Greater Noida : दनकौर में 12 साल पहले भूमि अधिग्रहण को लेकर धरना दे रहे भट्टा पारसौल के किसानों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। झड़प के दौरान किसान राजपाल और राजवीर व दो पुलिसकर्मी मनोज और मनोहर की गोली लगने से मौत हो गई थी। वहीं, तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल समेत कई लोग गोली लगने से घायल हो गए थे।
मुआवजे की मांग नहीं हुई पूरी
इसके बाद पुलिस ने किसानों के खिलाफ हत्या, लूट समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिए थे और बड़ी संख्या में किसानों को जेल भी भेजा था। इस घटना के बाद से आरोपी बनाए गए आंदोलनकारी किसान जमानत पर रिहा चल रहे हैं। वहीं किसानों का कहना है कि अब 12 साल बाद भी अदालत और नेताओं से मुकदमे वापसी के लिए तारीख पर तारीख मिल रही है लेकिन कोई फैसला अब तक नहीं लिया गया है। घटना के बाद से 2 बार सरकार भी बदल चुकी है लेकिन ना तो मुआवजे की मांग पूरी हुई और ना ही मुकदमे से छुटकारा मिल पाया है।
क्या था भट्टा पारसौल कांड
दरअसल, साल 2011 में बसपा की सरकार थी। 17 जनवरी को किसान नेता मनवीर तेवतिया के नेतृत्व में भट्टा परसौल समेत अन्य गांवों के किसान ने भूमि अधिग्रहण के विरोध में मांगो को लेकर धरना प्रदर्शन शुरू किया था। साथ में 7 मई 2011 को किसानों के धरना ने हिंसक रूप ले लिया। पुलिसकर्मियों ने जान गवाई और कई लोग उस झड़प में घायल हुए। इसके बाद पुलिस ने 29 किसानों पर हत्या, लूट और आगजनी में 22 मुकदमे दर्ज कर जेल भेज दिया था, जिसके बाद सीबीसीआईडी को जांच सौंपी गई।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिले किसान
सीबीआईटी ने करीब 36 अन्य किसानों को आंदोलन में आरोपी बनाया कुल 65 किसानों पर मुकदमे दर्ज हुए। बाद में आई सपा सरकार में कुछ मुकदमों को वापस कराया गया। किसानों को जमानत पर रिहा तो मिल गई लेकिन सीबीसीआईडी ने किसानों के इस मामले को स्थानीय पुलिस को सौंप दिया। साल 2017 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी, किसानों के मुकदमे वापसी के लिए स्थानीय प्रतिनिधियों के नेतृत्व में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिले। इसके बाद छोटे मुकदमे सरकार द्वारा किसानों से हटा लिए गए। लेकिन 12 साल बीत जाने पर भी किसानों को दी गई तारीख पर हाजिरी लगानी होती है।
आंदोलनकारी किसान अदालत के काट रहे चक्कर
अभी भी किसानों पर धारा 307 और 302 समेत कई संगीन मुकदमे चल रहे हैं किसान नेता अदालत की तारीख पर जाकर परेशान हो चुके हैं। आंदोलनकारी किसानों में से करीब 4 किसानों की मौत हो चुकी है और कुछ बुजुर्ग हो चुके हैं जो अदालत जाने में भी असमर्थ है। वहीं इसके साथ अभी तक किसानों को मुआवजा भी नहीं मिल पाया है।