Tricity Today | Manoj Katariya
लॉकडाउन चल रहा है और अभिभावक प्राइवेट स्कूलों पर फीस बढ़ाने की बजाय घटाने के लिए दबाव बना रहे हैं। इसके पीछे पूरे दिल्ली एनसीआर के अभिभावकों के तमाम तर्क हैं। दूसरी ओर प्राइवेट स्कूल अभिभावकों की बात को नजरअंदाज करते हुए अपने चिर परिचित अंदाज में नोटिस भेज रहे हैं। फीस जमा करने के लिए अभिभावकों पर दबाव बन रहे हैं।
अभिभावकों ने सरकारों के सामने मुद्दा उठाया तो उत्तर प्रदेश सरकार तीन अलग-अलग आदेश अभी तक जारी कर चुकी है। जिसमें आखिरी आदेश चालू शिक्षण सत्र में फीस नहीं बढ़ाने का है। अब सवाल यह उठता है कि एक और अभिभावक फीस घटाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार फीस ना बढ़ाने की बात कर रही है। इसी पर नोएडा ऑल स्कूल पेरेंट्स एसोसिएशन के महासचिव मनोज कटारिया ने अपने तर्क दिए हैं। जो हम यहां यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।
नीचे लिखे कुछ बिंदुओं पर ध्यान दीजियेगा। जिससे हमे शायद स्कूलों के रिज़र्व फंड से संबंधित कुछ चीजें साफ हो जाएं।
मेरा पहला बिंदु है कि स्कूलों के पास सर-प्लस फंड क्यों नहीं होता है? जबकि, स्कूल जरूरत से ज्यादा फीस वसूलते हैं। इस विषय में मेरा तर्क है कि प्रायः सभी निजी (प्राईवेट) स्कूलों ने सामाजिक अकादमी जैसे स्पोर्ट्स अकादमी या गरीब और वंचित बच्चों के पढ़ाने के लिए (केवल नाम की) अकादमी बना रखी हैं और अभिभावकों द्वारा दी गई फीस का एक बड़ा भाग इन अकादमियों में हस्तांतरित करके खर्चे में दिखाया जाता है। यूपी एक्ट के अनुसार 15% अपनी प्रबंधन कमेटी में डाल दिया जाता है। इस तरह से स्कूल कोर्ट या सरकार से कह सकते हैं कि हमारे पास स्टाफ को वेतन देने के लिए पर्याप्त फंड नहीं है। अभिभावकों से कंपोजिट अनुअल फीस/ट्यूशन फीस बटोरना चाहते हैं।
दूसरा बिंदू है कि जब अभिभावक उप मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री के पास फीस माफ करने की प्रार्थना करेंगे तो सभी स्कूल यही तर्क देंगे कि हमारे पास शिक्षकों को देने के लिए फंड नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार, दिल्ली सरकार (17.04.20), हरियाणा सरकार (24.04.20) तथा दिल्ली हाईकोर्ट (29.04.20) की तरह यह निर्देश भी नहीं दे सकती कि स्कूल अभिभावकों से केवल ट्यूशन फीस ही प्राप्त करें। क्योकि उत्तर प्रदेश स्वपोषित निजी स्कूल अधिनियम-2018 के अनुसार ट्यूशन फीस नाम का मद फी-स्लिप में है ही नहीं। अब तो सभी मुख्य फीस (देय राशि) कंपोजिट अनुअल फीस कंपोनेंट मे ही समाहित हो गयी है। स्कूल व सरकार कंपोजिट अनुअल फीस/ट्यूशन फीस को ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग करके स्टाफ के वेतन के नाम पर अभिभावकों से फीस ऐंठना चाहते हैं।
मेरा तीसरा बिंदू है कि यदि हम उप मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री से लॉक-डाउन की अवधि तक सत्र 2018-19 में मार्च-अप्रैल में जारी की गयी फी-स्लिप में लिखी ट्यूशन फीस माहवार के अनुसार जमा करेंगे तो कम से कम स्कूल स्टाफ को पूरा वेतन देगा। परन्तु, सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि अध्यापकों व अन्य कर्मचरियों को स्कूल पूरा वेतन दे रहा है या नहीं।
परन्तु मै स्वयं लॉक-डाउन अवधि में स्कूल फीस के पक्ष में नही हूं। क्योंकि 90% से अधिक अभिभावकों के पास फीस के लिए पैसे ही नहीं हैं। और यदि अभिभावक इनको फीस नहीं देते हैं तो ये स्कूल अध्यापकों को वेतन भी नहीं देंगे। भले ही इनके पास करोड़ों रुपये की फिक्स डिपॉजिट हों। अब आप से मेरा यह निवेदन है कि आप भी इस विषय में अवश्य सोचें।