ग्रेटर नोएडा में फर्जी दस्तावेजों पर लूटे गए आबादी के प्लॉट, अथॉरिटी को लगाया करोड़ों का चूना, पढ़िए TRICITY TODAY का बड़ा खुलासा

EXCLUSIVE : ग्रेटर नोएडा में फर्जी दस्तावेजों पर लूटे गए आबादी के प्लॉट, अथॉरिटी को लगाया करोड़ों का चूना, पढ़िए TRICITY TODAY का बड़ा खुलासा

ग्रेटर नोएडा में फर्जी दस्तावेजों पर लूटे गए आबादी के प्लॉट, अथॉरिटी को लगाया करोड़ों का चूना, पढ़िए TRICITY TODAY का बड़ा खुलासा

Tricity Today | ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण

बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा


ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के हालात कुछ ऐसे ही हैं। एक घोटाले की फाइल बंद नहीं होती, दूसरा उससे बड़ा घोटाला सामने आ जाता है। अब ऐसा ही एक और बड़ा घोटाला सामने आया है। शायद यह अथॉरिटी के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला हो सकता है। ख़ास बात यह है कि जिस फर्जीवाड़े को अथॉरिटी में तैनात आईएएस, पीसीएस और पढ़े-लिखे बड़े अफसर नहीं पकड़ पाए, उसे सामान्य गांव वालों ने पकड़ लिया है। इस मामले को लेकर Tricity Today आज से विशेष समाचार श्रृंखला प्रकाशित कर रहा है।

क्या है मामला
ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण भूमि अधिग्रहण की एवज में किसानों को 6% और 10% प्रतिशत विकसित आवासीय भूखंडों का आवंटन कर रहा है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में किसानों से हुए भूमि विवाद से पहले 6% आवासीय भूखंड दिया जा रहा था। इस विवाद में पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को 6% की बजाय 10% आवासीय भूखंड देने का आदेश दिया। कुछ दिन बाद प्राधिकरण ने तय कर दिया कि केवल उन किसानों को 10% भूखंड दिया जाएगा, जो हाईकोर्ट गए थे। बाकी सभी किसानों को केवल 6% भूखंड मिलेगा। यहीं से इस घोटाले की नींव पड़ी है।

शुरू हुआ फर्जीवाड़ा
'गजराज बनाम उत्तर प्रदेश सरकार', इस रिट याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 21 अक्टूबर 2011 को फैसला सुनाया था। इसके बाद किसानों को 10% भूखंड देने की शुरुआत की गई। इसके साथ ही फर्जीवाड़ा शुरू हो गया। प्राधिकरण के अफसर, दलाल किस्म के लोग, प्रॉपर्टी डीलर और कुछ नेताओं के गठजोड़ ने जालसाजी करके आवासीय भूखंड आवंटित करवाने शुरू कर दिए। फर्जी रिट याचिका संख्या, फर्जी पक्षकार, फर्जी खतौनियां और मुआवजा लेने के लिए जरूरी नक्शा नंबर-11 फर्जी ढंग से तैयार किए गए। इस मामले में तफ्तीश करने वाले ग्रामीणों का दावा है कि हजारों की संख्या में ऐसे मामले हैं। सैनी गांव के पूर्व प्रधान धीरेन्द्र सिंह ने ट्राईसिटी टुडे को यह दस्तावेज उपलब्ध करवाए हैं। जिनकी पड़ताल ट्राईसिटी टुडे ने भी की है। गांव वालों के दावे सही हैं।

ताजा सूची में जालसाजी
किसानों को 10% आवासीय भूखंड देने के लिए भूलेख विभाग के डिप्टी कलेक्टर शरद कुमार पाल ने 27 जुलाई 2022 को ताजा सूची जारी की है। इस सूची में खैरपुर गुर्जर, रोजा याकूबपुर, हबीबपुर, हैबतपुर, सूरजपुर, सैनी, पतवाड़ी, बिरौंडी चक्रसैनपुर गांवों के पात्र किसानों के नाम हैं। इन किसानों को 10% आवासीय भूखंड देने के लिए अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी दीपचंद की अध्यक्षता में 25 जुलाई 2022 को बैठक हुई थी। इस बैठक में 26 किसानों के नाम रखे गए थे। इनमें 19 को अपात्र माना गया। केवल 6 किसानों को पात्र घोषित कर दिया गया। इन पात्र घोषित किसान में 5 अपात्र हैं। इतना ही नहीं इन्हें पात्र घोषित करने के लिए इस्तेमाल किए गए दस्तावेज जाली हैं।

मामला 1. हरेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह पुत्र वेदराम (लोहिया नगर गाजियाबाद)
पात्रता सूची में बताया गया है कि इन लोगों की जमीन का अधिग्रहण रोजा याकूबपुर गांव में किया गया था। इन लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में 'डिप्टी शरण बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' रिट याचिका संख्या 46358/2011 दायर की थी। जिसके आधार पर इन्हें पात्र मानते हुए 1,465 वर्गमीटर आवासीय भूखंड दिया गया है। बड़ी बात यह है कि इस याचिका में यह दोनों लोग पक्षकार ही नहीं हैं। ट्राईसिटी टुडे के पास इस याचिका और इस पर आए फैसले की सत्यापित प्रतिपिलियां उपलब्ध हैं। जिसके पार्टी मेमो में इन दोनों लोगों के नाम नहीं हैं।

मामला 2. कालिंदी फार्म्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निदेशक अजय जैन (ओखला, नई दिल्ली)
पात्रता सूची में बताया गया है कि इस कम्पनी की जमीन का अधिग्रहण सूरजपुर में किया गया है। यह साल 2002 में किया गया है। कम्पनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में 'राजीव जैन बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' रिट याचिका संख्या 10674/2002 दायर की थी। जिसके आधार पर इन्हें पात्र मानते हुए 1,281 वर्गमीटर आवासीय भूखंड दिया गया है। हास्यास्पद स्थिति यह है कि रिट याचिका संख्या 10674/2002 ग्रेटर नोएडा वेस्ट का विवाद शुरू होने से पहले दायर की गई थी। गजराज बनाम सरकार मामले में कोर्ट का फैसला अक्टूबर 2011 में आया। राजीव जैन 2002 में हाईकोर्ट गए। इस पर फैसला 16 नवंबर 2007 में आया था। ऐसे में कम्पनी को कैसे लाभान्वित किया गया है?

मामला 3. अजब सिंह, महेश, बृजेश पुत्रगण जीतराम और अतरो देवी पत्नी जीतराम (बरौला, नोएडा)
इन लोगों की जमीन का अधिग्रहण सैनी गांव में किया गया था। अधिग्रहण से जुड़े नक्शा नंबर-11 के मुताबिक इन चारों को 280 रुपये वर्गमीटर की दर से प्रत्येक को 51,889 रुपये मुआवजा दिया गया था। लिहाजा, प्रत्येक की 185 वर्गमीटर जमीन अधिग्रहीत की गई थी। इन लोगों को इस अधिग्रहण की एवज में 60 वर्गमीटर का भूखंड आवंटित कर दिया गया था। सैनी गांव के किसानों की सूची में क्रम संख्या 90 पर इनका नाम अंकित है। यह जमीन खसरा नंबर 393 में अधिग्रहीत की गई है। जिसका कुल क्षेत्रफल 2,480 वर्गमीटर था। इसमें दो और सह-खातेदार महेंद्र पुत्र चंदी (सुनपुरा निवासी) और अंगत पुत्र फत्तन (सुनपुरा निवासी) हैं। सैनी गांव के आबादी भूखंड हासिल करने वाले किसानों की सूची में क्रम संख्या 379 पर अंगत के बेटे धर्मपाल का नाम अंकित है। उसे 250 वर्गमीटर का भूखंड आवंटित किया जा चुका है। अब अजब सिंह, महेश, बृजेश पुत्रगण जीतराम और अतरो देवी पत्नी जीतराम को फिर से 248 वर्गमीटर का भूखंड दिया गया है। जबकि, उन्हें 10% आवासीय भूखंड का लाभ पूर्व में दे दिया गया था। सवाल यह उठता है कि 2,480 वर्गमीटर भूमि अधिग्रहण की एवज में 558 वर्गमीटर आवासीय जमीन कैसे दी जा सकती है?

मामला 4. लख्मी, महावीर, बिजेंद्र, राजेंद्र और सुरेश पुत्र संताराम (इटैड़ा निवासी)
इन लोगों की जमीन का अधिग्रहण पतवाड़ी गांव में किया गया था। एसीईओ की पात्रता समिति ने लिखा कि इन लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका संख्या 46720/2011 'मेघराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' और रिट याचिका संख्या 70603/2011 'अनूप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' में पक्षकार हैं। खास बात यह है कि इन दोनों याचिकाओं में यह पांचों लोग पक्षकार नहीं हैं। रिट याचिका संख्या 70603/2011 गाजियाबाद के रजापुर गांव के लोगों ने दायर की थी। उनकी जमीन पतवाड़ी गांव में अधिग्रहीत हुई थी। अब इन पांचों लोगों को फर्जीवाड़ा करके 1,430 वर्गमीटर आवासीय भूखंड दिया गया है। मेघराज सिंह ने तीसरी रिट याचिका संख्या 48089/2011 यमुना अथॉरिटी के खिलाफ दायर की थी। उसमें भी इन लोगों के नाम पार्टी मेमो पर नहीं हैं।

मामला 5. हरिश्चंद्र पुत्र इतवारी (बिरौंडी चक्रसैनपुर)
हरिश्चंद्र ने अपने तीन सह-खातेदारों श्रीपाल, श्रीचंद और ताराचंद के साथ मिलकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका संख्या 46732/2011 दायर की थी। जिस पर हाईकोर्ट ने 'गजराज बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' मामले से इस याचिका को आच्छादित कर दिया। इन चारों की गांव में 13,188 वर्गमीटर जमीन खसरा संख्या 429 में अधिग्रहीत की गई थी। जिसके लिए इन्हें 6% के सापेक्ष 790 वर्गमीटर और 4% के सापेक्ष 530 वर्गमीटर आवासीय भूखंड आवंटित किया गया था। कुल 10% के सापेक्ष 1,320 वर्गमीटर भूखंड दिया जा चुका है। ग्राम बिरौंडी चक्रसैनपुर की आवंटन सूची पर क्रम संख्या 110 में यह आवंटन दर्ज है। अब ताजा सूची में हरिश्चंद्र पुत्र इतवारी को 204 वर्गमीटर भूखंड और आवंटित किया गया है। दरअसल, अकेले हरिश्चंद्र के नाम गांव में खसरा संख्या 439 में 5,180 वर्गमीटर भूमि अधिग्रहीत की गई थी। उसके लिए 6% के सापेक्ष हरिश्चंद्र पुत्र इतवारी को 310 वर्ग मीटर भूखंड पूर्व में आवंटित किया जा चुका है। अब रिट याचिका संख्या 46732/2011 का लाभ देकर 4% के सापेक्ष अतिरिक्त 204 वर्गमीटर भूखंड और आवंटित किया गया है। सवाल यह उठता है कि जब हरिश्चंद्र ने याचिका में अपने व्यक्तिगत खसरा संख्या का हवाला नहीं दिया गया था तो उसे यह लाभ क्यों दिया गया? दरअसल, प्राधिकरण की साफ पॉलिसी है कि हाईकोर्ट के आदेश में खसरा संख्या उद्धृत होना चाहिए। याचिका संख्या 46732/2011 में खसरा नंबर नहीं दिया गया है। सवाल यह भी है कि अगर हरिश्चंद्र पुत्र इतवारी यह अतिरिक्त लाभ लेने के पात्र होते तो बाकी सारे किसानों के साथ उन्हें पूर्व में लाभान्वित ना कर दिया जाता?

इस पूरे प्रकरण को लेकर ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की जा रही है। अभी प्राधिकरण की ओर से मामले को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। अथॉरिटी की ओर से जवाब मिलने पर समाचार अपडेट किया जाएगा।

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