जिसे अस्पताल से डिस्चार्ज करने की बात कही उसकी लाश मोर्चरी में मिली, अब कहा- ‘सड़क से उठाकर लाए थे’

ग्रेटर नोएडा जिम्स की घोर लापरवाही: जिसे अस्पताल से डिस्चार्ज करने की बात कही उसकी लाश मोर्चरी में मिली, अब कहा- ‘सड़क से उठाकर लाए थे’

जिसे अस्पताल से डिस्चार्ज करने की बात कही उसकी लाश मोर्चरी में मिली, अब कहा- ‘सड़क से उठाकर लाए थे’

Tricity Today | ग्रेटर नोएडा जिम्स की घोर लापरवाही सामने आई है

  • 20 अप्रैल को इलाज के लिए यहां भर्ती हुए 47 वर्ष के महेश का ‘लावारिस’ शव एक मई को दोपहर बाद परिजनों को सौंपा गया
  • कई दिनों से अस्पताल प्रबंधन महेश को स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज करने की बात कह रहा था
  • अस्पताल प्रबंधन चिल्ला-चिल्ला कर कहता रहा कि यहां उस नाम का कोई मरीज इलाज कराने नहीं आया
  • परिजनों का आरोप है कि इलाज के अभाव में महेश की जान ली गई है
  • हॉस्पिटल की डिस्चार्ज समरी और डायरेक्टर के यहां मौजूद फाइल में महेश का नाम, पता, आधार कार्ड और फोटो उपलब्ध है
ग्रेटर नोएडा में स्थित गौतमबुद्ध नगर के सबसे बड़े कोविड हॉस्पिटल राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) ने लापरवाही और अमानवीयता की सारी हदें पार कर दी हैं। गुरुवार को अस्पताल के बाहर एक महिला ने तड़प तड़पकर दम तोड़ दिया। फिर उसका शव अस्पताल के बाहर घंटों पड़ा रहा। अब 20 अप्रैल को इलाज के लिए यहां भर्ती हुए 47 वर्ष के महेश का ‘लावारिस’ शव एक मई को दोपहर बाद परिजनों को सौंपा गया। परिजन मृतक का अंतिम संस्कार करा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि कई दिनों से अस्पताल प्रबंधन महेश को स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज करने की बात कह रहा था। लेकिन अस्पताल प्रबंधन अब तक साफ नहीं कर पाया है कि आखिर इतनी बड़ी चूक कहां और किससे हुई? किसको इसका कसूरवार ठहराया जाए? परिजनों को मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए 2 दिन बाद बुलाया गया है। 

शुक्रवार को परिवार के लोग सख्त हो गए। मोर्चरी में रखी लाशों को दिखाने पर अड़ गए। देश शाम अस्पताल प्रबंधन ने लाशें दिखाई तो महेश की पहचान हो गई। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने नया राग अलापना शुरू कर दिया है। अब परिजनों को बताया कि उन्हें महेश का शव सड़क पर मिला था। लेकिन इस पूरे मामले के कई ऐसे पहलू हैं, जो चीख-चीख कर कह रहे हैं कि जिम्स मैनेजमेंट ने जानबूझकर एक के बाद एक नए ताने-बाने बुने। जिसमें महेश की मौत और अपनी लापरवाहियों को उलझाने की कोशिश की गई है। सवाल यह उठ रहा है कि जिम्स मैनेजमेंट आखिर यह सब क्यों कर रहा है?

नहीं तय हुई जिम्मेदारी
महेश के करीबी रिश्तेदार अमित भाटी ने बताया कि एक हफ्ते से परेशान परिजन और करीबी जब शुक्रवार को जिम्स पहुंचे, तो उन्हें बताया गया कि 24 अप्रैल को ही उसे डिस्चार्ज कर दिया गया था। डिस्चॉर्ज समरी भी दी गई। लेकिन उस पर तिथि तक नहीं लिखी थी। इसी दौरान पता चला कि हॉस्पिटल में दो लावारिस शव रखे हुए हैं। उनकी शिनाख्त नहीं हो पाई है। करीबियों और परिजनों ने एक शव की पहचान महेश के रूप में की। जबकि एक दिन पहले तक अस्पताल प्रबंधन चिल्ला-चिल्ला कर कहता रहा कि यहां उस नाम का कोई मरीज इलाज कराने नहीं आया। दुखद यह है कि महेश को जिम्स में नोडल अधिकारी के हस्तक्षेप के बाद 20 अप्रैल को भर्ती कराया गया था। स्वयं जिम्स के डायरेक्टर ने महेश की फाइल में उसके आधार कार्ड और फोटोग्राफ भी परिजनों को दिखाए थे। फिर उसका शव लावारिश कैसे हो सकता था? अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि उसकी मौत गुरुवार को हुई थी, लेकिन इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि इसकी जांच कराई जाएगी।

20 अप्रैल को भर्ती कराया गया था
उत्तराखंड के चंपावत जिले के रहने वाले महेश सिंह (47 वर्ष) ग्रेटर नोएडा के एक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट में पिछले 10 वर्षों से काम कर रहे थे। रेस्टोरेंट के मालिक अमित भाटी ने बताया कि बीते 20 अप्रैल को महेश को कोरोना संक्रमित मिलने पर ग्रेटर नोएडा के जिम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि, उसे भर्ती कराने के लिए भी तीन दिन चक्कर काटना पड़ा था। सोशल मिडिया पर मामला आने के बाद जिले के नोडल अधिकारी नरेंद्र भूषण को हस्तक्षेप करना पड़ा। तब उसे जिम्स में जगह मिली थी। अमित ने बताया, “बीते 23 अप्रैल को जिम्स अस्पताल से महेश के परिजनों के नंबर पर एक कॉल आई। कहा गया कि उसे प्लाज्मा की जरूरत हो सकती है। परिजनों ने उपलब्ध कराने के लिए स्वीकृति दी। लेकिन अस्पताल से फिर कोई कॉल नहीं आई।”

चार दिन जाने के बावजूद भेंट न हो सकी
अमित भाटी ने बताया कि गत 25 अप्रैल को करीबियों ने अस्पताल में कॉल कर महेश का हाल-चाल जानने की कोशिश की। उन्हें बताया गया कि वह बिल्कुल ठीक है और अब प्लाज्मा की आवश्यकता नहीं है। कॉल पर उपस्थित स्टॉफ ने कहा कि महेश को तीसरी मंजिल पर स्थित वॉर्ड में शिफ्ट किया गया है। इसके बाद 26 अप्रैल को परिजन महेश से मिलने जिम्स अस्पताल पहुंचे। लेकिन लंबे इंतजार के बावजूद मुलाकात नहीं हो पाई। वहां मौजूद स्टॉफ टालमटोल करता रहा। करीबियों से कहा गया कि अगले दिन आकर मिल सकते हैं। 27 अप्रैल को परिजन फिर जिम्स पहुंचे। लेकिन पूरे दिन बैठने के बाद भी महेश से भेंट न हो पाई। हालांकि डॉक्टरों ने बताया कि उसका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है। घबराने की बात नहीं है। 

हॉस्पिटल से डिस्चार्ज स्लिप मिली
परेशान पीड़ित करीबी और परिजन 28 अप्रैल को फिर अस्पताल पहुंचे। इस बार मुलाकात के लिए उन्होंने डॉक्टरों और स्टॉफ से बहस की। तब अस्पताल प्रबंधन ने यह कहकर परिजनों को हैरान कर दिया कि महेश सिंह नाम का कोई मरीज हॉस्पिटल में एडमिट नहीं हुआ था। इसको लेकर प्रबंधन और परिजनों के बीच काफी नोकझोंक हुई। बीच-बचाव का रास्ता अपनाते हुए प्रबंधन ने कहा कि वह इसकी जांच कराएगा। परिजनों को फिर अगले दिन बुलाया गया। 29 अप्रैल को महेश के करीबी फिर जिम्स पहुंचे। देर शाम तक इंतजार के बाद उन्हें बताया गया कि महेश को 24 अप्रैल को ही डिस्चार्ज कर दिया गया था। हॉस्पिटल की तरफ से डिस्चार्ज समरी दी गई। लेकिन उस पर डिस्चार्ज की तिथि भी नहीं लिखी है। 



पहचान के बावजूद शव को बताया लावारिस
शुक्रवार को जिम्स से महेश के परिजनों के नंबर पर एक कॉल आई। इसमें कहा गया कि संस्थान के निदेशक शाम 4:00 बजे उनसे मुलाकात करेंगे। परिजन दिए हुए वक्त से पहले पहुंच गए। करीब डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद डायरेक्टर उनसे मिले और एक महिला डॉक्टर से मिलने को कहा। महिला डॉक्टर ने बताया कि हॉस्पिटल में दो लावारिस सव रखे हैं। एक बार उनकी शिनाख्त कर लीजिए। दोनों लाशों की फोटो फोन पर मंगाई गई। उसमें से एक की पहचान महेश के रूप में हुई। हॉस्पिटल मैनेजमेंट का कहना है कि दोनों शव गुरुवार के हैं और लावारिस हैं। जबकि हॉस्पिटल की डिस्चार्ज समरी और डायरेक्टर के यहां मौजूद फाइल में महेश का नाम, पता, आधार कार्ड और फोटो उपलब्ध है। तो फिर अस्पताल ने उसके शव को लावारिस कैसे घोषित किया? परिजनों का आरोप है कि इलाज के अभाव में महेश की जान ली गई है। अब अपनी गलती छुपाने के लिए अस्पताल प्रबंधन इस तरह की मनगढ़ंत कहानी सुना रहा है।

अस्पताल प्रबंधन ने मामले में चुप्पी साधी, परिजनों से कहा- मीडिया के पास क्यों गए
इस पूरे प्रकरण को लेकर राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डायरेक्टर ब्रिगेडियर आरके गुप्ता और प्रशासनिक अधिकारी अनुराग से बात करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन दोनों ही शीर्ष अफसरों की ओर से पूरे मसले पर कोई जानकारी साझा नहीं की गई है। लेकिन महेश सिंह के करीबी और परिजनों को दोनों अफसर धमका रहे हैं कि तुम लोग मीडिया के पास क्यों गए। दरअसल, पिछले 2 दिनों से ट्राईसिटी टुडे और शहर के समाचार पत्र इस प्रकरण को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहे हैं। जिसके बाद जिम्स प्रबंधन हरकत में आया। परिजनों का आरोप है कि डायरेक्टर और प्रशासनिक अधिकारी ने उन्हें मीडिया को जानकारी देने पर खूब धमकाया है। इस प्रकरण को लेकर जिला प्रशासन और नोडल अधिकारी नरेंद्र भूषण की ओर से भी प्रतिक्रिया मिलने का इंतजार है।

इस पूरे मामले को लेकर शहर के लोग और सामाजिक संगठन आक्रोशित है। इन लोगों का कहना है कि जिस अस्पताल के बाहर कई घंटों तक तड़प तड़पकर एक महिला ने अपनी कार में दम तोड़ दिया, अब महेश सिंह के मामले पर उस अस्पताल प्रबंधन के लोग कह रहे हैं कि उसे सड़क पर लावारिस पड़ा हुआ उठाकर लाए थे। अगर अस्पताल के डायरेक्टर और मैनेजमेंट के दूसरे अफसर इतने ही दयालु हैं तो अस्पताल के बाहर सड़क पर महिला को मर जाने क्यों दिया?
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