Greater Noida News : आज पूरे भारतवर्ष में बड़े धूमधाम से दशहरे (Dussehra) का पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) में स्थित एक छोटे से गांव में आज तक ना तो दशहरा मनाया गया है और ना ही रावण के पुतले का दहन किया गया है। कई दशक पहले इस गांव के लोगों ने रावण के पुतले का दहन किया तो गांव में कई मौतें हो गई। जिसके बाद ग्रामीणों ने मंत्रोच्चारण के साथ रावण (Ravan) की पूजा की तो कहीं जाकर गांव में शांति हुई।
बिसरख गांव में होती है रावण की पूजा
गौतमबुद्ध नगर में स्थित बिसरख गांव में हजारों सालों से रावण की पूजा की जाती है। यहां पर भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग हैं। जिसकी स्थापना रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य मुनि ने इस मंदिर की स्थापना की। कुलस्त मुनि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे।
रावण ने चढ़ाई थी बलि
बिसरख में स्थित शिव मंदिर के महंत रामदास ने 'ट्राईसिटी टुडे' से बातचीत करते हुए कहा, "इस मंदिर की स्थापना हजारों साल पहले रावण के दादा ने की थी। रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य के बाद रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा ने यहां पर भगवान भोलेनाथ की पूजा की। यहां पर कई बलि चढाई गई। भगवान राम के जन्म से भी पहले इस मंदिर की स्थापना हो गई थी।"
अपनी मां कैकसी के साथी भी की थी पूजा
महंत रामदास ने आगे कहा, "रावण के अलावा विभीषण, कुंभकरण, अहिरावण, खर, सूर्पनखा और कुम्भिनी के अलावा लंका से आए रावण के सौतेले भाई कुबेर ने भी इस मंदिर में पूजा की थी। रावण के पिता विश्रवा थे। रावण की माता कैकसी थी, जो राक्षस कुल की थी। उन्होंने अपनी माता कैकसी के साथ आकर काफी बार बिसरख में पूजा की थी।
एक बार रावण का दहन किया तो...
गांव के निवासी अरुण भाटी ने बताया, "उनके दादा बताते हैं कि काफी समय पूर्व गांव के कुछ लोगों ने दशहरे के दिन रावण के पुतले को बनाकर जलाया था। जिसके बाद गांव पर दुष्प्रभाव पड़ा। लगातार गांव में कई लोगों की मौत हुई। पूरे गांव में काफी समय तक बुरा प्रभाव पड़ता रहा। रोजाना कुछ ना कुछ अनहोनी होने लगी। उसके बाद गांव की कुछ बुजुर्ग लोगों ने इस मंदिर में रावण की पूजा की। रावण की वह पूजा काफी समय तक चली। जिसके बाद गांव में शांति का माहौल दोबारा से प्राप्त हुआ।"
बिसरख गांव का देवता है रावण
ग्रामीणों ने 'ट्राईसिटी टुडे' से बातचीत करते हुए बताया कि, "रावण हमारे गांव का बेटा है और हमारे गांव का देवता है। इसलिए गांव में उन्होंने कभी भी किसी भी रामलीला का मंचन नहीं देखा है। जब से वह पैदा हुए हैं तब से आज तक गांव में रावण का दहन नहीं किया गया है। गांव में दशहरे के दिन हर घर में सुबह-शाम पकवान बनता है लेकिन ना तो गांव में रामलीला होती है और ना ही रावण का पुतला फूंका जाता है।