Greater Noida News : चिटहेरा गांव में कुख्यात गैंगस्टर भू-माफ़िया यशपाल तोमर और उसके गुर्गों ने किसानों पर कहर ढहाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। आज हम आपके सामने एक ऐसा मामला रखने जा रहे हैं, जो किसानों की बेबसी, प्रशासन की उदासीनता और यशपाल तोमर गैंग की मनमानी को बख़ूबी बयां करता है। गांव के किसान हरिचंद से यशपाल तोमर गैंग ने पैतृक जमीन कौड़ियों में हड़प ली। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि किसान की इस जमीन की बाजारू कीमत 62,20,000 रुपये थी। जिसके लिए किसान को केवल ढाई लाख रुपये दिए गए। किसान से ज्यादा पैसा तो रजिस्ट्री के लिए बतौर स्टांप शुल्क सरकार को मिल गया है। यह रजिस्ट्री करवाने के लिए तीन लाख रुपये का स्टांप शुल्क यशपाल तोमर गैंग ने चुकाया है।
62 लाख की जमीन ढाई लाख रुपये में ऐसे हड़पी गई
हरिचंद पुत्र कुंदन चिटहेरा गांव के किसान हैं। उनकी उम्र करीब 80 वर्ष है। हरिचंद बताते हैं, "यशपाल तोमर और उसके गुर्गों का हमारे गांव में आतंक था। यशपाल तोमर और उसका ममेरा भाई गजेंद्र गांव में किसानों को परेशान करके मनमानी कर रहे थे। दादरी तहसील के तमाम अफसर और रजिस्ट्रार दफ़्तर उनके साथ मिले हुए थे। हम लोगों की शिकायतों पर कोई सुनवाई करने वाला नहीं था। यशपाल तोमर और उसका भाई मुझे जबरन उठाकर ले गए। धमकी दी कि अगर मैंने उनकी बात नहीं सुनी तो मेरे परिवार के सदस्यों को भी फर्ज़ी मुकदमे में फंसाकर जेल भेज देंगे।" हरिचंद आगे कहते हैं, "मेरी पैतृक जमीन की रजिस्ट्री गाजियाबाद में लोहिया नगर के रहने वाले विकास शर्मा पुत्र ओम प्रकाश शर्मा के नाम करवा दी। उस वक़्त जमीन की बाजार क़ीमत केवल ढाई लाख रुपये तय कर दी गई। जबकि, सर्किल रेट पर ही उस वक्त मेरी जमीन की कीमत 62,20,000 रुपये थी। मुझे केवल ढाई लाख रुपये दिए गए थे। मेरी जमीन की रजिस्ट्री में सरकार को ही 2,89,300 रुपये का राजस्व मिल गया। मतलब, मुझसे ज़्यादा तो सरकार को फायदा हुआ।"
फिर गैरकानूनी ढंग से हड़पी पट्टे की जमीन
हरिचंद कहते हैं, "इसके बाद यशपाल तोमर और उसके गैंग ने मेरे नाम पर दर्ज एक पट्टे की जमीन पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए अपने गुर्गे मालू के नाम करवा ली। मालू ने पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से उस जमीन का बैनामा किसी और के नाम कर दिया। जिस वक़्त मेरे पट्टे की जीपीए और फिर बैनामा किया गया, उससे पहले जिला प्रशासन ने पट्टा कैंसिल कर दिया था। पट्टे की जमीन असंक्रमणीय थी। मैं उस जमीन की रजिस्ट्री नहीं कर सकता था। इसलिए जीपीए करवाई गई। जमीन की यह दोनों खरीद-फरोख़्त पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी हैं।" हरचंद का आगे कहना है, "मैंने इस बारे में दादरी के तत्कालीन रजिस्ट्रार पीके अस्थाना से शिकायत की थी। उन्होंने मुझे अपने दफ़्तर से धमका कर भगा दिया था और कहा कि अगर जेल जाना चाहते हो तो आगे की बात करना, नहीं तो जहां दस्तख़त करने के लिए बोल रहे हैं, वहां अंगूठा लगाकर दस्तख़त कर दो। यशपाल तोमर और उसके गैंग ने हमारे गांव के 10 से ज़्यादा किसानों को जेल भिजवाया था। जिसके चलते उनकी दहशत थी।"
'कोई पुलिस वाला आज तक मेरे पास नहीं आया'
हरिचंद ने आगे बताया, "अब करीब एक साल से इस मामले में जांच चल रही है। मैं लगातार इस बारे में खबरें पढ़ रहा हूं। मुझे लग रहा था कि पुलिस वाले मेरे पास आएंगे और जानकारी लेंगे, लेकिन किसी ने आज तक कोई जानकारी नहीं मांगी है। मैंने इस मामले के जांच अधिकारी से सम्पर्क किया, लेकिन उन्होंने भी कोई तवज्जो नहीं दी। उन्होंने कहा कि मैं आपकी गवाही दर्ज कर लूंगा। अब मुझे पता चला है कि यशपाल तोमर और उसके गुर्गों के ख़िलाफ अदालत में दाखिल की गई चार्जशीट में मेरी गवाही को शामिल नहीं किया गया है। मेरे साथ हुई ज्यादती के बारे में भी चार्जशीट में कोई ज़िक्र नहीं है।"
सही हैं किसान हरिचंद के सारे आरोप
ट्राईसिटी टुडे ने हरचंद के आरोपों पर जांच पड़ताल की है। जिससे पता चलता है कि हरचंद की पैतृक संपत्ति का बैनामा विकास शर्मा के नाम 3 फ़रवरी 2020 को करवाया गया है। दादरी रजिस्ट्रार कार्यालय की बही नंबर एक में रजिस्ट्रेशन नंबर 2,566 है। इस बैनामे पर गजेंद्र पुत्र इंदरपाल और मालू पुत्र वीरेंद्र ने बतौर गवाह दस्तखत किए हैं। इन दोनों लोगों के फ़ोटो रजिस्ट्री पर उपलब्ध हैं। आपको बता दें कि गजेंद्र को हरिद्वार पुलिस ने यशपाल तोमर के साथ गिरफ़्तार करके जेल भेजा है। वहीं, मालू चिटहेरा भूमि घोटाले में बड़ा किरदार है। वह यशपाल तोमर का मुखौटा है। उसके ख़िलाफ गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है और गैंगस्टर एक्ट के तहत निरुद्ध किया है। मालू फिलहाल गौतमबुद्ध नगर जिला जेल में बंद है। लिहाजा, यह बात साफ है कि यशपाल और उसके गैंग ने किसान हरिचंद की ज़मीन ग़ैर क़ानूनी ढंग से हड़पी है। इस प्रकरण में सबसे ज़्यादा हास्यास्पद स्थिति यही है कि 62 लाख रुपये से ज़्यादा क़ीमत वाली ज़मीन केवल ढाई लाख रुपये में यशपाल तोमर और उसके गुर्गों ने ख़रीद ली। जबकि, सरकार को भी इस ज़मीन की ख़रीद फ़रोख़्त पर क़रीब 3 लाख रुपये राजस्व मिल गया। मतलब, किसान को अपनी ज़मीन की क़ीमत सरकार के टैक्स से भी कम मिली है।
गौतमबुद्ध नगर पुलिस मौन क्यों?
दूसरी ओर गौतमबुद्ध नगर पुलिस भूमि घोटाले की ओर से आंखें बंद करके बैठी हुई है। इस मामले में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन किया गया था। बाद में केवल क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर गिरीश प्रसाद और सहायक पुलिस आयुक्त के पास रह यह जांच रह गयी। इन दोनों ने बेहद उदासीन रवैये के साथ चिटहेरा भूमि घोटाले में जांच की है। अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यशपाल तोमर एंड गैंग ने किसान हरिचंद को अपना शिकार बनाया, लेकिन क्राइम ब्रांच करीब एक साल बाद भी उन तक नहीं पहुंच पाई है। 'ट्राईसिटी टुडे' लगातार चिटहेरा भूमि घोटाले को लेकर इस तरह के अनछुए पहलुओं को उजागर कर रहा है। इसके बावजूद गौतमबुद्ध नगर पुलिस अरबों रुपये के इस घोटाले में जांच को आगे बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। इतना ही नहीं उत्तराखंड के 3 आईएएस और आईपीएस अफसरों के रिश्तेदारों पर चार्जशीट लगाई गई थी। बाद में सप्लीमेंट्री चार्जशीट के जरिए उन्हें क्लीन चिट दे दी गई है। पिछले करीब चार महीनों से इस घोटाले की जांच एक कदम आगे नहीं बढ़ पाई है। दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घोटाले के मुख्य अभियुक्त यशपाल तोमर की जमानत याचिका खारिज कर दी है। गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय को मामले का ट्रायल एक साल में पूरा करने का आदेश दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुलिस घोटाले की जांच ही पूरी नहीं कर रही है तो अगले एक साल में सुनवाई पूरी कैसे हो पाएगी? दूसरी ओर इस पूरे मामले को लेकर गौतमबुद्ध नगर पुलिस की क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर, एसीपी, डीसीपी और इंस्पेक्टर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं हैं।