Google Image | असलहों के काले कारोबार का गढ़ बन गया है मुंगेर
मुंबई पुलिस द्वारा 2007 में पकड़े वंशराज ने मुंगेर से अवैध हथियार खरीदकर दाउद एंड कंपनी को सप्लाई किया था
इसी साल जाली नोटों के रैकेट की पड़ताल करते हुए एनआइए मुंगेर पहुंची थी
2016 में ढाका की एक बेकरी में हुए आतंकी हमले में भी प्रयुक्त रायफल की खरीद मुंगेर से की गई थी
अगस्त, 2018 में मुंगेर के जमालपुर से तीन एके-47 की बरामदगी के बाद कार्रवाई के क्रम में पुलिस ने बीस से ज्यादा एके-47 रायफल की बरामदगी की थी
मुंगेर के बने कट्टे से लेकर एके 47 तक यूपी के गिरोहों के पास मौजूद हैं
अवैध हथियारों के लिए चर्चित बिहार का मुंगेर जिला यूपी ही नहीं, देश के कई राज्यों की पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया है। यूपी अंडरवर्ड का तो ये हाल है कि शायद ही ऐसा कोई गैंग हो जिसके पास मुंगेर के बने असलहे न हों। अभी हाल ही का ताजा उदाहरण चित्रकूट जेल का है। यहां कुख्यात अपराधी अंशू दीक्षित ने जिस पिस्टल से कारागार के भीतर वेस्ट यूपी के शातिर अपराधी मुकीम काला और मुख्तार अंसारी के करीबी मेराज को मौत के घाट उतारा, वह पिस्टल भी मुंगेर की बनी थी। इस पिस्टल को कारीगर ने इतनी सफाई से बनाया था कि प्रथम दृष्टया पुलिस अधिकारी भी चकमा खा गये। उन्हें पता नहीं चला कि ये विदेशी है या मुंगेर की बनी है। उस पर मेड इन इटली लिखा था।
कई दशकों से हो रही है तस्करी
यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह भी मानते हैं कि कई दशकों से मुंगेर के बने असलहों की यूपी में पैमाने पर तस्करी हो रही है। ये संगठित अपराध की श्रेणी में आता है। जब तक पुलिस इसकी तह तक नहीं पहुंचेगी, तब तक इस पर रोक लगाना मुश्किल है। सुलखान सिंह का कहना है कि पुलिस एक तस्कर को पकड़ने और उसके पास से असलहे बरामद करने के बाद वाहवाही लूटकर शांत बैठ जाती है। असलहा बरामद करने के बाद पुलिस को जांच करनी चाहिए कि ये असलहां कहां से लाया गया। ये मुंगेर में किस फैक्ट्री में बना और उसे तस्कर तक किसने पहुंचाया? पुलिस जब तक पूरी चेन को नहीं तोड़ेगी और अंतिम सिरे तक पहुंचकर कार्रवाई नहीं करेगी, तब तक इस पर रोक लगा पाना मुश्किल है।
यूपी-बिहार पुलिस के बीच तालमेल से बदलेंगे हालात
यूपी एसटीएफ में तैनात रहे एक अधिकारी का भी यही मानना है कि मुंगेर से यूपी में असलहों की तस्करी तभी रोकी जा सकती है, जब यूपी-बिहार पुलिस के बीच तालमेल बेहतर होगा। दोनों राज्यों की पुलिस के बीच समन्वय की कमी है। इसी कमी के चलते ये धंधा फल-फूल रहा है। यूपी में किसी तस्कर गिरफ्तारी के बाद उसकी पूछताछ रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए बिहार पुलिस को पत्र भेजा जाता है, लेकिन बिहार पुलिस उस पर आगे की कार्रवाई नहीं करती। इसके अलावा यूपी पुलिस भी गिरफ्तारी के बाद आगे की कार्रवाई के लिए बिहार पुलिस को पत्र भेजने के बाद शांत बैठ जाती है। जानकार बताते हैं कि समय के साथ-साथ मुंगेर शहर के पास के बरदह, पूरबसराय, श्यामपुर तथा कासिम बाजार थाना क्षेत्र के कई गांवों समेत आस-पास के कुछ इलाकों में अवैध हथियार का निर्माण तेजी से होने लग गया है।
गांवों की पहचान बदल गई
मुंगेर के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला बरदह गांव कभी पापड़-तिलौड़ी बनाने के लिए मशहूर था। कहा जाता है कि इस गांव में अस्सी के दशक में देसी कट्टे का निर्माण सबसे पहले शुरू हुआ था, जो बाद में कारबाइन तक पहुंच गया। कम लागत में अधिक मुनाफे की लालच ने काफी संख्या में लोगों को इस अवैध कारोबार में आकर्षित किया। हालांकि पुलिस द्वारा लगातार चलाए गए अभियानों से त्रस्त हो हथियार तस्करों ने अपना ठिकाना मालदा-कोलकाता (पश्चिम बंगाल), उत्तर प्रदेश, झारखंड व मुंगेर के सीमावर्ती इलाके खगड़िया, बेगूसराय, भागलपुर व सहरसा जैसे इलाके में बना लिया। इन इलाकों में छापेमारी के दौरान जिन फैक्ट्रियों का पदार्फाश किया गया और वहां से जिन लोगों को पकड़ा गया वे मुंगेर से वहां हथियार बनाने के लिए लाए गए थे। अब इन जगहों से अर्द्धनिर्मित आग्नेयास्त्र फिनिशिंग व बिक्री के लिए मुंगेर लाए जाते हैं।
सौदागर सीधे यहां के एजेंटों से संपर्क करते हैं
पुलिस सूत्रों का कहना है कि मुंगेर चूंकि हथियारों की मंडी के रूप में कुख्यात हो चुका है, इसलिए इसके सौदागर सीधे यहां के एजेंटों से संपर्क करते हैं। असलहों के निर्माण से जुड़े लोगों ने काफी संख्या में इलाके के लोगों को जोड़ा और उनसे बतौर कैरियर काम लिया। जब भी कार्रवाई होती है तो पुलिस इन्हीं कैरियर एजेंटों को पकड़ पाती है, असली गुनहगार पकड़ से दूर रहते हैं। इनका नेटवर्क तोड़ पाने में पुलिस की विफलता की यह एक बड़ी वजह मानी जाती है। पुलिस रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करते हंै कि कई मामलों में जिन जिलों में लोग पकड़े गए हैं, वे या तो दूसरे जिलों या फिर अन्य राज्यों के निवासी हैं जो हथियारों की खरीद-फरोख्त के सिलसिले में वहां पहुंचे थे।
आतंकी-नक्सली भी हैं खरीदार
जांच एजेंसियों व पुलिस की कई कार्रवाइयों से भी यह साफ हुआ है कि अवैध असलहों के इन सौदागरों के तार आतंकियों व नक्सलियों से भी जुड़े हैं। मुंबई पुलिस द्वारा 2007 में पकड़े वंशराज नामक शख्स ने स्वीकार किया था कि मुंगेर से अवैध हथियार खरीदकर उसने दाउद एंड कंपनी को सप्लाई किया था। जांच के क्रम में यह भी खुलासा हुआ कि इसी कड़ी में मुंगेर के एक व्यक्ति के खाते में कई लाख रुपये भेजे गए थे जिसे बाद में मुंबई पुलिस ने मुंगेर से गिरफ्तार किया। इसी साल जाली नोटों के रैकेट की पड़ताल करते हुए एनआइए मुंगेर पहुंची थी। एजेंसी को इनपुट मिला था कि कश्मीर निवासी आतंकी फैयाज अहमद मुंगेर में जाली नोट खपाने व हथियारों की तस्करी का नेटवर्क तैयार कर रहा था। इसी तरह 2016 में ढाका की एक बेकरी में हुए आतंकी हमले में भी जांच के क्रम में यह बात सामने आई थी कि विस्फोट के लिए जिम्मेदार संगठन जमात उल मुजाहिदीन द्वारा प्रयुक्त रायफल की खरीद भी मुंगेर से की गई थी।
कट्टे से लेकर एके 47 तक मिलते हैं
अवैध हथियारों के इन तस्करों के तार जबलपुर आर्डिनेंस फैक्ट्री से एके-47 व इंसास जैसे रायफलों की तस्करी में भी सामने आए थे। अगस्त, 2018 में मुंगेर के जमालपुर से तीन एके-47 की बरामदगी के बाद कार्रवाई के क्रम में पुलिस ने बीस से ज्यादा एके-47 रायफल की बरामदगी की थी। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक मुंगेर के बने कट्टे से लेकर एके 47 तक यूपी के गिरोहों के पास मौजूद हैं। वहां के बनी पिस्टल, कार्बाइन से लेकर एके 47 तक की फिनिसिंग बहुत बेहतर है, इसी लिए वहां के बने असलहों की डिमाण्ड बहुत है और तस्कर मुंह मांगे दाम पर इस बेचते हैं।
असलहे बनाने का पुराना गढ़ है बिहार का मुंगेर
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर गंगा नदी के किनारे स्थित है मुंगेर। इस शहर से हथियारों का निर्माण तब जुड़ा जब बंगाल के नवाब मीर कासिम ने मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया तथा अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए यहां चारों तरफ से करीब 30 फीट गड्ढे से घिरे किले का निर्माण किया एवं तोपखाना व बंदूक फैक्ट्री की स्थापना की। कहा जाता है कि उसके सेनापति गुरगीन खान ने अफगानी कारीगरों से बंदूक निर्माण शुरू करवाया। पाकिस्तान व अफगानिस्तान सीमा क्षेत्र से वह ऐसे कई कारीगरों को अपने साथ यहां ले आया था। इन कारीगरों ने यहां के स्थानीय लोगों को भी प्रशिक्षित किया। बाद में अंग्रेजों ने भी यहां अपने लिए असलहे बनवाए। बाद के दिनों में कई घराने हथियारों का निर्माण करने लगे।
अवैध असलहों का बड़ा बाजार बना मुंगेर
1952 में जब आर्म्स एक्ट कानून लाया गया तो सभी हथियार निमार्ताओं को एक छत के नीचे लाया गया। बीस साल बाद 1972 में बिहार सरकार ने इसे लघु उद्योग का दर्जा दिया, तब योगाश्रम के पास करीब दस एकड़ जमीन में ऐसी करीब 36 निर्माण इकाइयों को पुनर्स्थापित किया। कालांतर में बंदूक फैक्ट्रियां बदहाली के कगार पर पहुंच गईं और कारीगरों को काम मिलना बंद हो गया। निर्माण का हिस्सा वैध व अवैध में बंट गया। आज का मुंगेर अवैध हथियारों की असेम्बलिंग व फिनिशिंग के लिए जाना जाता है। असलहों के पार्ट गंगा नदी या अन्य प्रयोजनों से तस्करी कर यहां लाए जाते हैं और फिर पिस्टल से लेकर एके-47 तक तैयार कर उसकी सप्लाई की जाती है। कहा जाता है कि इन अवैध हथियारों का सालाना टर्न ओवर करोड़ों में है। जानकारों का कहना है कि देशभर के अपराधी सस्ते हथियारों के लिए मुंगेर के तस्करों से संपर्क करते हैं। यही वजह रहा कि इस जिले के कई हिस्सों में अवैध हथियार का निर्माण कुटीर उद्योग के रूप में पनपने लगा।