आखिर एनटीपीसी पॉवर प्लांट के खिलाफ 35 साल बाद क्यों लड़ रहे हैं हजारों किसान, क्या हैं इनकी मांगें

खास खबर : आखिर एनटीपीसी पॉवर प्लांट के खिलाफ 35 साल बाद क्यों लड़ रहे हैं हजारों किसान, क्या हैं इनकी मांगें

आखिर एनटीपीसी पॉवर प्लांट के खिलाफ 35 साल बाद क्यों लड़ रहे हैं हजारों किसान, क्या हैं इनकी मांगें

Google Image | एनटीपीसी पॉवर प्लांट

Greater Noida : ग्रेटर नोएडा में दादरी इलाके के किसान नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। आज पुलिस और किसानों के बीच तीखी झड़प हुई हैं। जिसमें कई किसान घायल हैं। किसान नेता और उनके 13 समर्थकों को गिरफ्तार किया गया है। सवाल यह उठता है कि यह संयंत्र 1991 में शुरू हुआ। करीब 35 वर्ष पहले 1987 और 1988 में इसके लिए भूमि अधिग्रहण किया गया। अब आखिर किसान क्यों लड़ रहे हैं। इनकी कौन सी मांगें अब तक अधूरी पड़ी हुई हैं।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (Delhi-NCR) में बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए  ने ग्रेटर में दादरी के पास बिजली उत्पादन संयंत्र लगाया था। यह प्लांट वर्ष 1991 में शुरू हुआ। यह कोयले से चलने वाली बिजली परियोजना है। इसमें कोयले के अलावा गैस से चलने वाला प्लांट भी है। इसके कर्मचारियों के लिए एक टाउनशिप भी यहीं बसाई गई है। इस टाउनशिप का कुल क्षेत्रफल लगभग 500 एकड़ है। पूरी परियोजना के लिए दादरी क्षेत्र के 23 गांवों की करीब 2000 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण 1980 के दशक में किया गया था।

दादरी के इन गांवों से किया गया भूमि अधिग्रहण
यह उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में गाजियाबाद से लगभग 25 किलोमीटर और दादरी से लगभग 9 किलोमीटर दूर है। एनटीपीसी दादरी राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) की एक शाखा है। इस प्लांट के लिए श्यौराजपुर, कैलाशपुर, बढ़पुरा, रूपवास, सलारपुर, रसूलपुर, पटाड़ी, ऊंचा अमीरपुर, ततारपुर, धूम मानिकपुर, बिसाहड़ा, नरौली, सीदीपुर, छिडौली, दादूपुर, आकलपुर, बम्बावड़, चौता नंगला, जैतपुर, प्यावली और जारचा गांवों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया है। 

अपने आप में अनोखा है यह पॉवर प्लांट
दादरी का यह संयंत्र एनटीपीसी समूह का एक अनूठा बिजली संयंत्र है। जिसमें कोयला आधारित थर्मल प्लांट और गैस आधारित थर्मल प्लांट हैं। कोयले से 1,820 मेगावाट और गैस से 829.78 मेगावाट बिजली बनती है। यह कुल मिलाकर 2,654.78 मेगावाट का प्लांट है। इस संयंत्र में 5 मेगावाट का सौर ऊर्जा का प्लांट भी है। इस बिजली संयंत्र के लिए गैस अथॉरिटी इण्डिया लिमिटेड (गेल) एचबीजे पाइपलाइन से आती है। यह संयंत्र वैकल्पिक ईंधन के रूप में एचएसडी से भी चल सकता है। बिजली संयंत्र के लिए पानी का स्रोत ऊपरी गंगा नहर है।

मांगों को सुना नहीं गया, बस आगे लटकाया है
इस बार एनटीपीसी के खिलाफ आंदोलन की कमान संभाल रहे भारतीय किसान परिषद के नेता सुखबीर खलीफा कहते हैं, "एनटीपीसी का यह थर्मल पावर प्लांट देशभर में बड़ी अहमियत रखता है। दिल्ली-एनसीआर समेत कई राज्यों की बिजली खपत पूरी करता है। इलाके में 23 गांवों के करीब 4,000 से ज्यादा किसानों की जमीन का अधिग्रहण आज से 35 वर्ष पहले किया गया था। तब हमारी उम्र भी छोटी सी थी। तभी से किसान मुआवजा, नौकरी, गांव में विकास और कई दूसरी मांगों को लेकर अपना विरोध जाहिर कर रहे हैं। आज तक किसानों की मांगों पर गंभीरता से किसी सरकार, अफसर या नेता ने काम नहीं किया। केवल इन मुद्दों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया है। इनकी मांगों को कभी विपक्ष में रहने का बहाना बनाकर तो कभी सत्ता के बूते आगे लटकाया गया है। यही वजह है कि पिछले 35 वर्षों में मांग करने वाले बुजुर्ग तो मरते गए, लेकिन उनकी यह मांगे आज भी जिंदा हैं।"

चुनाव मुद्दे ज़िंदा रखते हैं लेकिन पूरे नहीं करते
इलाके के ऊंचे अमीरपुर गांव से भी एनटीपीसी पावर प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया है। गांव के पूर्व प्रधान सुरेश यादव इस आंदोलन में भूमिका निभा रहे हैं। उनका कहना है, "चुनावों ने हमारी मांगों को जिंदा तो रखा है लेकिन राजनीतिक हथकंडों के चलते कभी उन्हें पूरा नहीं किया गया है। हमारी जमीन पर लगाए गए पावर प्लांट से कई राज्यों में रोशनी हो रही है। हमारे यहां अब तक अंधेरा ही रहा।" वह आगे कहते हैं, "आप अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 1991 में यह पावर प्लांट बिजली बनाने लगा था। जिससे दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा जैसे राज्य रोशन हो रहे थे। हमारे गांव में 10 साल पहले बिजली मिलनी शुरू हुई है। जबकि पावर प्लांट बनाते वक्त वादा किया गया था कि इससे बनने वाली बिजली पर पहला हक हमारे इलाके का होगा। इस मांग को लेकर ना जाने कितनी बार केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों से बात की गई। केवल झूठे आश्वासन दिए गए हैं।"

सबसे ज्यादा सालती है स्थानीय लोगों की उपेक्षा 
एक अन्य बुजुर्ग किसान रामकिशन सिंह बोले, "एनटीपीसी ददरी टाउनशिप में देशभर के लोग बाहर से आकर नौकरी कर रहे हैं। हमारे इलाके में बेरोजगार युवकों की भारी भीड़ है। उन्हें एनटीपीसी पावर प्लांट में नौकरियां नहीं दी जाती हैं। जब किसानों से जमीन का अधिग्रहण किया गया तो हर गांव के लिए मुआवजे की दर अलग-अलग तय की। सरकार ने सबकी जमीन एक ही काम के लिए खरीदी है, लेकिन मुआवजा अलग-अलग दिया है। इस विसंगति को दूर करने के लिए उसी वक्त से मांग उठ रही है। नेताओं और चुनावों ने इस मुद्दे को मरने नहीं दिया है। अगर किसानों ने भूलने की कोशिश की तो भी चुनाव के दौरान उम्मीदवारों ने पुरानी मांगों और वादों को फिर याद दिला दिया। समस्या यह है कि चुनावी वादे किसानों को छलते रहे हैं। सही मायने में हमारी मांगों को पूरा करने के लिए कभी किसी ने गंभीर प्रयास नहीं किया है। इस बार यह आंदोलन परिणाम हासिल करके समाप्त किया जाएगा।"

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