दादरी का यह कॉलेज विवाद के केंद्र में आ गया है। इस बार इंटर कॉलेज में लाइब्रेरी का लोकार्पण विवाद की वजह बन चुका है। लेकिन सवाल वही है। गौतमबुद्ध नगर की राजनीति में आखिर कौन सी मजबूरी है, जिसमें बांटने के लिए शतरंज की बिसात पर चाल चली जा रही हैं। लोगों को जोड़ने की पहल दूर तक नहीं दिख रही है।

भाजपा के बड़े कुनबे में गुटबंदी चरम पर
पहले केंद्र और फिर राज्य में सत्तासीन हुई भाजपा का कुनबा गौतमबुद्ध नगर में बहुत बड़ा हो गया है। जिसके चलते गुटबंदी हावी है। इस गुटबंदी में सबसे ताकतवर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद डॉ.महेश शर्मा हैं। उन्हीं के इर्द-गिर्द पूरा राजनीतिक गुणा-गणित होता है। उनके पास एक तरफ संगठन की ताकत है तो दूसरी ओर तमाम जनप्रतिनिधियों की गोलबंदी है। भाजपा के जिलाध्यक्ष विजय भाटी, जिला पंचायत अध्यक्ष अमित चौधरी, दादरी के विधायक मास्टर तेजपाल सिंह नागर, एमएलसी नरेंद्र सिंह भाटी और एमएलसी श्रीचंद शर्मा सांसद के साथ खड़े हैं। बसपा से आए पूर्व मंत्री वेदराम भाटी और दादरी के पूर्व विधायक सतवीर गुर्जर भी डॉ.महेश शर्मा के साथ हैं। इन सारे लोगों में श्रीचंद शर्मा, विजय भाटी और अमित चौधरी भाजपाई हैं। बाकी सारे लोग दूसरी पार्टियों से आयातित हैं।

बस सुरेंद्र-धीरेन्द्र को किनारे लगाने की कोशिश
दूसरी तरफ राज्यसभा सांसद सुरेंद्र सिंह नागर और जेवर के विधायक धीरेंद्र सिंह हैं। इन दोनों को येन-केन-प्रकारेण अलग-थलग करने की कोशिश चलती रहती हैं। दादरी गुर्जर बहुल इलाका है। जब सांसद खेमा कोई कार्यक्रम इस इलाके में करता है तो राज्यसभा सांसद सुरेंद्र सिंह नागर को दरकिनार करके उन्हें कमजोर दिखाने की कोशिश की जाती है। जिससे विरोध खड़ा हो जाता है। ठीक ऐसे ही हालात भारतीय जनता पार्टी के जेवर इलाके में होने वाले कार्यक्रमों में देखने के लिए मिलते हैं। भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों से जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह को दूर रखा जाता है। उन्हें सांसद और पार्टी के कार्यक्रमों का न्योता तक नहीं भेजा जाता है। विधानसभा चुनाव में धीरेन्द्र सिंह को हराने के किए कोई कसर नहीं छोड़ी गई। इन्हीं हालात के चलते भारतीय जनता पार्टी में आंतरिक विरोध तेजी से पनप रहा है। इस सबके बीच नोएडा के विधायक पंकज सिंह पूरी तरह तटस्थ हैं।

अगर भारतीय जनता पार्टी के प्रोटोकॉल की बात करें तो सांसद सुरेंद्र सिंह नागर सबसे ऊंचे पद पर हैं। वह फिलहाल उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष हैं। संसदीय व्यवस्था में राज्यसभा सांसद का स्थान लोकसभा सांसद से ऊपर माना जाता है। इसके बावजूद दादरी कॉलेज में हो रहे कार्यक्रम से उन्हें बाहर रखा गया है। इसकी वजह पूछी जाए तो जवाब आएगा, "यह कार्यक्रम कॉलेज संचालित करने वाली गुर्जर विद्या सभा का है। इससे हमारा या पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। गुर्जर विद्या सभा इस स्वतंत्र है कि किसे बुलाया जाए और किसे नहीं।" लेकिन हकीकत यह है कि कॉलेजों को संचालित करने वाली संस्था पर दादरी के विधायक मास्टर तेजपाल सिंह नागर, बसपा से भाजपा में आए पूर्व मंत्री वेदराम भाटी और सपा से आए एमएलसी नरेंद्र भाटी की पकड़ है।

नागर के खिलाफ मोर्चा तैयार किया गया
सुरेंद्र सिंह नागर और डॉक्टर महेश शर्मा लंबे अरसे से राजनीतिक धुरी पर आमने -सामने खड़े हुए हैं। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में सुरेंद्र नागर ने डॉक्टर महेश शर्मा को हराया था। भाजपा में आने के बाद कुछ वक्त के लिए दोनों के बीच दूरियां सिमटती नजर आईं। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव से पहले सुरेंद्र नागर को झटका देने के लिए महेश शर्मा सपा से नरेंद्र भाटी को लेकर आए। इसके बाद दोनों फिर अलग-अलग ध्रुव पर जाकर खड़े हो गए। विधानसभा चुनाव में डॉ.महेश शर्मा और उनके खेमे ने जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह को हराने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। उस बुरे वक्त में पार्टी लाइन पर चलते हुए सुरेंद्र नागर, धीरेंद्र सिंह के पीछे आकर खड़े हो गए। विपक्ष के सजातीय प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना के खिलाफ प्रचार किया। इसके बाद महेश शर्मा खेमे ने सुरेंद्र नागर पर खुलकर हमले करने शुरू कर दिए। इसी वजह से बसपा से वेदराम भाटी, सतवीर गुर्जर और गजराज नागर भाजपा में लेकर आए। यह पूरा मोर्चा सुरेंद्र नागर के खिलाफ तैयार किया गया।

किसी नेता का नहीं, बिगड़ रहा भाजपा का समीकरण
अब सवाल यह उठता है कि आखिर यह सामान्य सी कहानी जब जिले के आम आदमी को समझ आती है तो भाजपा नेताओं को समझ में क्यों नहीं आ रही है? विवाद से तो नुकसान ही होता है। गौतमबुद्ध नगर में लोकसभा सीट और दादरी विधानसभा सीट पूरी तरह सुरक्षित हैं। यहां भाजपा के टिकट पर कोई भी चुनाव लड़ ले, बड़े अंतर से उसकी जीत तय है। मतलब, गौतमबुद्ध नगर की लोकसभा और विधानसभा सीटें किसी नेता की नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी की हैं। ऐसे में केवल टिकट को सुरक्षित बनाए रखना जरूरी है। इन जातिगत संघर्षों का सांसद और विधायक की जीत-हार पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। बाकी दो एमएलसी हैं। जब तक सत्ता है, उन्हें भी हार-जीत की फ़िक्र नहीं है। लेकिन दूसरी तरफ दादरी और गौतमबुद्ध नगर का जातिगत वैमनस्य पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में भाजपा के समीकरण बिगाड़ रही है।

गौतमबुद्ध नगर में ब्राह्मण बनाम ठाकुर, ब्राह्मण बनाम गुर्जर और ब्राह्मण बनाम त्यागी जैसे विवाद लगातार हो रहे हैं। जिनका संदेश दूर तक जाता है। भाजपा को हालात संभालने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। कुल मिलाकर गौतमबुद्ध नगर के सांसद और दादरी के विधायक को अपनी हार-जीत का कोई फिक्र नहीं है, भले ही भाजपा को वेस्टर्न यूपी और दिल्ली-एनसीआर में कितना ही नुकसान क्यों ना हो जाए? इसीलिए गौतमबुद्ध नगर की राजनीतिक बिसात पर केवल तोड़ने के लिए चालें चली जा रही हैं। जोड़ने की गरज किसको है?

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