Tricity Today | तुस्याना भूमि घोटाले में कैलाश भाटी को दोहरा झटका
Allahabad/Greater Noida : ग्रेटर नोएडा के तुस्याना गांव में हुए अरबों रुपए के भूमि घोटाले से जुड़ी बड़ी खबर है। भारतीय जनता पार्टी के विधान परिषद सदस्य नरेंद्र भाटी के छोटे भाई कैलाश भाटी की जमानत याचिका एक बार फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। कैलाश भाटी की पहली जमानत याचिका 24 जनवरी 2023 खारिज की जा चुकी थी। दो नए आधार बताते हुए दूसरी याचिका दायर की गई। जिस पर 25 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी। सारे पक्षों के तर्क सुनने के बाद अदालत ने फैसला रिजर्व रख लिया था। अब 5 मई को अदालत ने अपना आदेश जारी किया है। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की अदालत ने आदेश में कहा है कि कैलाश भाटी की ओर से बताए गए दोनों ही आधार जमानत देने लायक नहीं हैं। इतना ही नहीं कोर्ट ने इस पूरे मामले का ट्रायल एक साल में पूरा करने का आदेश गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय को दिया है।
क्या है मामला
सच सेवा समिति नाम के एक सामाजिक संगठन ने साल 2021 में गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय में एक अर्जी दाखिल की थी। बताया कि ग्रेटर नोएडा के तुस्याना गांव में अरबों रुपए की सरकारी जमीन को भूमाफिया किस्म के कुछ लोगों ने हड़प लिया है। उस जमीन के बदले करोड़ों रुपए मुआवजा प्राधिकरण से लिया गया है। जिसमें मकोड़ा गांव के रहने वाले राजेंद्र भाटी समेत कई लोगों को आरोपी बनाया गया। सच सेवा समिति के आवेदन पर गौतमबुद्ध नगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पुलिस को 156 (3) सीआरपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। ग्रेटर नोएडा के ईकोटेक-3 थाने में आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 और 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई। तब से पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी।
कैलाश की गिरफ्तारी हुई
पिछले साल गौतमबुद्ध नगर पुलिस की एसआईटी ने ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में बतौर मैनेजर प्रॉपर्टी कार्यरत रहे कैलाश भाटी और दो अन्य लोगों को गिरफ्तार किया। पुलिस ने बताया कि कैलाश भाटी ने राजेंद्र भाटी की पुत्रवधू को एक भूखंड का आवंटन किया है। यह भूखंड आवंटन गलत ढंग से किया गया। जालसाजी करके गलत दस्तावेज इस्तेमाल किए गए हैं। भूखंड आवंटन जिस महिला को होना चाहिए था, उसके स्थान पर फर्जीवाड़ा करके राजेंद्र भाटी की पुत्रवधू के फोटो और नाम का इस्तेमाल किया गया है। भूखंड का आवंटन और रजिस्ट्रेशन करने की पूरी प्रक्रिया एक ही दिन में पूरी की गई है। बतौर प्रॉपर्टी मैनेजर कैलाश भाटी ने अपने दायित्व का दुरुपयोग किया है।
कैलाश के जमानत के लिए दो तर्क
कैलाश भाटी ने पहले गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय से जमानत मांगी। जिला न्यायालय ने उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद कैलाश भाटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत की मांग की। हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अब एक बार फिर हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की गई थी। जिसमें कैलाश भाटी के वकील ने दो तर्क दिए थे। पहला, इस मामले में सह अभियुक्त दीपक भाटी को जमानत मिल गई है। लिहाजा, कैलाश भाटी को भी जमानत दी जानी चाहिए। कैलाश भाटी एक सरकारी अधिकारी हैं। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वाह करने के लिए विवादित लीज डीड पर अपने हस्ताक्षर किए थे। वह अपनी ड्यूटी का निर्वाह कर रहे थे। उन पर मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार से अनुमति नहीं ली गई है।
अदालत ने कहा- तर्कों में दम नहीं
दूसरी तरफ राज्य सरकार और सच सेवा समिति के वकीलों ने इन दोनों तर्कों का विरोध किया। राज्य सरकार के वकील ने बताया कि कैलाश भाटी सीधे उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन कार्यरत नहीं है। वह ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के कर्मचारी थे। अब उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण में कार्यरत है। ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण एक अलग कानून के तहत गठित की गई स्वायत्तशासी संस्था है। उसके किसी कर्मचारी पर अभियोग संचालित करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। दूसरे तर्क पर वकीलों ने कहा कि दीपक और कैलाश भाटी की भूमिका अलग-अलग है। कैलाश भाटी की जिम्मेदारी संवेदनशील थी। उनकी वजह से ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण को हानि पहुंची है। दीपक भाटी सरकारी कर्मचारी नहीं है। वह एक सामान्य व्यक्ति है। जिसकी पत्नी एफ़आईआर में नामजद अभियुक्त है। कोर्ट ने माना कि कैलाश भाटी की ओर से जमानत हासिल करने के लिए अदालत के सामने रखे गए दोनों तर्क बलहीन हैं। दूसरी ओर प्रतिपक्षी वकीलों के तर्क विचार करने लायक हैं। अदालत कैलाश भाटी को जमानत देने का कोई आधार नहीं पाती है। लिहाजा, जमानत याचिका खारिज की जाती है।
एक साल में ट्रायल पूरा होगा
अदालत ने गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय को निर्देश दिया है। अदालत ने कहा, “याची पर चलाए जा रहे मुकदमे की सुनवाई जल्दी से जल्दी पूरी कर ली जाए। इस आदेश की सत्यापित प्रतिलिपि मिलने के बाद एक वर्ष में मुकदमे का ट्रायल पूरा किया जाए।” कुल मिलाकर कैलाश भाटी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोई राहत नहीं दी है। अब उसे जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। दूसरी ओर इस मुकदमे की सुनवाई में तेजी आएगी। गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय को अगले एक वर्ष में मुकदमे पर फैसला सुनाना होगा।