नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 11,000 बच्चे कुपोषण का शिकार, वाहवाही सिर्फ कागज पर

नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 11,000 बच्चे कुपोषण का शिकार, वाहवाही सिर्फ कागज पर

नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 11,000 बच्चे कुपोषण का शिकार, वाहवाही सिर्फ कागज पर

Google Image | प्रतीकात्मक फोटो

गांवों के कुपोषण मुक्ति के प्रशासन के दावे उसकी कार्यशैली से मेल नहीं खा रहे हैं। गर्भवती महिलाओं व बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने का कार्य केवल कागजों में होता दिखाई दे रहा है। धरातल पर हकीकत कुछ ओर ही बयां करती नजर आ रही है। जिले में कुपोषण की मुक्ति के दावे कितने सटीक है इसका अंदाजा विभागीय आंकड़ों को देखकर लगाया जा सकता है। शहर में मलीन बस्ती प्रशासन की अनदेखी का शिकार है। 

निवासियों की माने तो यहां आंगनबाड़ी पोषाहार का वितरण ही नहीं करती। गर्भवती महिलाओं व बच्चों के टीकाकरण समेत अन्य योजनाओं का लाभ तो दूर की बात है। सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद जिले में कुपोषण से जूझ रहे गांवों का चयन करके नए सिरे से अधिकारियों को गांव गोद दिए थे। उस दौरान अधिकारियों ने गांवों को कुपोषण से मुक्त हो जाने के दावे भी किए गए। वाहवाही लूटने के लिए रिपोर्ट शासन को भी भेजी गई थी। बाल विकास विभाग ने दावा किया था कि जिले में तीन फीसद ही गर्भवती महिलाएं व बच्चे कुपोषण का शिकार है, लेकिन मौजूदा स्थिति प्रशासन के दावों से मेल खाती नजर नहीं आ रही है।

दो साल में साढ़े तीन हजार से 11 हजार पहुंच गई कुपोषित बच्चों की संख्या
बाल विकास विभाग ने अगस्त 2018 तक जिले के बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के दावे भी किए। पहले चरण में 26 अधिकारियों ने 54 गांव गोद लिए। अधिकारियों ने उस दौरान 39 गांवों के बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने का दावा भी किया था। 2018 में 1241 बच्चें १लाल रजिस्ट्रर अतिकुपोषित की श्रेणी में दर्ज थे। जबकि 3528 बच्चों को पीले रजिस्ट्रर कुपोषण की श्रेणी में दर्ज किया गया था, लेकिन मौजूदा विभागीय आकंड़ों पर नजर डाली जाए तो कुपोषित बच्चों का आकड़ा घटनेे के बजाय कई गुना बढ़ गया है। जिले में 11 हजार बच्चे कुपोषण के दंश से कराहते रहे हैं। 13 सौ बच्चे अतिकुपोषण की श्रेणी में है।

आखिर कब मिलेगी जिले में कुपोषण से मुक्त
जिन गांवों को अधिकारियों ने गोद लिया उन गांवों में कुपोषित बच्चों का ग्राफ घटने के बजाय बढ़ा है। इतना ही नहीं गोद लेने के बाद अधिकारियों ने कभी गांवों का दौरा ही नहीं किया। दफ्तरों में बैठकर अधिकारियों ने कुपोषित बच्चों के लाल श्रेणी के रजिस्ट्रर हरी श्रेणी में दर्ज कर दिए। ग्रामीणों का दावा है कि ज्यादातर अधिकारियों ने गोद लेने के बाद कभी गांवों की सुध नहीं ली। 

गांवों में कुपोषित बच्चों की संख्या घटने के बजाय बढ़ी है। कुपोषित बच्चों का आकड़ा बढऩे के पिछे एक वजह यह भी है कि जिला प्रशासन कुपोषण से मुक्त हो चुके बच्चों का दोबारा सर्वे ही नहीं करा सका। हालाकि विभागीय अधिकारियों का तर्क है कि नोएडा ग्रेटर नोएडा में बसता शहर है। यहां बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में मजदूर कई हजार रहते है। ज्यादातर कुपोषित बच्चे भी इन्हीं मजदूरों के है। कई बार मजदूर बिना सूचना दिए चले जाते है। जिसकी वजह से जिले में कुपोषण का आंकड़ा घटता बढ़ता रहता है।
 

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