विलुप्त हो रही गोरैया को प्रेम करने वालों के लिए अच्छी खबर, गौतमबुद्ध नगर जेल से आई खुश खबरी

पक्षी प्रेमियों के लिए खुशखबरी विलुप्त हो रही गोरैया को प्रेम करने वालों के लिए अच्छी खबर, गौतमबुद्ध नगर जेल से आई खुश खबरी

विलुप्त हो रही गोरैया को प्रेम करने वालों के लिए अच्छी खबर, गौतमबुद्ध नगर जेल से आई खुश खबरी

Google Image | पक्षी प्रेमियों के लिए खुशखबरी

विलुप्त हो रहे गोरैया पक्षी के संरक्षण को लेकर व्यापक अभियान चल रहे हैं। ऐसे में गौरैया चिड़िया को प्रेम करने वालों के लिए अच्छी खबर है। यह खुशखबरी गौतमबुद्ध नगर जिला जेल से आई है। ग्रेटर नोएडा के लुकसर गांव में स्थित जिला जेल में गौरैया के एक जोड़े ने 6 चूजों को जन्म दिया है। बड़ी बात यह है कि जेल प्रशासन के प्रयासों से यहां गौरैया पक्षी के कई जोड़े निवास कर रहे हैं। जिनके संरक्षण और संवर्धन को लेकर कारागार प्रशासन बेहद संजीदा रहता है।

गौतमबुद्ध नगर जिला कारागार के सुपरिटेंडेंट विपिन मिश्रा ने बताया, यह जेल परिसर नया है। यहां पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रयास करके पेड़ों की संख्या बढ़ाई गई है। पक्षियों को आकर्षित करने के लिए पेड़ों पर कृत्रिम घोंसले लगवाए गए। पानी की भी व्यवस्था की गई है। परिसर खासा हरा-भरा भरा हो गया है। जिससे आकर्षित होकर गौरैया पक्षी के कुछ जोड़ें यहां रहने लगे हैं। इन्हें किसी तरह की परेशानी न हो इसका पूरा ख्याल रखा जाता है। गौरैया पक्षी तेजी से विलुप्त हो रहा है, ऐसे में इनका यहां ठिकाना बनाना सभी लोगों के लिए खुशी की बात है। 

विपिन मिश्रा ने बताया कि 3 दिन पहले पक्षियों के एक जोड़े के घोसले में 6 बच्चों ने जन्म लिया है। सभी अंडों से सफलतापूर्वक बच्चे पैदा हुए हैं। बच्चे पूरी तरह स्वस्थ नजर आ रहे हैं और उनकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। आपको बता दें कि भारत के बहुत-से हिस्सों जैसे बैंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दूसरे राज्यों-शहरों में गौरैया की स्थिति बहुत चिंताजनक है। यहां इनका दिखाई देना लगभग बंद हो चुका है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि इनकी संख्या आंध्र प्रदेश में 80 फीसदी तक कम हुई है। केरल, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में 20 फीसदी तक की कमी आई है। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में यह गिरावट निश्चित रूप से 70-80 प्रतिशत तक दर्ज की गई है।

गौरैया के इस तरह गायब होते जाने के कारणों की पड़ताल की जाए तो हम मनुष्यों की आधुनिक जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति उदासीनता इसका सबसे बड़ा कारण नज़र आती है. आधुनिक बनावट वाले मकानों में गौरैया को अब घोंसले बनाने की जगह ही नहीं मिलती. जहां मिलती है, वहा हम उसे घोंसला बनाने नहीं देते. अपने घर में थोड़ी-सी गंदगी फैलने के डर से हम उसका इतनी मेहनत से तिनका-तिनका जुटाकर बनाया गया घर उजाड़ देते हैं. इससे उसके जन्मे-अजन्मे बच्चे बाहर बिल्ली, कौए, चील, बाज जैसे परभक्षियों का शिकार बनते हैं.

गौरैया छोटे पेड़ों या झाड़ियों में भी घोंसला बनाती हैं, लेकिन पेड़ों को ज्यादा काटने से नुकसान हुआ है। वह बबूल, कनेर, नींबू, अमरूद, अनार, मेहंदी, बांस, चांदनी आदि पेड़ों को पसंद करती हैं। अब ऐसे पेड़ों को लगाने के लिए जगह नहीं बची है या इतना सब सोचने की फुर्सत नहीं है। शहरों और गांवों में बड़ी तादाद में पिछले दो दशकों में मोबाइल फ़ोन के टावर लगे हैं। जिनसे गौरैया समेत दूसरे पक्षियों के लिए बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है। इनसे निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इसके अलावा उनके दाना-पानी की समस्या है। गौरैया मुख्यतः काकून, बाजरा, धान, पके चावल के दाने और कीड़े खाती हैं। आधुनिकता उनसे प्राकृतिक भोजन के ये स्रोत भी छीन रही है।

दुनियाभर में गौरैया की 26 प्रजातियां हैं, जिनमें से 5 भारत की निवासी हैं। नेचर फॉरेवर सोसायटी के विशेष प्रयासों से पहली बार वर्ष 2010 में विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था। तब से ही यह दिन पूरे विश्व में हर वर्ष 20 मार्च को गौरैया के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। गौरैया के जीवन संकट को देखते हुए वर्ष 2012 में उसे दिल्ली के राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया था, पर हालात अभी भी जस के तस ही हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सहयोग से बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी सिटीज़न स्पैरो के सर्वेक्षण में पता चला कि दिल्ली और एनसीआर में वर्ष 2005 से गौरैया की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। सात बड़े शहरों में हुए इस सर्वेक्षण में सबसे ख़राब नतीजे हैदराबाद में देखने को मिले हैं। उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी की सरकार के समय गौरैया के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास और जागरूकता अभियान चलाए गए थे।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान की अध्यक्ष सोनिका कुशवाहा बताती हैं, ‘गौरैया के संरक्षण की प्रक्रिया में एक मुश्किल उसकी गणना में आती है। फिर भी रिहायशी और हरियाली वाले इलाकों में सर्वेक्षण और लोगों की सूचना की मदद से उसे गिनने की कोशिश की जाती है। इसके लिए हम लोगों से अपील करते हैं कि अपने आसपास दिखाई देने वाली गौरैया की संख्या की जानकारी हम तक पहुंचाएं। 2015 की गणना के अनुसार लखनऊ में सिर्फ 5,692 और पंजाब के कुछ चयनित इलाकों में लगभग 775 गौरैया थीं। 2017 में तिरुवनंतपुरम में दुःखद रूप से सिर्फ 29 गौरैया पाई गई थीं।

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