पहली बार पैरालंपिक खेल रही साक्षी कसाना को पदक की उम्मीद, कहानी जानकर आप कहेंगे-वाह बिटिया!

ग्रेटर नोएडा की शेरनी पेरिस में दहाड़ेगी : पहली बार पैरालंपिक खेल रही साक्षी कसाना को पदक की उम्मीद, कहानी जानकर आप कहेंगे-वाह बिटिया!

पहली बार पैरालंपिक खेल रही साक्षी कसाना को पदक की उम्मीद, कहानी जानकर आप कहेंगे-वाह बिटिया!

Tricity Today | साक्षी कसाना

Greater Noida News : 28 अगस्त से पेरिस में पैरालंपिक खेलों की शुरुआत होने जा रही है। इस बार भारत के 84 पैरा एथलीट दमखम दिखाएंगे,जो अब तक का सबसे बड़ा दल है। भारतीय खिलाड़ी 25 पदकों का लक्ष्य लेकर पेरिस गए हैं। आज बात ऐसी एथलीट की जो डिस्कस थ्रो में एशियाई पैरा खेलों में कांस्य पदक और राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक जीत चुकी हैं।

जानिए कौन हैं डिस्कस थ्रोअर साक्षी
साक्षी कसाना का जन्म 2002 में दिल्ली में हुआ था। जन्म से ही उनके दाहिने पैर में थोड़ी विकृति थी। उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत होती थी लेकिन परिवार ने उन्हें हिम्मत दी और कुछ अलग करने का हौसला दिया। अकसर ऐसे बच्चों पर अपाहिज का तमगा लगाकर उनका मनोबल तोड़ दिया जाता है लेकिन साक्षी के माता-पिता ने समझाया कि खुद को किसी से कम मत समझो और अपनी कमजोरी को ताकत बनाओ। साक्षी ने धीरे-धीरे खेलों की शुरुआत की और स्कूल खेलों में दम दिखाया और कई पदक जीते। इसके बाद उन्होंने गाजियाबाद में भारतीय खेल प्राधिकरण के प्रशिक्षण केंद्र में कोच अमित कुमार के मार्गदर्शन में खेल की मूल बातें सीखीं। 

पदक जीतने की पूरी उम्मीद
साक्षी ने पेरिस रवाना होने से पहले कहा कि मुझे पदक जीतने की पूरी उम्मीद है। पिछले चार साल से मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत की है। ओलंपिक में खेलना हर खिलाड़ी का सपना होता है। मेरा यह सपना पूरा होने जा रहा है। इसे लेकर मैं बहुत उत्साहित हूं।

अजनारा होम्स सोसायटी निवासी
अजनारा होम्स सोसायटी में अपने माता-पिता के साथ रहने वाली साक्षी कसाना शुरू से काफी होशियार और पढ़ने-लिखने में तेज रही। 2017 में सड़क हादसे ने साक्षी की जिंदगी बदल दी थी। बीडीएस की पढ़ाई बीच में छूट जाने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के 'स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग' से स्नातक किया जिसके बाद परास्नातक में दाखिला लेकर पढ़ाई की। इसके साथ पैरा गेम्स में शामिल हो गईं। 

इसलिए नहीं जा सकी थीं टोक्यो 
साक्षी महिलाओं की डिस्कस थ्रो F55 श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करती हैं। उन्होंने पेरिस में 2024 ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए अर्हता हासिल की। वह टोक्यो के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकी थी, क्योंकि कई भारतीय मई 2021 में COVID-19 के कारण क्वालीफाइंग इवेंट, यूरोपीय ग्रां प्री सर्किट की यात्रा नहीं कर सके। हालांकि, बाद में उन्होंने चीन के हांगझोऊ में 2022 एशियाई पैरा खेलों में कांस्य पदक जीता। उसने 24.77 मीटर की दूरी फेंकी और चीन की वांग यानपिंग और ईरान की हाशमीयेह मोटाघियन मोवी से पीछे रही । 4 मार्च 2021 में, वह बैंगलोर में राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक के साथ सुर्खियों में आईं।

पैरा एथलीट में क्या होती F55 स्पर्धा 
F55 विकलांगता एथलेटिक्स के लिए एक विकलांगता खेल वर्गीकरण है जो उन लोगों के लिए है जो बैठी हुई स्थिति से मैदानी स्पर्धाओं में भाग लेते हैं। इस वर्ग के खिलाड़ियों में पूर्ण भुजा कार्य, आंशिक धड़ कार्य और कोई निचला अंग कार्य नहीं होता है। इस वर्ग में विभिन्न विकलांगता समूह प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिनमें रीढ़ की हड्डी की चोट वाले लोग भी शामिल हैं। वर्गीकरण को पहले निचले 3, ऊपरी 4 के रूप में जाना जाता था।

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