Tricity Today | महेंद्र सिंह भाटी
दादरी में हुई थी हत्या
दादरी को गुर्जरों की राजधानी कहें तो महेंद्र सिंह भाटी को शेर कहना पड़ेगा, यह बात उनके घनिष्ठ दोस्त और यूपी के दिवंगत मंत्री रवि गौतम ने सूरजपुर में एक जनसभा में 2014 के लोकसभा चुनाव में कही थी। उन्होंने कहा था, जब से वह (महेंद्र सिंह भाटी) गए राजनीति का मजा ही चला गया है। अभी उनके जैसा नेता पैदा नहीं हुआ है। लेकिन, आज से 27 साल पहले 13 सितम्बर 1992 को दादरी के तत्कालीन विधायक महेंद्र सिंह भाटी की दादरी में ही हत्या कर दी गई थी।
एके-47 से हुई थी हत्या
13 सितंबर 1992 को हुई उस घटना ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिलाकर रख दिया। अपराध और राजनीति के घालमेल की कलई खोलकर रख दी थी। एक विधायक की हत्या हुई थी। इस हत्या में एके-47 इस्तेमाल की गई थी। हत्या का आरोपी राजनीति की सीढ़ियां चढ़ता गया और उत्तर प्रदेश की सरकार में कैबिनेट मंत्री तक बन गया। बड़ी बात ये कि विधायक महेंद्र सिंह भाटी हत्यारोपी का राजनीतिक गुरू थे। हत्या का आरोप बुलन्दशहर के तत्कालीन विधायक डीपी यादव पर लगा था, जो बाद में मुलायम सिंह यादव के खासमखास बने। एक जमाना ऐसा भी आया कि इन्हीं डीपी यादव को 2012 में टिकट न देकर अखिलेश यादव ने अपनी साफ छवि वाली इमेज बना ली। यही इमेज लेकर अखिलेश यादव अभी तक चल रहे हैं।
80 और 90 के दशक में गुर्जर बिरादरी के दो नेता उभरे
चिटहेरा गांव के बुजुर्ग बाबूराम भाटी बताते हैं कि अस्सी-नब्बे के दशक में गुर्जर बिरादरी की राजनीति में दो नेता उभर रहे थे। एक थे राजेश पायलट और दूसरे महेंद्र सिंह भाटी। राजेश पायलट केंद्र की राजनीति में राजीव गांधी के नजदीकी लोगों में शुमार होते थे। देश में उनको बड़े गुर्जर नेता के रूप में जाना जाने लगा था। दादरी के वैदपुरा गांव के मूल निवासी होने के बावजूद उन्होंने राजस्थान को अपनी कर्मभूमि बनाया था। दूसरी ओर यूपी के राजनीति में बड़ा अक्स लेकर महेंद्र सिंह भाटी क्षेत्रीय नेता के रूप में उभरे। इतना ही नहीं चौपालों पर लोग महेंद्र सिंह भाटी को राजेश पायलट से बड़ा गुर्जर नेता मानते और बोलते थे। लोग क्लेम करते थे कि राजेश पायलट भी इस बात को मानते थे कि गुर्जरों में महेंद्र सिंह भाटी ज्यादा लोकप्रिय थे। राजेश पायलट ने महेंद्र सिंह भाटी को कांग्रेस में आने का न्यौता भी दिया था लेकिन महेंद्र सिंह भाटी जनता दल के विश्वनाथ प्रताप सिंह, शरद यादव, अजित सिंह और रामविलास पासवान के बहुत करीबी थे, इसलिए उन्होंने ये न्यौता स्वीकार नहीं किया था।
किसानों में महेंद्र भाटी बड़े लोकप्रिय नेता थे
वो तीन बार दादरी विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे थे। नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के खिलाफ उन्होंने जमीन अधिग्रहण के विरोध में बहुत सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस क्षेत्र में स्थापित हुई फैक्ट्रियों में गांवों के हजारों बेरोजगार लोगों को उन्होंने नौकरी दिलवाई थी। उनका रसूख इतना बड़ा था कि वह नये-नये लोगों को अपने साथ ले आते थे। उसी दौरान डीपी यादव शराब के व्यापार से जुड़े थे। डीपी यादव राजनीति में आने की कोशिश कर रहे थे। 90 के दशक में जहरीली शराब से लगभग 350 लोगों की मौत हो गई थी। इसमें डीपी यादव भी फंसे गए थे। इस सारे कारोबार को राजनीति के आवरण से ढंकना जरूरी हो गया था।
महेंद्र सिंह भाटी और डीपी यादव की दोस्ती वेस्ट यूपी में बड़ी ताकत बन गई
महेंद्र सिंह भाटी से डीपी यादव की दोस्ती हो गई थी। डीपी यादव, महेंद्र सिंह भाटी को अपना राजनीतिक गुरु मानने लगे थे। दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब थे। भाटी ने 1988 में डीपी यादव को सबसे पहले बिसरख ब्लॉक का प्रमुख बनवाया था। 1989 में महेंद्र सिंह भाटी ने अपने करीबी नरेंद्र भाटी को सिकंदराबाद से और डीपी यादव को बुलंदशहर विधानसभा क्षेत्रों से जनता दल का टिकट दिलवाया था। महेंद्र सिंह भाटी खुद दादरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे। जनता दल की लहर थी और तीनों जीत भी गए थे। लेकिन यहीं से महेंद्र सिंह भाटी का दुर्भाग्य शुरू हुआ। देश में राजनीतिक हवा बदल रही थी। इसका प्रभाव इनकी यारी पर भी पड़ा।
वहीं, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और अजित सिंह में लाइन खिंच चुकी थी और यहीं पर डीपी यादव और महेंद्र सिंह भाटी के भी रास्ते अलग हो गए थे। डीपी यादव, मुलायम सिंह यादव के साथ चले गए। लेकिन, पुरानी दोस्ती को निभाते हुए महेंद्र सिंह भाटी, अजित सिंह के साथ चले गए थे। महेंद्र सिंह भाटी पुराने चौधरी चरण सिंह के फॉलोवर थे। इसी दौरान गाजियाबाद के लोनी क्षेत्र में महेंद्र फौजी और सतवीर गुर्जर के बीच गैंगवार चल रही थी। डीपी यादव ने महेंद्र फौजी से करीबी रिश्ते बना लिए। वहीं सतवीर फौजी ने महेंद्र सिंह भाटी की शरण ले ली। दूसरी ओर डीपी यादव का रसूख बढ़ता गया। वह मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल में मंत्री भी बन गए थे। लिहाजा, यूपी की राजनीति में महेंद्र सिंह भाटी कमजोर पड़ गए। लेकिन दादरी में तो महेंद्र सिंह भाटी की ही चलती थी। दूसरी ओर डीपी यादव पूरे वेस्ट यूपी में अपना राजनीतिक रसूख कायम करना चाहते थे।
यहां से महेंद्र सिंह भाटी-डीपी यादव में ठनी
कठैड़ा गांव के पूर्व प्रधान श्यामवीर सिंह बताते हैं कि 1991 के विधानसभा चुनाव में महेंद्र सिंह भाटी ने बुलंदशहर से डीपी यादव के सामने पतवाड़ी गांव के प्रकाश पहलवान को जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़वा दिया। चुनाव बहुत घमासान से भरा हुआ था। चुनाव में जमकर गोलीबारी हुई थी। बूथ कैप्चर से लेकर मारपीट की वारदात हुईं। दोनों तरफ से छह-सात लोग मारे भी गए थे। लेकिन डीपी यादव चुनाव हारते-हारते बच गए थे। यहीं से दुश्मनी और बढ़ गई। कहते हैं कि इसके बाद डीपी यादव ने तय कर लिया कि अपने राजनैतिक गुरु को पॉलिटिक्स से हटाये बगैर काम नहीं चलेगा। महेंद्र सिंह भाटी को तब बड़ा झटका लगा जब अप्रैल, 1991 में महेंद्र सिंह भाटी के छोटे भाई राजवीर सिंह भाटी की दादरी रेलवे रोड पर हत्या कर दी गई। इसमें महेंद्र फौजी और डीपी यादव के साले परमानंद यादव का नाम सामने आया था। इनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था। इसके बाद दोनों गुटों में जमकर गैंगवार होने लगी। डीपी यादव के कई करीबी लोगों की हत्या की गई थीं। इसमें सतवीर गुर्जर का नाम आया था।
13 सितंबर, 1992 को दादरी विधानसभा क्षेत्र के विधायक महेंद्र सिंह भाटी कुछ लोगों के साथ अपने घर पर बैठे थे। शाम के करीब साढ़े छह बजे दादरी के इंस्पेक्टर का फोन आया। उन्हें भंगेल बुलाया। कोई गंभीर बात लग रही थी तो महेंद्र सिंह भाटी अपने गनर और ड्राइवर देवेंद्र के साथ कार से निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने अपने दोस्त उदय प्रकाश आर्य को भी साथ ले लिया। जबकि, महेंद्र सिंह भाटी के भाई अनिल भाटी अपने दोस्त धनवीर के साथ बाइक पर कार के पीछे चल रहे थे।
दादरी-सूरजपुर रोड पर दिल्ली-हावड़ा रेल लाइन का फाटक बंद था। महेंद्र सिंह भाटी की कार रुक गई। जब फाटक खुला तो सामने दो कारें खड़ी थीं। कारों के दरवाजे खोले हुए थे। शायद महेंद्र सिंह भाटी को अनुमान हो गया कि कुछ होने वाला है लेकिन उन्हें संभलने का मौका नहीं मिला। अंधाधुंध फायरिंग की गई। विधायक महेंद्र सिंह भाटी और उदय प्रकाश आर्य की मौके पर ही मौत हो गई। गनर गोली लगने से घायल हो गया था, जबकि चालक देवेंद्र बचकर भाग निकला था।
महेंद्र सिंह भाटी ने विधानसभा में कहा था कि उनकी जान को खतरा है
सादुल्लापुर के पूर्व ग्राम प्रधान रणवीर सिंह ने बताया, महेंद्र सिंह भाटी को उनके खिलाफ चल रही साजिश का पता चल गया था। उन्होंने जून 1992 में विधानसभा सत्र के दौरान एक लिखित सवाल करते हुए कहा था कि राजनीतिक कारणों से उनकी हत्या हो सकती है। पुलिस और प्रशासन उन्हें सुरक्षा नहीं दे रहे हैं। सुरक्षा नहीं मिली तो अगले सत्र में मेरी शोकसभा होगी। इसके बाद भी तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं कराई थी। तीन माह बाद उनकी हत्या हो गई थी। आखिरकार उनकी बात सच साबित हुई।