भाजपा को कितना नफा और कांग्रेस को कितना नुकसान

जितिन प्रसाद का दलबदल : भाजपा को कितना नफा और कांग्रेस को कितना नुकसान

भाजपा को कितना नफा और कांग्रेस को कितना नुकसान

Tricity Today | जितिन प्रसाद

कांग्रेस में राहुल गांधी के खास समझे जाने वाले एक और नेता जितिन प्रसाद ने बुधवार को "हाथ का साथ" छोड़ दिया। अब वह भारतीय जनता पार्टी के नेता बन गए हैं। सुबह से सोशल मीडिया पर घमासान मचा हुआ है। कांग्रेसी खेमा इसे कोई बड़ा नुकसान नहीं मानता तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के समर्थक ट्विटर पर ट्रेंड करवाने पर उतारू है। इसे राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए बड़ा झटका बताया जा रहा है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में रूठे ब्राह्मणों को मनाने के लिए भाजपा का बड़ा दांव करार दे रहे हैं। शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर केंद्र में तमाम बड़े नेताओं ने जितिन प्रसाद की आमद का खैरमकदम करते हुए ट्वीट किए हैं।

जितिन प्रसाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं। आजकल ट्विटर और सोशल मीडिया ही छोटे-बड़े बदलावों का साक्षी बनता है। दोपहर में जितिन प्रसाद ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कुछ बदलाव किए हैं। मसलन, प्रोफाइल से कांग्रेस की वेबसाइट को हटा दिया है। प्रोफाइल फोटो में जितिन प्रसाद अब शंख फूंकते नजर आ रहे हैं। दरअसल, वह खुद को ब्राह्मण चेहरा दिखाने की जुगत में हैं। शंख और तिलक ब्राह्मणों का प्रतीक हैं। लिहाजा, जितिन प्रसाद ने शंख के साथ अपनी फोटो ट्विटर पर लगा दी है। हालांकि, अभी उन्होंने अपने प्रोफाइल में भारतीय जनता पार्टी की वेबसाइट को शामिल नहीं किया है। हर किसी के मन में है एक सवाल उठ रहा है। जितिन प्रसाद के इस दलबदल से भारतीय जनता पार्टी को क्या फायदा होगा और कांग्रेस को क्या नुकसान उठाना पड़ सकता है?



उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को काउंटर करने की नाकाम कोशिश
उत्तर प्रदेश की राजनीति के विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शम्भुनाथ शुक्ल कहते हैं, "जितिन प्रसाद दो बार से लगातार लोकसभा का चुनाव हार रहे हैं। उधर उत्तर प्रदेश कांग्रेस की कमान जब से प्रियंका गांधी के पास आई है, तब से प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू का महत्त्व बढ़ा है और जितिन कांग्रेस में छटपटा रहे थे। गत वर्ष जब विकास दुबे को प्रदेश पुलिस ने पकड़ कर मार दिया था, तब जितिन ने कहा था कि वे सभी मारे गए ब्राह्मणों का डाटा इकट्ठा करके उनके घर जाएंगे। इसलिए योगी उन्हें पसंद नहीं करते थे।" शम्भुनाथ शुक्ला ने आगे कहा, "मोदी-शाह और पीयूष गोयल की टोली जितिन प्रसाद को योगी का काउंटर करने के लिए भाजपा में लेकर आई है।"

शम्भुनाथ शुक्ल आगे कहते हैं, केंद्रीय मंत्री रहे जितिन प्रसाद का बीजेपी ज्वाइन करना ऊपरी तौर पर तो कांग्रेस को झटका है, लेकिन अंदरखाने माना जा रहा है कि जितिन को बीजेपी में लाकर मोदी टोली ने योगी के पर कतरने का दांव चला है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में योगी से ब्राह्मण नाखुश चल रहे हैं, लेकिन प्रदेश में बीजेपी के अंदर कोई भी ब्राह्मण चेहरा ऐसा नहीं है जो योगी को चुनौती दे सके। न तो किसी की लोकप्रियता है न कोई बड़ा प्रोफ़ाइल। कलराज मिश्र उम्र की सीमा पार कर चुके हैं और वे 49 साल के योगी जैसी फुर्ती नहीं दिखा सकते। दिनेश शर्मा और श्रीकांत शर्मा पिछले चार वर्षों में कोई कौशल नहीं दिखा सके। मोदी पाले से प्रदेश विधान परिषद में भेजे गए अरविंद शर्मा नौकरशाह के रूप में चाहे जैसे रहे हों लेकिन योगी के समक्ष वे कहीं नहीं टिकते। ऐसे में कांग्रेस के पूर्व मंत्री जितिन को लाकर एक शातिराना खेल खेला गया है।"



पूर्वांचल में बहुत लोगों को नहीं पता- जितिन प्रसाद ब्राह्मण बिरीदरी से आते हैं
पूर्वांचल के शिक्षक नेता और राजनीतिक विश्लेषक अवनींद्र पाण्डेय का कहना है, "भाजपा जतिन प्रसाद को उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेहरा के रूप में प्रस्तुत करना चाह रही है। लेकिन, पूर्वांचल में बहुत लोगों को यह भी नहीं पता है कि जितिन प्रसाद ब्राह्मण बिरीदरी से आते हैं। ऐसे में वह भाजपा के लिए ब्राह्मण बिरादरी में "तुरुप का इक्का" साबित होंगे, यह कहना जल्दबाजी होगी। दिल्ली में उनकी भाजपा में ज्वाइनिंग कराई गई। जब उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में रखना है तो ज्वाइनिंग के समय प्रदेश भापजा और सरकार के प्रतिनिधि होते तो और बेहतर रहता। ऐसा लग रहा है कि पार्टी जो संदेश उत्तर प्रदेश को देना चाह रही है, उसमें भी हिचकिचाहट है।"

युवा पत्रकार नितिन पाराशर कहते हैं, "उत्तर प्रदेश के लक्ष्मीकांत वाजपेयी, शिव प्रताप शुक्ला, महेंद्र नाथ पांडे, दिनेश शर्मा, महेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा और रीता बहुगुणा जोशी यूपी के ब्राह्मण चेहरा हैं। इनमें से केंद्र में और प्रदेश में मंत्री हैं या पूर्व में रहे भी चुके हैं। उसके बाद भी ब्राह्मण वोट बीजेपी को कमजोर दिख रहा है। क्या यह नेता फेल हो गए हैं। जितिन प्रसाद को भाजपा में लाकर कोई फायदा होने वाला नहीं है।"

जितिन नेता नहीं प्रिविलेज्ड पर्सनेलिटी हैं, न कांग्रेस और न भाजपा को नफा-नुकसान
रोहिलखंड विश्वविद्यालय में पोलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के हेड ऑफ डिपार्टमेंट रह चुके प्रोफेसर पीके शर्मा ने कहा, "जितिन प्रसाद और जितेंद्र प्रसाद में बड़ा फर्क रहा है। जितेंद्र प्रसाद को ब्राह्मण नेता कहा जा सकता था। यह परिभाषा जितिन प्रसाद पर लागू नहीं होती है। जितिन प्रसाद कान्वेंट स्कूल और फॉरेन यूनिवर्सिटी से पढ़कर आए। अपने पिता की कांग्रेस पृष्ठभूमि का उपयोग करके सीधे राहुल कैबिनेट में शामिल हो गए। धौरहरा से एकमात्र वर्ष 2009 का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे और 5-5 मंत्रालयों में काम किया। यह सब उन्हें जमीन पर काम करने की बदौलत नहीं मिला था। राहुल गांधी से नजदीकी के कारण वह कांग्रेस में 'प्रिविलेज पर्सनैलिटी' थे। वर्ष 2014 और 2019 के चुनाव में जितिन प्रसाद की परीक्षा होनी थी। दोनों चुनाव वह बुरी तरह हारे हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह चौथे स्थान पर थे और 2019 के लोकसभा चुनाव में बमुश्किल तीसरा स्थान हासिल कर पाए।"

प्रोफेसर शर्मा आगे कहते हैं, "सही मायने में कांग्रेस को इस तरह की 'प्रिविलेज पर्सनैलिटी' ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है। अगर कांग्रेस वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद जितिन प्रसाद को वर्ष 2019 में टिकट न देकर किसी दूसरे चेहरे को आजमाती तो रिजल्ट और बेहतर हो सकते थे। जितिन प्रसाद न तो कभी विधान सभा चुनाव में पार्टी को जीता पाए और ना खुद लोकसभा चुनाव जीत पाए। ऐसे में यह कहना कि जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़कर चले जाने से कोई बड़ा नुकसान होने वाला है, गैर राजनीतिक सोच होगी। ठीक इसी तरह भारतीय जनता पार्टी को भी उनके साथ आने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। भाजपा तो केवल राज्य में रूठे हुए ब्राह्मणों को मनाने के लिए हथकंडा अपना रही है। सही मायने में भाजपा को बाहर से ब्राह्मण नेता लाकर बैठाने की जरूरत नहीं है। 'इन हाउस लीडरशिप' को मजबूत बनाने की जरूरत है।"



कांग्रेस सबसे निचले पायदान पर, जितिन के जाने का कोई नुकसान नहीं
सीनियर जर्नलिस्ट विनोद शर्मा का इस बदलाव पर कहना है कि उत्तर प्रदेश से नारायण दत्त तिवारी सरकार जाने के बाद ब्राह्मण ने धीरे-धीरे कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी का सबसे बड़ा वोट बैंक ब्राह्मण समाज है। लोग यह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ से ब्राह्मण समाज रूष्ट है। कोई यह नहीं कहता कि ब्राह्मण भारतीय जनता पार्टी से रूष्ट हैं। अगर कांग्रेस से जितिन प्रसाद के जाने के बारे में विचार किया जाए तो कांग्रेस अपने न्यूनतम स्तर पर है। इससे ज्यादा कोई नुकसान कांग्रेस को होना संभव नहीं है। लिहाजा, जितिन प्रसाद का जाना कोई महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला नहीं है। जब जितिन प्रसाद सरकार में थे तो कितने ब्राह्मण उनसे जुड़े रहे? यह सवाल भी इस बदलाव के असर का बड़ा जवाब है।"

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