राज्य कृषि विभाग ने जारी की एडवाइजरी, धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए शुरू किया अभियान

खेती-बाड़ी राज्य कृषि विभाग ने जारी की एडवाइजरी, धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए शुरू किया अभियान

राज्य कृषि विभाग ने जारी की एडवाइजरी, धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए शुरू किया अभियान

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Gautam Buddh Nagar : धान की फसल में बीमारियों को लेकर राज्य कृषि विभाग पूरी तरह सतर्क है। जिला और ब्लॉक स्तर पर किसानों को जागरूक कर फसलों को बचाने का अभियान चलाया जा रहा है। जिला कृषि रक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार यादव ने बताया कि धान प्रदेश की खाद्यान्न फसल है। वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न जनपदों में वर्षा एवं तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण धान में लगने वाले सामयिक कीट-रोग के प्रकोप की संभावना ज्यादा है। इसको ध्यान में रखते हुये बचाव एंव प्रबधंन के लिए कृषकों जागरुक किया जा रहा है। इसी क्रम में कृषि विभाग ने एडवाइजरी जारी की है, ताकि कृषकों में जागरूकता बढ़ सके। साथ ही धान की फसल को बचाया जा सके। एडवाइजरी में बीमारियां और उनसे बचाव के उपाय बताए गए हैं। 

1 - मिथ्या कण्डुवआ (False Smut)
यह फफॅूद जनित रोग है। इस रोग के प्रकोप के पश्चात धान की बाली के दाने पीले और काले रंग के आवरण से ढंक जाते हैं। जिनको हाथ से छूने पर हाथ में पीले, काले अथवा हरे रंग के पाउडर जैसे रोग के स्पोर लग जाते हैं।

बचाव का उपाय-
इस बीमारी से बचाव के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 15-20 दिन के अन्तराल पर सुरक्षात्मक छिड़काव करना चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर कॉपर हाइड्रॉक्साइड 77 प्रतिशत डब्ल्यूपी 1500 ग्राम मात्रा अथवा पिकोसीस्ट्रोबिन 7.05 प्रतिशत प्रोपिकोनाजोल 11.7 प्रतिशत एससी की 1000 ग्राम 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

2 - झोका रोग
इस रोग में पत्तियों पर ऑख की आकृति के धब्बे बनते हैं। ये मध्य में राख के रंग के तथा किनारे पर गहरे कत्थे रंग के होते हैं। पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डंठलों, पुष्प शाखाओं एवं गाठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं।

उपाय-
नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का उचित प्रयोग करना चाहिए। इस रोग के नियंत्रण के लिए इडीफेनफॅाश 50 प्रतिशत ई़सी 500 से 600 मिली मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 750 से 1000 लीटर पानी में अथवा मैकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी 1500 से 2000 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

3- भूरा फुदका
यह भूरे रंग का कीट है, जो धान के पौधे के तने से रस चूसता है। इसके फलस्वरुप पौधा भूरा होने लगता है और अन्ततः सूख जाता है।

उपाय-
यथासंभव जल निकास को अपनाना चाहिए। इस कीट के प्राकृतिक शत्रु जैसे मकडी, लाइकोसा स्यूडोएनुनेटा एवं अर्गीओ स्पेसीज को संरक्षण देना चाहिए। इस कीट के नियंत्रण के लिए एजाडिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत डब्ल्यूएसपी 2000 मिली प्रति हेक्टेर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। जब इस कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (5 से 10 कीट प्रति हिल) पर हो तो थायोमेथाक्सॉन 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लीटर में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

4-गधी बग
इस कीट के शिशु एवं प्रौढ लम्बी टांगों वाले भूरे रंग के विशेष गंध वाले होते हैं। ये बालियों की दुग्ध अवस्था में बन रहे दूध को चूसकर क्षति पहुचाते हैं।

उपाय - 
एजाडिरेक्टिन 0.15 ईसी की 2500 मिली मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500-1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना लाभप्रद होता है। इस कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5 अथवा फेनवैनरेंट 0.04 धूल 20,000 से 25,000 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए।

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