भूमाफिया गैंग के खिलाफ सबूत नहीं तलाश पाई एसआईटी, पढ़िए TRICITY TODAY का चौंकाने वाला खुलासा

SUPER EXCLUSIVE : भूमाफिया गैंग के खिलाफ सबूत नहीं तलाश पाई एसआईटी, पढ़िए TRICITY TODAY का चौंकाने वाला खुलासा

भूमाफिया गैंग के खिलाफ सबूत नहीं तलाश पाई एसआईटी, पढ़िए TRICITY TODAY का चौंकाने वाला खुलासा

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Greater Noida : गौतमबुद्ध नगर की दादरी तहसील के गांव चिटहेरा में अरबों रुपए की सरकारी जमीन भूमाफिया, बड़े-बड़े बिजनेसमैन, नेताओं और आईएएस-आईपीएस अफसरों के रिश्तेदार डकार गए। इस मामले की जांच गौतमबुद्ध नगर पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) कर रही है। कई महीने कोशिश करने के बावजूद एसआईटी इस माफिया गैंग के खिलाफ सबूत जुटाने में नाकाम रही है। जिसकी बदौलत चिटहेरा गांव के लेखपाल शीतला प्रसाद को जिला अदालत ने जमानत दे दी। अब इस घोटाले का मास्टरमाइंड यशपाल तोमर अदालत से जमानत मांग रहा है। यशपाल की जमानत अर्जी पर 23 नवंबर को अदालत सुनवाई करेगी। दूसरी ओर 'ट्राईसिटी टुडे' की पड़ताल लगातार जारी है। हमारे पास ऐसे सरकारी दस्तावेज उपलब्ध हैं, जो इस गैंग का कच्चा चिट्ठा खोलते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है आखिर एसआईटी सरकारी दफ्तरों में ही मौजूद दस्तावेजों तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है? आपको बता दें कि आपके पसंदीदा न्यूज़ पोर्टल 'ट्राईसिटी टुडे' ने इस महा-घोटाले का खुलासा किया है।

ना केवल सरकारी जमीन लूटी गई बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग भी की
इस गैंग ने दादरी तहसील के चिटहेरा गांव में जमकर सरकारी जमीन लूटी है। यह जमीन लूटने के लिए गैंग ने सारे नियम-कानून ताक पर रख दिए। किसानों को डराया, धमकाया और जेल भिजवाया। यशपाल तोमर के गैंग में शामिल कारोबारियों और नेताओं ने जमीन लूटने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का भी सहारा लिया है। अब आगे आप जो जानकारियां पढ़ेंगे, वह आपको हैरानी में डाल देंगी। प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन से जुड़ी तमाम खामियों व दांव-पेंच का इन्होंने जमकर इस्तेमाल किया है। सरकारी जमीन के कैंसिल पट्टों के एग्रीमेंट गैंग ने अपने नाम करवाए। इसके बाद प्रशासनिक अफसरों से साज करके पट्टे बहाल करवाए गए। फिर किसानों से अपने गुर्गों के नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी करवाईं। गुर्गों ने पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल करके जमीन अपने आकाओं के रिश्तेदारों के नाम कर दी। फिर रिश्तेदारों से वसीयत के जरिए भूमाफिया यशपाल तोमर ने अरबों रुपए की जमीन अपनी बीवी के नाम करवा ली। आखिर में इस सरकारी जमीन का करोड़ों रुपए मुआवजा ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण से हासिल कर लिया।

ट्राईसिटी टुडे ने गैंग की पूरी मोड्स अपरेंडी क्रैक की
गौतमबुद्ध नगर पुलिस की एसआईटी महीनों से केवल जांच करने का दावा कर रही है। अब तक लेखपाल शीतला प्रसाद की गिरफ्तारी के अलावा कुछ हासिल नहीं हो पाया। शीतला प्रसाद को भी सबूतों के अभाव में कोर्ट ने जमानत दे दी। दूसरी ओर ट्राईसिटी टुडे ने अपनी इन्वेस्टिगेशन में इस माफिया गैंग की मोड्स अपरेंडी को क्रैक कर लिया है। अब हम आपके सामने 7 उदाहरण पेश कर रहे हैं, जो पूरे जलबट्टे को समझने में आपकी मदद करेंगे। यहां आपको यह भी बता दें कि गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन ने भी इस मामले की 6 महीने जांच की थी। जिसके बाद अधकचरी एफआईआर दर्ज करवाई गई। एफआईआर में इन्वेस्टिगेशन कम और सुनी-सुनाई बातें ज्यादा लिखी गई हैं। जिसका सीधा फायदा इंटरस्टेट लैंड माफिया यशपाल तोमर और उसके गैंग ने उठाया है। गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन ने जिन लोगों पर एफआईआर दर्ज की, उन्होंने चंद घंटों में इलाहाबाद हाईकोर्ट से एंटीसिपेटरी बेल हासिल कर ली थी।

मामला नम्बर-1 : सचिन शर्मा पुत्र ओम प्रकाश शर्मा 109 लोहिया नगर गाजियाबाद का निवासी है। इसके नाम पर 13 जून 2019 को दादरी के प्रोपर्टी रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्ट्री नम्बर 11946 की गई। चिटहेरा गांव में खसरा नम्बर 619 से 0.2403 हेक्टेयर जमीन सचिन शर्मा के नाम पर आई। यह बैनामा अरुण पुत्र ज्ञानचंद ने किया है। अरुण दिल्ली के पटपड़गंज में डी-1 यूनेस्को अपार्टमेंट का निवासी है। आपको बता दें कि अरुण घोषित भूमाफिया यशपाल तोमर का साला है। अरुण ने चिटहेरा गांव के किसान विनोद पुत्र भगवत की यह जमीन पॉवर ऑफ अटॉर्नी के जरिए सचिन को बेची है। बड़ी बात यह है कि राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी करके यह जमीन फर्जी ढंग से किसान विनोद के नाम पर बढ़ाई गई और फिर पॉवर ऑफ अटॉर्नी से हथिया ली गई है। इसमें गवाह मालू पुत्र वीरेंद्र है, जो बागपत जिले के फखरपुर गांव का निवासी है। दूसरा गवाह कर्मवीर पुत्र प्यारेलाल है। जिसने अपना फर्जी पता चिटहेरा लिखवाया है। वास्तव में कर्मवीर बागपत के बरवाला गांव का निवासी है। ट्राईसिटी टुडे विशेष समाचार श्रृंखला में खुलासा कर चुका है कि मालू और कर्मवीर गैंगस्टर भूमाफिया यशपाल तोमर के मुखौटा हैं। सचिन शर्मा एक कारोबारी है और उत्तराखंड में तैनात एक आईपीएस अफसर का रिश्तेदार है। इस जमीन की खरीद-फरोख्त पूरी तरह फर्जी है। अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि बैनामे में लिखा गया है कि जमीन की इनके बीच तय कीमत केवल 12 लाख रुपये है। जबकि इसकी बाजार कीमत 42.86 लाख रुपये दर्ज की गई है। बाजार कीमत पर ही स्टाम्प ड्यूटी चुकाई गई है।

मामला नम्बर-2 : पहले मामले में गवाह मालू इस दूसरे मामले में जमीन बेचने वाला बन जाता है। उसने सचिन शर्मा के नाम रजिस्ट्री नम्बर 5558 15 मार्च 2019 को दादरी के प्रोपर्टी रजिस्ट्रार ऑफिस में की है। इस बैनामे में जमीन का क्षेत्रफल 0.2530 हेक्टेयर है और यह खसरा नम्बर 1287 से बेची गई है। मालू और सचिन के बीच हुए इस बैनामे में कीमत केवल 10.12 लाख रुपये तय हुई है। जबकि बाजार की कीमत 43.01 लाख रुपये बताकर इसी के मुताबिक स्टांप ड्यूटी राज्य सरकार को चुकाई गई है। मालू ने सचिन को यह जमीन पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए बेची है। यह पावर ऑफ अटॉर्नी चिटहेरा गांव के किसान विजय पाल पुत्र फुंदन से हासिल की गई थी। आपको बता दें कि खसरा नंबर 1287 में यह रकबा किसान के नाम पर बढ़ाया गया है। इसके बाद भूमाफिया ने अपने रिश्तेदार मालू के जरिए बैनामा कारोबारी सचिन शर्मा के नाम करवाया है। यहां सवाल उठता है कि जब जमीन की बाजार कीमत इतनी ज्यादा है तो कौड़ियों के भाव यह बैनामे क्यों किए गए हैं? दरअसल, यह सारे लोग भूमाफिया गैंग के सदस्य हैं और घुमा फिराकर जमीन की बंदरबांट कर रहे थे।

मामला नम्बर-3 : चिटहेरा गांव में हुए भूमि घोटाले की बहती गंगा में हर किसी ने खूब हाथ धोए हैं। ट्राईसिटी टुडे को मिले एक और बैनामे में दर्ज जानकारियां चौंकाने वाली हैं। रजिस्ट्री नम्बर 6647/2019 मालू ने विकास शर्मा के नाम की। आपको बता दें कि विकास शर्मा ऊपर वाले बैनामे हासिल करने वाले कारोबारी सचिन शर्मा के बड़े भाई हैं। इस बैनामे में मालू ने 0.2530 हेक्टेयर जमीन खसरा 553 से विकास शर्मा को दे दी। बैनामे में तय कीमत 10.12 लाख रुपये और बाजार कीमत 43.01 लाख रुपये दर्ज की गई है। इस बैनामे के गवाह अरुण पुत्र ज्ञानचंद हैं। हम आपको बता चुके हैं कि अरुण भूमाफिया यशपाल तोमर का साला है। यह जमीन चिटहेरा गांव के हरिश्चंद्र पुत्र फुंदन के नाम थी। मालू ने हरिश्चंद्र से पावर ऑफ अटॉर्नी हासिल की। पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल करके जमीन विकास शर्मा के नाम कर दी है। यह पट्टे की जमीन है। पट्टा हरिश्चंद्र के नाम पर हुआ, जो बाद में जिला प्रशासन ने रद्द कर दिया था। जिस वक्त पावर ऑफ अटॉर्नी और बैनामा किया गया था उस वक्त पट्टा बहाल नहीं हुआ था। यह जमीन आज तक संक्रमणीय घोषित नहीं हुई है। पट्टा रद्द है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के मुताबिक सरकारी जमीन का पट्टा हासिल करने वाले किसान को जब तक संक्रमणीय भूमिधर घोषित नहीं किया जाता है, तब तक वह जमीन किसी दूसरे को नहीं बेच सकता है। यहां एक बात और काबिलेगौर है। बैनामा करवाते वक्त विकास शर्मा ने कीमत अदा करने के लिए बैंक चेक दिए। वह पैसा नियमानुसार जमीन के वास्तविक मालिक हरिश्चंद्र के खाते में जाना चाहिए। जबकि यह पैसा मालू के बैंक खातों में गया। पैसा बार-बार अरुण और मालू के खातों में जाता है। फिर वहां से यशपाल तोमर की पत्नी अंजना तोमर की कम्पनी आर्यनवीर एग्रो फूड प्राइवेट लिमिटेड के बैंक खातों में ट्रांसफर हो रहा था। आखिर में यह रकम घूमकर सचिन और विकास के बैंक खातों में चली जाती है। जिससे दो बातें साफ होती हैं। पहली, सचिन शर्मा, विकास शर्मा, मालू और अरुण गैंगस्टर भूमाफिया यशपाल तोमर के सीधे कनेक्शन में हैं। दूसरी बात यह साबित होती है कि यह सारे लोग मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए चिटहेरा में भूमि घोटाले को अंजाम दे रहे थे।

मामला नम्बर-4 : मालू ने एक और बैनामा विकास शर्मा के नाम किया। दादरी में यह रजिस्ट्री रजिस्ट्रेशन नंबर 6646 पर 30 मार्च 2019 को हुई थी। जमीन खसरा नम्बर 949 से है और इसका क्षेत्रफल 0.2110 हेक्टेयर है। बैनामे के मुताबिक इसकी तय कीमत 8.44 लाख रुपये और बाजार कीमत 36.87 लाख रुपए दर्ज की गई है। यह जमीन चिटहेरा गांव के किसान रवि पुत्र भगवत के नाम पर रेवेन्यू रिकॉर्ड में छेड़छाड़ करके बढ़ाई गई। इसके बाद रवि से मालू के नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी बनवाई गई। फिर मालू ने पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर विकास शर्मा के नाम बैनामा कर दिया। रवि अपनी वास्तविक जमीन बेच चुके थे। इस पहनावे में यशपाल तोमर का साला अरुण गवाह है।

मामला नम्बर-5 : चिटहेरा गांव में घोटाले की शुरुआत वर्ष 2013-14 में शुरू हुई और वर्ष 2020 तक भूमाफिया गैंग सरकारी जमीन की डकैती खुलेआम डालता रहा। इस दौरान दादरी तहसील में तैनात रहे एसडीएम और तहसीलदार लेवल के अफसर गैंग को भरपूर मदद पहुंचाते रहे। यह मामला कुछ ऐसा ही है। रजिस्ट्री नम्बर 23763 क पंजीकरण 7 दिसम्बर 2020 को हुआ। इस बैनामे के जरिए 0.4217 हेक्टेयर क्षेत्रफल खसरा नम्बर 162 से बेचा गया। रजिस्ट्री महिपाल पुत्र रामेश्वर ने की थी। उनकी मौत हो चुकी है। बेनामी के मुताबिक इस जमीन की तय कीमत 71.70 लाख रुपये थी। बाजार कीमत भी 71.70 लाख रुपये ही दर्ज की गई है। यह बौनामा अमित कुमार सिंह पुत्र राजनारायण सिंह के नाम हुआ। अमित सिंह रायबरेली जिले में उत्तरा गौरी के निवासी हैं। इस बैनामे में मालू गवाह है। बैनामे में बताया गया कि यह कीमत चेक के जरिए अदा की गई। अमित सिंह ने रायबरेली में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की लालगंज शाखा के आठ चेक दिए थे। इनमें 7 चेक 10-10 लाख रुपये और एक चेक 1,70,000 रुपये का था। उनमें से कोई भी चेक किसान महिपाल के बैंक खाते में क्लियर नहीं हुआ। बल्कि यह सारे चेक यशपाल तोमर के रिश्तेदारों और गुर्गों के बैंक खातों में क्लियर हुए हैं। कुछ चेक क्लियर भी नहीं हुए हैं। जो चेक क्लियर हुए उनका पैसा एक कम्पनी के खाते में गया। वहां से पैसा वापस अमित सिंह के बैंक खातों में चला गया। अमित सिंह दादरी तहसील में तैनात रहे एक अफसर का रिश्तेदार है।

मामला नंबर-6 : यह बैनामा कारोबारी विकास शर्मा के नाम पर किया गया है। इस बार यशपाल तोमर के साले अरुण ने रजिस्ट्री विकास शर्मा के नाम की। यह रजिस्ट्री दादरी के प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार कार्यालय में 9249/2019 है, जो 6 मई 2019 को हुई। इसमें खसरा नम्बर 559 से 0.2150 बेचना बताया गया है। बैनामे में तय कीमत केवल 8.60 लाख रुपये और बाजार कीमत 36,55,400 रुपये दर्ज है। किसान राजवीर पुत्र केशराम से अरुण ने इस जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी हासिल की थी। फिर पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए विकास शर्मा के नाम बैनामा कर दिया। यह भी रेवेन्यू रिकॉर्ड में जालसाजी करके बढ़ाए गए रकबे की जमीन है।

मामला नम्बर-7 : यह रजिस्ट्री किसान महिपाल सिंह पुत्र रामेश्वर ने सचिन शर्मा के नाम पर की थी। रजिस्ट्री नम्बर 26696 है। यह 30 दिसम्बर 2020 को हुई। महिपाल ने खसरा नम्बर 162 से 0.8433 हेक्टेयर जमीन बेची। जिसकी दोनों पक्षों के बीच तय कीमत 51 लाख रुपये और बाजार की कीमत 1 करोड़ 43 लाख 33 हजार लिखवाई गई। अब सवाल यह उठता है कि जब किसान महिपाल सिंह अपनी जमीन अमित सिंह को बेचते हैं तो तय कीमत और बाजार की कीमत बराबर रहती हैं। जब महिपाल सचिन शर्मा के नाम बैनामा करते हैं तो तय कीमत और बाजार कीमत में धरती-आसमान का फर्क आ जाता है। जबकि महिपाल सिंह ने दोनों लोगों को एक ही खसरा नंबर से बैनामा किया है। कुल मिलाकर साफ है कि यशपाल तोमर और उसका पूरा गैंग मनमाने ढंग से जमीन की कीमतें तय कर रहा था। कानूनों को तोड़कर पैसों का लेनदेन कर रहा था।

क्या कर रही है एसआईटी
इस भूमि घोटाले से जुड़े दस्तावेज और सबूत सरकारी दफ्तरों में बिखरे पड़े हैं। सवाल यह उठता है कि गौतमबुद्ध नगर पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम इन सबूतों तक कैसे नहीं पहुंच पा रही है? क्या एसआईटी ने सबूत जुटाने की जहमत नहीं उठाई? उन्हें सबूत नहीं मिल पाए या सबूतों तक पहुंचने की इच्छाशक्ति नहीं है? जहां सरकारी संसाधनों की खुली लूट हुई हो वहां पहले जिला प्रशासन और अब पुलिस की यह लापरवाही समझ से परे है।

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