Tricity Today | ग्रेटर नोएडा जिम्स करतूतों पर डाल रहा पर्दा
शहर के दो लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार ग्रेटर नोएडा का राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान झूठ बोलने पर उतर आया है। अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए जिम्स मैनेजमेंट झूठ पर झूठ बोल रहा है। जागृति गुप्ता की सड़क पर मौत और महेश सिंह की लाश छिपाने के मामले में जिम्स मैनेजमेंट की ओर से सफाई दी गई है। जिसमें बेहद हास्यास्पद तथ्य रखे गए हैं। जिम्स मैनेजमेंट ने मान लिया कि महेश सिंह आईसीयू वार्ड से बेहोशी की हालत में उठकर फरार हो गए। कर्मचारियों की एक टीम ने उनकी लाश को मोर्चरी में रख दिया और दूसरी टीम ने उन्हें डिस्चार्ज घोषित कर दिया। परिवार 4 दिनों से धक्के खाता रहा। डायरेक्टर और प्रशासनिक अधिकारी बार-बार केवल उन्हें हड़काते रहे। दूसरी ओर जागृति गुप्ता के मामले में भी अजीबोगरीब सफाई पेश की गई है।
महेश सिंह की मौत, डिस्चार्ज और फिर लाश मिलने का मामला
जिम्स प्रबंधन का कहना है, 20 अप्रैल 2021 को मरीज को संस्थान के अलगाव वार्ड में भर्ती कराया गया। जिसको कोविड के साथ ही अन्य को-मोर्बिडिटिज भी थीं। जहां वह दो दिन तक रहा। तीसरे दिन अचानक से तबियत एकदम खराब होने के कारण अलगाव वार्ड के स्टाफ ने मरीज को आईसीयू में शिफ्ट कराया। जहां मरीज के बेहोश होने की वजह से आईसीयू में तैनात स्टाफ को मरीज के नाम और अन्य जानकारी नहीं मिल सकी। जिस कारण स्टाफ ने मरीज को अज्ञात रूप में भर्ती दर्शाया। आईसीयू में मरीज की जान बचाने की भूरपूर कोशिश की गयी। किन्तु कोशिश सफल न हो सकी और 25 अप्रैल 2021 को इलाज के दौरान मरीज की मृत्यु हो गयी।
इसी दौरान मरीज का पार्थिव शरीर मोर्चरी में अज्ञात में दर्ज कर रखवा दिया गया। इसी बीच शिफ्ट चेंज होने के बाद अलगाव वार्ड में तैनात स्टाफ ने मरीज को बेड पर न पाकर रिकॉर्ड में भाग जाना दर्ज दिखा दिया। मरीज के परिजनों ने संस्थान में मरीज के बारे में पता किया। उनको मोर्चरी में अज्ञात में दर्ज शव की पहचान करवाई। उन्होंने शव की पहचान अपने मरीज के रूप में कर ली है। इस घटना से मरीज के परिजानों को हुई मानसिक परेशानी के लिए संस्थान को खेद है।
क्या हैं इन सवालों के जवाब
अस्पताल में तीसरे दिन अचानक से महेश सिंह की तबियत खराब हो गई। अलगाव वार्ड के स्टाफ ने मरीज को आईसीयू में शिफ्ट कराया तो फिर अलगाव वार्ड को कैसे नहीं पता कि मरीज कहां गया ? क्योंकि अलगाव वार्ड में तैनात स्टाफ ने ही मरीज को बेड पर न पाकर रिकॉर्ड में भाग जाना दर्ज दिखाया।
क्या अस्पताल में कोई रिकॉर्ड दर्ज करने की व्यवस्था नहीं है कि किस मरीज को कहां भेजा जा रहा है ? अगर ऐसा नहीं होता तो फिर इतने बड़े अस्पताल का संचालन कैसे किया जा रहा है ?
जब महेश को अलगाव वार्ड में तैनात स्टाफ ने भाग जाना दर्ज दिखा दिया तो अस्पताल के निदेशक और प्रशासनिक अफसर ने परिवार को डिस्चार्ज समरी करों दी। क्या यह डिस्चार्ज समरी मामले से पल्ला झाड़ने के लिए फर्जी तैयार करवाई गई थी ?
महेश सिंह को जिले के नोडल अफसर नरेंद्र भूषण के निर्देश पर भर्ती किया गया था। सोशल मिडिया पर कई पोस्ट उसकी बीमारी से जुडी हैं। उसका आधार कार्ड और सहयोगी के मोबाइल नंबर फाइल में दर्ज हैं। ऐसे में महेश को लावारिश क्यों करार दिया गया ?
जब परिजन अस्पताल पहुंचे तो उन्हें बमुश्किल मोर्चरी में लाश दिखाई गईं। पहले बोला गया कि दो महिलाओं की लाश हैं। जब महेश की लाश परिवार ने पहचान ली और पूछा कि इन्हें लावारिस क्यों लिखा तो बताया गया कि इस व्यक्ति को तो हम सड़क से उठाकर लाए हैं।
25 अप्रैल 2021 को महेश की इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी। 30 को कहीं जाकर परिवार को पता लगा। पांच दिन जिम्स प्रबंधन महेश सिंह को डिस्चार्ज और फरार बताता रहा। क्या अस्पताल में सीसीटीवी नहीं लगे हैं ? क्यों रिकॉर्डिंग नहीं देखी और देखी तो झूठ क्यों बोलते रहे ?
जागृति गुप्ता की मौत पर जिम्स ने दी यह सफाई
जिम्स मैनेजमेंट का कहना है कि 29 अप्रैल 2021 की दोपहर को संस्थान की फ्लू ओपीडी में कुछ लोग कार में एक कोरोना संक्रमित महिला को इलाज के लिए भर्ती कराने के लिए लाये। जिस पर फ्लू ओपीडी में तैनात डाक्टर्स ने महिला के परिजनों को संस्थान में आईसीयू बेड खाली न होने की सूचना दी। साथ महिला की गम्भीर हालत को देखते हुए शीघ्र ही किसी अन्य अस्पताल में भर्ती कराये जाने की सलाह दी गयी थी। संस्थान की फ्लू ओपीडी में आपात स्थिति में आये मरीजों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था भी की गयी है। जिस पर उस वक्त मरीज लेटे हुये थे। किन्तु परिजन फिर भी महिला को संस्थान में भर्ती कराये जाने की कोशिश में लगे रहे। किन्तु अन्य किसी और अस्पताल नहीं ले गये। इसी दौरान जब संस्थान के आपातकालीन विभाग में तैनात डाक्टर्स महिला को देखने पहुंचे तब तक महिला की मृत्यु हो चुकी थी। इस दुखद घटना पर संस्थान खेद व्यक्त करता है।
कुल मिलाकर जिम्स के दावे से साफ है कि जागृति गुप्ता को अस्पताल लेकर गए परिजन झूठ बोल रहे हैं। जागृति गुप्ता करीब साढे 3 घंटे तक अस्पताल के बाहर सड़क पर तड़पती रही। मरने के बाद भी तीन-चार घंटों तक उनकी लाश अस्पताल के बाहर सड़क पर कार में ही पड़ी रही। सवाल यह उठता है कि साढ़े 3 घंटों में जिम्स के डॉक्टर और मैनेजमेंट एक मरणासन्न महिला को देखने तक नहीं पहुंचे। डॉक्टर देखने पहुंचे जब महिला की साथी ने एकबार फिर जाकर बताया कि शायद वह मर चुकी है। अब तो सांस भी नहीं ले रही है। इसके बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया और लाश को वहीं छोड़कर चले गए। कुल मिलाकर इन दोनों मामलों में जिम्स प्रबंधन का व्यवहार पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय रहा है। इन मामलों में अस्पताल प्रबंधन महेश सिंह और जागृति गुप्ता के परिजनों को झूठा करार देकर खेद प्रकट कर रहा है। इस खेद प्रकट में भी जिम्स मैनेजमेंट गलत तथ्य प्रस्तुत करके जवाबदेही और जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है।