गीता पंडित के लिए आसान नहीं दादरी की तीसरी जंग, ये हैं पांच चुनौतियां

गौतमबुद्ध नगर निकाय चुनाव : गीता पंडित के लिए आसान नहीं दादरी की तीसरी जंग, ये हैं पांच चुनौतियां

गीता पंडित के लिए आसान नहीं दादरी की तीसरी जंग, ये हैं पांच चुनौतियां

Tricity Today | गीता पंडित

Greater Noida News : गौतमबुद्ध नगर की एकमात्र दादरी नगर पालिका से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने फिर मौजूदा चेयरपर्सन गीता पंडित को मैदान में उतार दिया है। रविवार को भाजपा ने उनके नाम की घोषणा की और सोमवार को उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया। एमएलसी श्रीचंद शर्मा और दादरी के विधायक तेजपाल सिंह नागर ने नामांकन करवाया। बाद में सांसद डॉक्टर महेश शर्मा भी पहुंच गए। कुल मिलाकर नेता तो गीता पंडित के साथ नजर आ रहे हैं, लेकिन भाजपा का सामान्य कार्यकर्ता और वोट बैंक उनसे नाराज है। गीता के लिए यह दादरी की तीसरी जंग है और उनके सामने पांच बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं।

1. वैश्य समाज मौका मिलने से नाखुश
गीता पंडित को तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी ने दादरी नगर पालिका से अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया है। वह पिछले 10 वर्षों से नगर पालिका अध्यक्ष हैं। इस बार वैश्य समाज से किसी को उम्मीदवार बनाने की सुगबुगाहट भाजपा में चली। जिसमें जगभूषण गर्ग का नाम सबसे आगे रहा। अब जब घोषणा हुई तो भाजपा हाईकमान ने गीता पंडित के नाम पर ही मोहर लगाई। लिहाजा, जगभूषण बागी हो गए हैं। उन्होंने भी सोमवार को नामांकन दाखिल किया है। नामांकन दाखिल करने से पहले रविवार की रात जगभूषण गर्ग ने दादरी में पंचायत की। जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और उन्हें चुनाव लड़ने का निर्देश दिया।

2. ब्राह्मण समाज गीता के परिवार से नाराज
अगर मौजूदा हालात की बात करें तो वैश्य और पंजाबी समाज पूरी तरह जगभूषण गर्ग के पीछे खड़ा नजर आ रहा है। दूसरी ओर ब्राह्मण समाज में बिखराव है। बड़ी संख्या में दादरी के ब्राह्मण मतदाता गीता पंडित से नाराज बताए जा रहे हैं। गीता पंडित के पड़ोस में ही रहने वाले एक ब्राह्मण युवक ने कहा, "जब 10 साल पहले हम लोगों ने गीता पंडित को बतौर अध्यक्ष चुना था तो उनसे बड़ी उम्मीदें थीं। गीता पंडित पिछले 10 वर्षों के दौरान अपने परिवार के हाथों की कठपुतली बन कर रह गईं। उनके परिवार के लोग भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं। पड़ोसियों और शहर के लोगों के साथ मारपीट करने की घटनाओं को अंजाम दिया। गोलियां चलाने और सुरक्षाकर्मियों का दुरूपयोग किया है। पिछले दिनों गीता पंडित के देवर ने कस्बे में एक जमीन पर कब्जा करने का प्रयास किया। उस दौरान बवाल हुआ। उस विवाद का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इस बार गीता के लिए चुनाव आसान नहीं रहने वाला है। आप सोमवार को अगर अग्रवाल धर्मशाला में जगभूषण गर्ग की जनसभा में होते तो पूरा सीन समझ जाते। गीता के घोर समर्थक रहे लोग बड़ी संख्या में वहां आए थे और जगभूषण गर्ग का पर्चा दाखिल करवाने गए।"

3. गुर्जर वोटरों के समर्थन पर संशय
तीसरी समस्या गुर्जर मतदाताओं को लेकर है। समाजवादी पार्टी ने दादरी नगर पालिका से अल्पसंख्यक समाज के अयूब मलिक को प्रत्याशी घोषित किया है। उनके साथ समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी खड़े हुए हैं। दादरी कस्बे में गुर्जर मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। ऐसे में गीता पंडित के सामने गुर्जर वोटरों को अपने पाले में खींचना आसान बात नहीं रहेगी। पहले डॉ.महेश शर्मा के चुनाव और फिर गीता पंडित के पति विजय पंडित की हत्या के चलते दादरी में ब्राह्मण और गुर्जर समाज के बीच रिश्ते तल्ख हैं। हालांकि, स्थानीय विधायक तेजपाल नागर की गीता के साथ मौजूदगी फायदा पहुंचा सकती है। दादरी से चुनाव लड़ चुके एक पूर्व प्रत्याशी ने कहा, "अयूब मालिक के साथ राजकुमार भाटी की मौजूदगी ज्यादा प्रभावशाली है। राजकुमार भाटी जमीनी नेता हैं। अपनी बिरादरी में उनकी पहचान जुझारू नेता के रूप में है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजकुमार भाटी ने तेजपाल नागर के मुकाबले गुर्जर समाज के ज्यादा वोट हासिल किए। तेजपाल नागर की जीत के पीछे भाजपा का वोट बैंक है। जिसमें ब्राह्मण, वैश्य और बाहरी शहरी वोटरों का दबदबा है। दादरी नगर पालिका में ऐसा नहीं है। तेजपाल नागर को डॉ.महेश शर्मा का फॉलोवर माना जाता है। गुर्जर नेताओं के भाजपा में आने का मतलब यह नहीं है कि वोटर भी आ गए हैं।"

4. मुस्लिम मतदाताओं में मजबूत एकता
दादरी नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए नामांकन के बाद तस्वीर लगभग साफ हो गई है। वैश्य समाज से जगभूषण गर्ग निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गुर्जर समाज पर दांव लगाया है। ऐसे में अल्पसंख्यक वर्ग से एकमात्र उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के अयूब मलिक हैं। उनके पक्ष में अल्पसंख्यक वोटरों की लामबंदी मजबूत है। बसपा उम्मीदवार  दूसरी ओर गीता पंडित के पक्ष में गुर्जर और वैश्य मतदाताओं को लाने के लिए भाजपा नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। नई आबादी के रहने वाले सब्जी व्यापारी ने कहा, "अयूब मलिक लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। वह साल 2012 और 2017 में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार थे। दोनों बार कम अंतर से हारे थे। पिछले चुनावों में मुसलमान सपा और बसपा के बीच बंट जाया करते थे। इस बार अयूब मलिक ने सही फैसला लिया है। वह समाजवादी पार्टी में आ गए हैं। अल्पसंख्यक वोटर उन्हें एकतरफा समर्थन करेगा। बसपा कमजोर है। दलित वोटर हमारे साथ आएगा। गुर्जर समाज में राजकुमार भाटी का कद बहुत बड़ा है। वह अयूब मालिक को अपने वोट दिलवाने में बड़ा रोल प्ले करेंगे।"

5. गीता पंडित का घटता जनाधार
पिछले यानी साल 2017 के नगर निकाय चुनावों में गीता पंडित ने महज 2,181 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। गीता पंडित के सामने अयूब मलिक ने चुनाव लड़ा था। अयूब को 16,637 मत मिले थे, जबकि गीता पंडित को 18,818 वोट मिले थे। उस चुनाव में गीता की हालत खस्ता थी। अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि खुद सांसद महेश शर्मा को दादरी की गलियों में ख़ाक छाननी पड़ गई थी। भाजपा में सत्ता में आ चुकी थी। सिस्टम का इस्तेमाल करने का आरोप भी लगा था। इस सबके बावजूद गीता को मामूली अंतर से जीत मिली थी। गीता पंडित ने दादरी नगर पालिका के लिए पहला चुनाव वर्ष 2012 में लड़ा था। उस चुनाव में भी गीता पंडित ने अयूब मालिक को ही पराजित किया था। तब गीता ने 1,062 वोटों से चुनाव जीता था। गीता को 8,817 और अयूब मलिक को 7,755 वोट मिले थे। दादरी के निवासी वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, "गीता पंडित का जनाधार गिरा है। दादरी नगर पालिका क्षेत्र में 2012 के चुनाव में आज के मुकाबले आधे वोटर थे। वोटर बढ़ने के अनुपात को आधार मानें तो 2017 के चुनाव में गीता का विनिंग मार्जिन बढ़ना चाहिए था। गीता के नगर पालिका अध्यक्ष रहते 7 जून 2014 को उनके पति विजय पंडित की हत्या हुई थी। अगले चुनाव में इसका असर देखने को मिला। गीता ने तब मौजूदा भाजपा एमएलसी नरेंद्र भाटी पर गंभीर आरोप लगाए थे। तब नरेंद्र भाटी समाजवादी पार्टी में थे। अब गीता पंडित और नरेंद्र भाटी मंच साझा कर रहे हैं। इससे दादरी के वोटरों में गीता पंडित के प्रति गलत संदेश गया है। लोग उन्हें सत्तालोलुप मानने लगे हैं। कहते हैं कि गीता ने कुर्सी के लिए सब भुला दिया तो हम क्यों आपसी भाईचारा खराब करें।" वह आगे कहते हैं, "यह बिलकुल मायावती और अखिलेश यादव के गठबंधन वाली स्थिति है। मायावती ने सत्ता के लिए गेस्ट हाउस कांड को भुला दिया था। लिहाजा, गठबंधन बेअसर रहा। अब दादरी के लोग यही देखना चाहते हैं, क्या नरेंद्र भाटी भी गीता पंडित के लिए वोट मांगेंगे। पहले चुनाव में एक जाति विशेष का आतंक और दूसरे चुनाव में पति की हत्या ने लाभ पहुंचाया। यह तीसरी जंग ना केवल गीता बल्कि उनके संरक्षकों के लिए भी आसान नहीं होगी।"

Copyright © 2023 - 2024 Tricity. All Rights Reserved.