दुजाना गांव में लगा दादी सती का मेला, जानिए क्या है मंदिर की कहानी, जहां नेहरू, चरण सिंह और अटल बिहारी ने भी मत्था टेका

ग्रेटर नोएडा : दुजाना गांव में लगा दादी सती का मेला, जानिए क्या है मंदिर की कहानी, जहां नेहरू, चरण सिंह और अटल बिहारी ने भी मत्था टेका

दुजाना गांव में लगा दादी सती का मेला, जानिए क्या है मंदिर की कहानी, जहां नेहरू, चरण सिंह और अटल बिहारी ने भी मत्था टेका

Tricity Today | दादी सती

दुजाना गांव में दादी सती के मंदिर पर मंगलवार को मेला लगा है। मेले में हजारों लोग पहुंचे। दुजाना गांव मे हर वर्ष होली से अगले दिन तिलहेंडा का मेला पिछले 265 वर्षों से लगता आ रहा है। इस वर्ष भी इस मेले का शानदार आयोजन गांव मे हुआ। आखिर दादी सती की क्या कहानी है और वहां हर साल क्यों विशाल मेला लगता है? आइये आज हम आपको यह पूरी कहानी बताते हैं।

दादी सती के मंदिर में लगने वाला मेला 265 वर्षों से अधिक समय से लगता आ रहा है। हर वर्ष धुलकैंडी (रंग के दिन) से अगले दिन यह मेला लगता रहा है। आस्था के इस केंद्र में हजारों लोग पहुंचते हैं। दुजाना गांव का सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में बहुत योगदान रहा है।



मेले में दिखती है हरियाणा-राजस्थानी झलक
मास्टर भूपेन्द्र नागर ने बताया कि मेले में हरियाणवी और राजस्थानी कार्यक्रम होते है। खाने-पीने के स्टाल लगाये जाते है। बच्चो के मनोरंजन के लिए बड़े बड़े झूले विशेष आकर्षण का केंद्र होते है। मेले का आयोजन का समस्त कार्य दादी सती मंदिर समिति द्वारा स्थानीय पुलिस प्रशासन के सहयोग से किया जाता है। मेले की तैयारी में ग्रामीण एक महीने पहले से लग जाते है। गांव और घरों की साफ सफाई की जाती है। बम्ब भी बजाई जाती है।

बड़े-बड़े राजनेताओं ने मेले में दर्ज कराई है उपस्थिति
मेले वाले दिन गांव के श्री गांधी इंटर कॉलेज में एक कार्यक्रम भी होता है। जिसमे बड़े राजनीतिक लोगो की उपस्थिति रही है। इस बार पंचायत चुनाव आचार सहिंता लगे होने के कारण यह कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया हैं। 10 नवंबर 1963 को पंडित जवाहरलाल नेहरू इस आयोजन में आये थे। 1980 मे प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां आये थे और पूजा अर्चना भी की थी। चैधरी चरण सिंह और राजेश पायलट सरीखे नेता भी यह शिरकत कर चुके है।



होली के दिन गांव मे हुई बम्ब वादन प्रतियोगिता
होली वाले दिन गाँव मे बम्ब और नगाड़े बजाकर  एक दूसरे को रंग लगाकर धूमधाम से होली का यह त्योहार मनाया गया है। यह प्रतियोगिता गांव के अलग अलग मोहल्ल्हें के बीच होती है। जिसमें बम्ब बजाने वाले लोगों को गुड़ की ढैया देकर और पगड़ी पहनकर सम्मानित किया गया। यह परंपरा वर्षो पूर्व से इस गांव मे चली आ रही है।

यह दादी सती मंदिर की कहानी
दुजाना गांव में करीब 264 साल पुराने दादी सती मंदिर में होली के अगले दिन लगने वाले मेले में बड़े-बड़े दिग्गज आते रहे हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, देश में पांच साल पहली गैर कांग्रेसी सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी, गुर्जर नेता और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं शामिल रहे राजेश पायलट समेत तमाम राजनेता यहां आए और मंदिर से आशीर्वाद लेकर गए। इस बार भी यहां मेला बुधवार को मेले का आयोजन किया गया है।



यह मेला हर साल लगता है। इस आयोजन में बड़े-बड़े लोग आते रहे हैं। गांव के मेजर रूप सिंह नागर ने बताया कि 10 नवंबर 1963 को पंडित जवाहर लाल नेहरू इस आयोजन में आए थे। जबकि, 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां आए थे। उन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना भी की थी। चौधरी चरण सिंह, राजेश पायलट सरीखे नेता भी मेले में शिरकत कर चुके हैं। इस गांव के श्री गांधी इंटर कॉलेज में कार्यक्रम होता है।

यहां तिलहेंड़ा (होली के रंग वाले दिन से अगला दिन) पर होने मेले में यूपी के अलावा हरियाणा और राजस्थानी कार्यक्रम होते हैं। मेले में लोगों के खाने-पीने के लिए स्टॉल लगते हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला आदि लगाए जाते हैं। यहां दूरदराज से लोग आकर प्रसाद चढ़ाते हैं। इसकी तैयारी में ग्रामीण एक महीने पहले ही लग जाते हैं। घरों की भी साफ-सफाई की जाती है। यहां बंब (ढोल-नगाड़े) बजाई जाती हैं।



ऐसे बना गांव में मंदिर
दुजाना गांव में दादी सती मंदिर की स्थापना 264 वर्ष पूर्व की गई थी। मास्टर भूपेन्द्र नागर ने बताया कि दुजाना गांव के भगीरथ सिंह का विवाह हरियाणा के पाली गांव की रामकौर से हुआ था। भगीरथ सेना में कार्यरत थे। विवाह के तुरंत बाद वह बॉर्डर पर अपनी पलटन में चले गए। वहां पर वह शहीद हो गए थे। बताते हैं कि शहीद होने की सूचना मिलने से पूर्व उनकी पत्नी रामकौर को अनिष्ट होने का आभास हो गया था। उन्होंने सती होने का प्रण लिया और आधिकारिक सूचना आने से पहले वह सती हो गई थीं। जहां पर देवी रामकौर ने अग्नि समाधि ली थी, उस स्थान पर गांव के लोगों ने मंदिर का निर्माण किया है।

क्षेत्र के लोगों का कहना है कि दादी सती आज भी यहां साक्षात रूप से विद्यमान हैं। वह न केवल पूरे क्षेत्र की रक्षा करती हैं बल्कि लोगों की मन्नत भी पूरी करती हैं। शुरूआती दौर में इसे नागर गोत्र वाले गुर्जरों का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता था लेकिन वक्त के साथ इसकी मान्यता बढ़ती गई। अब यहां सभी गोत्र के गुर्जर ही नहीं 36 बिरादरी के लोग आस्थावान रहते हैं। मान्यता है कि अगर कोई सच्चे दिल से दादी सती के मंदिर पर मत्थ टेकता है तो उसकी मन की मुराद पूरी होती है। हर चुनाव में यहां सारे उम्मीदवार मन्नत मांगने जरूर आते हैं।

नागर गोत्र के गुर्जरों के लिए यह सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का स्थान भी है। यहीं नागर तय करते हैं कि चुनाव में किसे समर्थन करना है। इसके अलावा पूरे क्षेत्र में शादी-ब्याह या कोई भी शुभ कार्य संपन्न करने से पहले और बाद में यहां लोग प्रसाद चढ़ाने, भंडारा करने और ज्योति जलाने आते हैं।

इस अवसर पर महाशय किरणपाल, इलमचन्द नागर, वीरसिंह मुक्कदम, महाराम पहलवान, राजेश नागर, संजय नागर, मास्टर गिरिराज, इंद्राज पहलवान, ज्ञानी सिंह, अनिल प्रधान, मास्टर भूपेन्द्र नागर, महेन्द पांचाल और जगत आदि लोगो की उपस्थिति रही है।

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