पढ़िए! सरदार भगत सिंह वे क्रांतिकारी विचार जिनकी बदौलत लंदन का तख्त हिल गया था

पढ़िए! सरदार भगत सिंह वे क्रांतिकारी विचार जिनकी बदौलत लंदन का तख्त हिल गया था

पढ़िए! सरदार भगत सिंह वे क्रांतिकारी विचार जिनकी बदौलत लंदन का तख्त हिल गया था

Google Image | सरदार भगत सिंह

Bhagat Singh Birth Anniversary: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक सरदार भगत सिंह थे। शहीद-ए-आजम के नाम से मशहूर सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को हुआ था। महज 23 वर्ष की छोटी से आयु में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने फांसी दे दी थी। लेकिन अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने एक मजबूत प्रभाव छोड़ा। जिसकी बदौलत भारतीय स्वाधीनता संग्राम को नई दिशा मिली थी। सरदार भगत सिंह की शहादत से पूरा देश आंदोलित हो गया था। 

शहीद भगत सिंह बम फेंककर क्रांतिकारी नहीं बने। अपने विचारों से बने थे। उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत उनके विचार हैं। महज 23 की उम्र में वह जो कुछ लिख गए, वह उन्हें आजादी के दूसरे सिपाहियों से बिल्कुल अलग खड़ा करता है। शायद यही वजह थी कि वैचारिक रूप से अलग धारा से ताल्लुक रखने के बावजूद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें क्रांति का प्रतीक बताया था।

सरदार भगत सिंह को उनके दो दोस्तों शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर के साथ एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सॉन्डर्स को मारने की साजिश के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। दरअसल, रोलेट एक्ट के विरोध कर रहे कांग्रेसी और स्वतंत्रता आंदोलन के नेता लाला लाजपत राय पर क्रूर पुलिस कार्रवाई का आदेश दिया था। 28 सितंबर, 2020 यानी आज सरदार भगत सिंह की 113 वीं जयंती है। उम्र बहुत कम होने के बावजूद सरदार भगत सिंह वैचारिक रूप से बहुत समृद्ध युवक थे। उनकी विचारधारा कम्युनिस्ट और समाजवाद से प्रभावित थी, लेकिन दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी भी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरदार भगत सिंह अंग्रेज सरकार में दहशत की वजह बन गए थे। भगत सिंह को 7 अक्टूबर 1930 को मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे उन्होंने साहस के साथ सुना। भगत सिंह को 24 मार्च 1931 को फांसी देना तय किया गया था,  लेकिन अंग्रेज इतना डरे हुए थे कि उन्हें 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 की रात 7:30 बजे फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

जेल में किया था 116 दिन का उपवास

भगत सिंह ने जेल में 116 दिन का उपवास किया था। आश्चर्य की बात है कि इस दौरान वह अपना सारा काम नियमित रूप से करते थे, जैसे गाना, किताबें पढ़ना और हर दिन कोर्ट जाना आदि। अंग्रेजों ने सरदार भगत सिंह का उपवास करवाने के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्हें जबरन दूध पिलाया जाता था। खाना खिलाने की कोशिश की जाती थी। इस उपवास के दौरान दोस्त जतिन प्रसाद की मौत हो गई थी।  सरदार भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में भारतीय बंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के खिलाफ यह ऐतिहासिक उपवास रखा था।

 

सरदार भगत सिंह ने इस वजह से मुंडवा ली थी दाढ़ी

लाहौर में अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या करने के बाद सरदार भगत सिंह का वहां रहना असंभव हो गया था। पुलिस की सरगर्मी बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। हत्या आरोपियों की तलाश में पुलिस पूरे लाहौर शहर में छापामारी अभियान कर रही थी। ऐसे में सरदार भगत सिंह ने वेश बदलकर लाहौर से पलायन किया था। दरअसल, भगत सिंह देश बदलने में भी माहिर थे। भगत सिंह जन्म के समय एक सिख थे। उन्होंने अपनी दाढ़ी मुंडवा ली। हत्या के लिए पहचाने जाने और गिरफ्तार होने से बचने के लिए अपने बाल काट लिए थे। वह लाहौर से कलकत्ता भागने में सफल रहे थे।

आज हम आपको सरदार भगत सिंह के जन्मदिन के मौके पर उनके कुछ बेहद क्रांतिकारी और विस्फोटक विचार यहां बता रहे हैं। जिन्हें पढ़कर सरदार भगत सिंह के बाद कई पीढ़ियां जोश और राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित होती आई हैं। भगत सिंह ने एक शक्तिशाली नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ गढ़ा, जो भारत के सशस्त्र संघर्ष का नारा बन गया। आज भी भारत में तमाम छात्र आंदोलन, मजदूर आंदोलन, किसान आंदोलन और युवाओं के आंदोलन इस नारे के बिना शुरू या समाप्त नहीं होते हैं।

1. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।।

2. राख का हर एक कण,

मेरी गर्मी से गतिमान है।

मैं एक ऐसा पागल हूं,

जो जेल में भी आजाद है।।

3. जो भी व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है, उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी।।

4. दिल से निकलेगी

न मरकर भी वतन की उल्फत।

मेरी मिट्टी से भी खुश्बू-ए-वतन आएगी।।

5. हम नौजवानों को बम और पिस्तौल उठाने की सलाह नहीं दे सकते। विद्यार्थियों के लिए और भी महत्त्वपूर्ण काम हैं। राष्ट्रीय इतिहास के नाजुक समय में नौजवानों पर बहुत बड़े दायित्व का भार है और सबसे ज्यादा विद्यार्थी ही तो आजादी की लड़ाई में अगली पांतों में लड़ते हुए शहीद हुए हैं। क्या भारतीय नौजवान इस परीक्षा के समय में वही संजीदा इरादा दिखाने में झिझक दिखाएंगे।

6. क्रांति मानव जाति का एक अपरिहार्य अधिकार है।

7. इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज्बातों से,

अगर मैं इश्क लिखना भी चाहूं

तो इंकलाब लिख जाता हूं।

8. वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, मेरी आत्मा को नहीं।

9. मैं एक इंसान हूं और जो भी चीजें इंसानियत पर प्रभाव डालती हैं, मुझे उनसे फर्क पड़ता है।

10. देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं।

हमें पागल ही रहने दो हम, पागल ही अच्छे हैं।।

11. ज़िन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं।

12. स्वतंत्रता सभी का एक कभी

न खत्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।

13. अगर हमें सरकार बनाने का मौका मिलेगा तो किसी के पास प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं होगी। सबको काम मिलेगा और धर्म व्यक्तिगत विश्वास की चीज होगी, सामूहिक नहीं।

14. क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है। गरीबी एक अभिशाप है, एक सजा है।

15. प्रेमी पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।

16. जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था। 

17. अगर बहारों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा। जब हमने असेंबली में बम गिराया तो हमारा मकसद किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। 

18. मैं इस बात पर जोर देता हूं कि मैं महत्वकांक्षी, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूं। पर मैं जरूरत पड़ने पर यह सब त्याग सकता हूं और वही सच्चा बलिदान है। 

19. किसी को क्रांति शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से अलग अर्थ और मतलब दिए जाते हैं। 

20. चीजें जैसी हैं आमतौर पर लोग उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है। 

21. बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती। क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है। 

22. अहिंसा को आत्मबल के सिद्धांत का समर्थन है। जिसमें प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है, लेकिन तब क्या हो जब यह कोशिश नाकाम हो जाए। तभी हमें आत्मबल को शारीरिक बल से जोड़ने की जरूरत पड़ती है। ताकि हम अत्याचारी और दुश्मन के रहमों करम पर निर्भर ना रहें।

23. किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग न करना काल्पनिक आदर्श है और नया आंदोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरंभ की हम चेतावनी दे चुके हैं, वह गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान, वाशिंगटन और गैरीबाल्डी लाए थे। और उनके आदर्शों से प्रेरित है। 

24. इंसान तभी कुछ करता है जब वह अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है। जैसा कि हम विधानसभा में बम फेंकने को लेकर थे। 

25. व्यक्तियों को कुचल कर विचारों को नहीं मार सकते।

26. कानून की पवित्रता तभी तक बनी रहती है, जब तक वह लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करें।

27. निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार यह क्रांति सोच के दो अहम लक्षण हैं। 

28. अगर धर्म को अलग कर दिया जाए तो राजनीति पर हम सब इकट्ठे हो सकते हैं। धर्मों में हम चाहे अलग-अलग ही रहें।

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