बिल्डरों की लग्जरी कारें जब्त हों, कंपनियों के खाते और प्रॉपर्टी सीज करे सरकार, यूपी रेरा ने दिया कड़ा फार्मूला

सबसे बड़ी खबर : बिल्डरों की लग्जरी कारें जब्त हों, कंपनियों के खाते और प्रॉपर्टी सीज करे सरकार, यूपी रेरा ने दिया कड़ा फार्मूला

बिल्डरों की लग्जरी कारें जब्त हों, कंपनियों के खाते और प्रॉपर्टी सीज करे सरकार, यूपी रेरा ने दिया कड़ा फार्मूला

Tricity Today | यूपी रेरा ने दिया कड़ा फार्मूला

Greater Noida News : केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) की नरेंद्र मोदी सरकार को एक दशक पूरा होने वाला है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार को सातवां साल शुरू हो गया है। इसके बावजूद बिल्डरों से त्रस्त फ्लैट खरीदारों को राहत मिलती नहीं मिल रही है। लिहाजा, गौतमबुद्ध नगर में यह मुद्दा बड़ा रूप लेता जा रहा है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) से ठीक पहले केंद्र सरकार ने फ्लैट खरीदारों की परेशानी दूर करने के लिए सीनियर ब्यूरोक्रेट अमिताभ कांत की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। यह समिति सुझाव देगी। सरकार को बताएगी कि आखिर कैसे खरीदारों को राहत दी जा सकती है? इसी समस्या का समाधान तलाश करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी रेरा से सर्वे करवाया और सुझाव मांगे। यूपी रेरा की ओर से दो महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं।

पहला सुझाव : फ्लैट की रजिस्ट्री नहीं रोकी जाएं
यूपी रेरा ने राज्य सरकार को भेजी रिपोर्ट में पहला सुझाव दिया है कि प्राधिकरणों के बिल्डरों पर बकाया पैसे को आधार बनाकर खरीदारों की रजिस्ट्री नहीं रोकी जानी चाहिए। मतलब, अगर डिफॉल्टर बिल्डर विकास प्राधिकरणों का बकाया पैसा नहीं चुका रहे हैं तो कंप्लीशन सर्टिफिकेट और ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट जारी नहीं हो रहे हैं। जिसके चलते फ्लैट खरीदारों के नाम उनके घरों की रजिस्ट्री नहीं हो रही है। यूपी रेरा ने राज्य सरकार से कहा है कि बकाया अदायगी और रजिस्ट्री को अलग कर दिया जाए। बिल्डर भले ही प्राधिकरणों का पैसा नहीं चुकाए, खरीदारों के नाम उनके घरों की रजिस्ट्री करवा दी जाए।

दूसरा सुझाव : बिल्डरों पर कड़ी कार्रवाई करें
अब सवाल यह उठता है कि अगर फ्लैट खरीदारों के नाम उनके घरों की रजिस्ट्री कर दी जाएगी तो बिल्डर विकास प्राधिकरणों का बकाया कैसे चुकाएंगे? इस समस्या का समाधान भी यूपी रेरा ने राज्य सरकार को सुझाया है। रेरा ने डिफॉल्टर बिल्डरों के खिलाफ बेहद कड़े कदम उठाने का सुझाव दिया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिल्डरों के पास महंगी और लग्जरी कारों के बेड़े खड़े हुए हैं। इनमें करोड़ों रुपये कीमत वाली कारें शामिल हैं। बिल्डरों ने यह सब सुविधाएं फ्लैट खरीदारों से मिले पैसे से अर्जित की हैं। लिहाजा बिल्डरों की लग्जरी कारों को जब्त कर लिया जाए। बिल्डरों ने जिन कंपनियों के नाम पर हाउसिंग प्रोजेक्ट लॉन्च किए थे, वहां से पैसा निकाल कर दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर किया है। मौलिक कंपनियों को दिवालिया घोषित करवाने का जुगाड़ तलाश कर रहे हैं। ऐसे में बिल्डरों की दूसरी कंपनियों के बैंक खाते सीज कर दिए जाएं। उन तमाम कम्पनियों के नाम पर अर्जित की गई संपत्तियों को जब्त कर लिया जाए। राज्य सरकार आसानी से पता लगा सकती है कि हाउसिंग प्रोजेक्ट्स लॉन्च करने से पहले बिल्डरों के पास कितनी निजी संपत्ति थी और बाद में उनके पास कितनी संपत्ति बढ़ी है। हाउसिंग प्रोजेक्ट लॉन्च करने के बाद अर्जित की गई निजी संपत्तियों को जब्त कर लिया जाए। यूपी रेरा ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि कारों के बेड़े, नई कम्पनियों के बैंक खाते और बिल्डरों की निजी संपत्तियों को नीलाम करके विकास प्राधिकरणों का बकाया भुगतान किया जाए। इससे अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए जरूरी पैसे की व्यवस्था भी हो जाएगी।

तीसरा सुझाव : सारे प्रोजेक्ट्स के लिए समान नीति कारगर नहीं
यूपी-रेरा ने सुझाव दिया है कि सभी बिल्डरों के लिए एक समान नीति इस मुद्दे को हल नहीं कर सकती है। ऐसी नीति होनी चाहिए जो मामले को आधार बनाकर काम करे। हर परियोजना से जुड़ा संकट अलग है। यूपी रेरा के अध्यक्ष राजीव कुमार ने आगे कहा, "कुछ परियोजनाएं हैं, जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं। कोई भी नया डेवलपर इनके घरों को पूरा कर सकता है और खरीदारों को सौंप सकता है। लेकिन कुछ परियोजनाएं उस स्थिति में नहीं हैं। इसलिए हमने यह सुझाव भी दिया है कि अथॉरिटी को ऐसी परियोजनाएं अपने हाथ में लेकर पूरी करनी पड़ेंगी। अंतिम लक्ष्य यह है कि होम बायर्स को न्याय मिलना चाहिए।"

चौथा सुझाव : बिल्डरों को जायज राहत दे राज्य सरकार
यूपी-रेरा ने कई और सुझाव दिए हैं। इनमें कई सुझाव बिल्डरों के हक में हैं। मसलन, भूमि विवाद या अन्य कानूनी मुद्दों के कारण निर्माण बाधित होने की अवधि के लिए बिल्डरों को ब्याज पर छूट मिलनी चाहिए। जिन परियोजनाओं में तीसरे पक्ष का कोई हित नहीं है, उनका भूमि आवंटन रद्द करना चाहिए। आर्थिक रूप से व्यवहार्य परियोजनाओं को अथॉरिटी अपने हाथों में लें। नए डेवलपर्स को परियोजना को पूरा करने के लिए आमंत्रित करें। ऐसे प्रोजेक्ट फिर से नीलाम कर देने चाहिए।

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