भारत सरकार दिल्ली से देहरादून के बीच की दूरी कम करने के लिए एक नए राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की तैयारी कर रही है। यह राजमार्ग उत्तर प्रदेश के गणेशपुर से शुरू होगा। राजाजी टाइगर रिजर्व का 9.6 एकड़ क्षेत्रफल के वन और जमीन इस राजमार्ग से प्रभावित होंगे। साथ ही राजाजी टाइगर रिजर्व में 2572 पुराने पेड़ों की कटाई करनी पड़ेगी। इस संबंध में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है। इसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र और उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है।
उच्च न्यायालय ने दोनों सरकारों से पूछा है कि दिल्ली-देहरादून के बीच प्रस्तावित राष्ट्रीय राजमार्ग को पूरा करने के लिए राजाजी टाइगर रिजर्व (आरटीआर) के इको सेंसेटिव जोन से सैकड़ों पुराने पेड़ों को क्यों काटा जाए। साथ ही उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि आरटीआर के कम हो रहे क्षेत्रफल की भरपाई के लिए राज्य सरकार के पास क्या योजना है। मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की युगलपीठ ने अनिल खोलिया की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह कहा। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया गया कि केन्द्र सरकार देहरादून से दिल्ली की दूरी कम करने के लिये उप्र के गणेशपुर से देहरादून के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग का निमार्ण कर रही है।
राजमार्ग के निमार्ण से राजाजी टाइगर रिजर्व का 9.6 हेक्टेअर क्षेत्रफल प्रभावित हो रहा है। प्रभावित क्षेत्र आरटीआर का ईको सेंसटिव जोन है और प्रस्तावित राजमार्ग के लिये सैकड़ों साल पुराने 2572 पेड़ों की बलि दी जा रही है। राज्य सरकार ने आरटीआर की भूमि प्रस्तावित राजमार्ग के लिये देने से पहले तय प्रावधानों का पालन नहीं किया है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि राजमार्ग के निमार्ण से आरटीआर का लगभग 9 हेक्टेअर क्षेत्रफल घट जायेगा। जिससे आरटीआर के पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता पर असर पड़ सकता है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने बताया कि मामले को सुनने के बाद पीठ ने केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि आरटीआर के प्रभावित क्षेत्रफल की भरपायी के लिये सरकार की क्या योजना है? क्या सरकार उसकी भरपायी के लिये अतिरिक्त क्षेत्रफल आरटीआर में जोड़ेगी या नहीं? हाईकोर्ट ने यह भी पूछा है कि क्या ईको सेंसटिव जोन से पेड़ों के काटे जाने के लिये निर्धारित प्रावधानों का पालन किया गया है या नहीं? इसके साथ ही अदालत ने प्रदेश सरकार से यह भी पूछा है कि काटे गये पेड़ों के बदले नये पेड़ लगाने के मामले में वनीकरण को लेकर क्या योजना है? इस पूरे प्रकरण में सभी पक्षकारों को 18 मार्च तक जवाब पेश करने के लिए निर्देश दिया गया है।